China-Russia News: भारत के 'दोस्त' से मुलाकात कर रहे चीनी राष्ट्रपति, क्या है जिनपिंग का मकसद?
China Russia Relations: रूस के राष्ट्रपति को एक ऐसे शख्स के तौर पर देखा जाता है, जो भारत का दोस्त है. लेकिन इन दिनों वह चीन से भी दोस्ती बढ़ा रहे हैं.
China-Russia: रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की इस हफ्ते मुलाकात होने वाली है. दोनों नेताओं के बीच ये मुलाकात चीन में होगी. रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, माना जा रहा है कि इस मुलाकात मकसद अमेरिका के खिलाफ रूस-चीन की साझेदारी को मजबूत करना है. पुतिन का चीन दौरा ऐसे समय पर हो रहा है, जब इस बात की जानकारी सामने आई है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति पुतिन के बीच साल के आखिर में मुलाकात हो सकती है.
दरअसल, पुतिन बीजिंग में 17-18 अक्टूबर को हो रहे बेल्ट एंड रोड फॉरम में हिस्सा लेने जा रहे हैं. इस साल मार्च के महीने में यूक्रेन से बच्चों के निर्वासन पर हेग स्थित इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट ने रूसी राष्ट्रपति के खिलाफ वारंट जारी किया. इसके बाद उन्होंने कई विदेशी मंचों पर शिरकत नहीं की. वहीं, इस वारंट के जारी होने के बाद रूस के बाहर उनकी ये पहली यात्रा होगी. भारत के 'दोस्त' पुतिन की जिनपिंग से मुलाकात अहम होने वाली है. भारत की भी इस पर नजर होगी, ताकि चीन की चालों को समझा जा सके.
क्या है इस मुलाकात का प्रमुख मकसद?
चीन और रूस ने फरवरी 2022 में 'नो लिमिट' साझेदारी का ऐलान किया. इसके कुछ दिन बाद ही पुतिन ने यूक्रेन पर हमले का आदेश दिया. इस तरह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप में सबसे बड़ी जंग की शुरुआत हुई. अमेरिका चीन को अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी के तौर पर देखता है. साथ ही रूस को वह अपने देश के लिए सबसे बड़ा खतरा मानता है. चीन और रूस को भी ये बात मालूम है. यही वजह है कि दोनों ने अपनी साझेदारी को मजबूत करने का फैसला किया है, ताकि अमेरिका के खिलाफ खड़ा हुआ जा सके. पुतिन और जिनपिंग की मुलाकात के दौरान भी रिश्तों को मजबूत करना ही प्रमुख मकसद होगा.
एक दशक में मजबूत हुए चीन-रूस के रिश्ते
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और बिल क्लिंटन की सरकार में पूर्व रक्षा सहायक सचिव रहे ग्राहम एलिसन ने पुतिन और जिनपिंग की मुलाकात को लेकर बात की. उन्होंने कहा, 'पिछले एक दशक में जिनपिंग ने पुतिन के साथ मिलकर दुनिया का सबसे ताकतवर अघोषित गठबंधन बनाया है.' उनका कहना है कि अमेरिका को ये बात समझनी होगी कि उसका एक उभरता हुआ प्रतिद्वंद्वी और दुनिया के सबसे ज्यादा परमाणु बमों का मालिक देश एक दूसरे के करीब आ रहे हैं. इसका मतलब है कि वे उसके खिलाफ खड़े होंगे.
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