चीन और ताइवान के बीच तनाव इस समय चरम पर है. अमेरिकी सीनेट नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा चीन को नागवार गुजरी हैं. अमेरिका के इस कदम को चीन ने अपने इलाके में एक अतिक्रमण माना है. चीन, ताइवान को अपना हिस्सा मानता है और उसको मिलाने के शांतिपूर्ण कोशिशों के साथ-साथ फाइटर्स प्लेनों को वहां के एयर स्पेस में भी घुसाने से नहीं चूकता है.
बीते कई सालों से चीन और ताइवान के बीच 'आंखें दिखाने' की खबरें आती रही हैं लेकिन नैंसी पेलेसी की इस यात्रा के बाद से चीन ने मिसाइलें तान दी हैं और दूसरी ताइवान भी हर तरह से तैयार रहने का दावा कर रहा है.
एशिया के दो पड़ोसी देश एक दूसरे को ललकार रहे हैं तो अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन कई बार कह चुके हैं कि वो चीन के साथ युद्ध की स्थिति में ताइवान को सैन्य मदद देने से नहीं हिचकाएंगे. हालांकि ऐसे ही दावे वो यूक्रेन के साथ भी करते रहे हैं.
लेकिन 25 साल बाद किसी अमेरिकी नेता का ताइवान आना कोई साधारण घटना नहीं है. वो भी उस समय जब पूरी दुनिया रूस-यूक्रेन देख रही है. ऐसे में चीन को उकसाने का कदम अमेरिका ने क्यों उठाया?
इसकी पड़ताल के लिए जब नैंसी पेलोसी की यात्रा के दौरान उनकी ताइवान में हुई मुलाकात की कड़ी को जोड़ा गया तो इसके पीछे अमेरिका का एक प्लान सामने आया जो बिजनेस, सुरक्षा और सैन्य तकनीकी से जुड़ा है.
दरअसल नैंसी पेलोसी ने ताइवान में सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कॉरपोरेशन (टीएसएमसी) के अध्यक्ष मार्क लुई के साथ मुलाकात की है. अमेरिका सेमीकंडक्टर (आम बोलचाल की भाषा में चिप भी कहते हैं) को लेकर इस कंपनी पर बहुत ज्यादा निर्भर है और यह चाहता है कि यह कंपनी चीन के लिए एडवांस क्षमता वाली चिप बनाना बंद कर दे.
इन चिप्स का इस्तेमाल कारों, बाइकों, मोबाइल और तमाम इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में होता है. कोरोना के समय जब विश्व व्यापार ठप पड़ा था तो भारत में भी चिप की कमी की वजह कार कंपनियों को कारोबार में झटका लगा था और कारों का वेटिंग पीरियड एक-एक साल तक बढ़ गया था.
हालांकि अमेरिका 'वन चाइना' नीति के सिद्धांत का पालन करने की बात कूटनीतिक मंचों पर करता है जिसका मतलब ये है कि वो ताइवान को चीन का ही हिस्सा मानता है.
लेकिन हाल के वर्षों में ताइवान ने सेमीकंडक्टर चिप के निर्माण में जिस तरह से क्षमता विकसित की है उससे अब इस देश का चीन से अलग रहना ही अमेरिका के हित में है. सेमीकंडक्टर चिप का इस्तेमाल अब अत्याधुनिक सैन्य हथियारों में भी किया जाने लगा है.
जिस तरह सुपरफास्ट इंटनेट पूरी दुनिया में पैर पसार रहा है उसके साथ-साथ इससे कनेक्ट होने वाले सैन्य हथिारों की नई जेनेरेशन भी तैयार हो रही है और अमेरिका काफी हद तक सेमीकंडक्टर के सेक्टर में बाहर की कंपनियों पर ही निर्भर है.
ताइवान की कंपनी टीएसएमसी की हिस्सेदारी पूरी दुनिया में 53% है. इसके साथ ही ताइवान की दूसरी कंपनियों की हिस्सेदारी 10 फीसदी तक है. डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के दौरान अमेरिका की रिपोर्ट में ही इस खतरे का जिक्र भी किया गया है कि कैसे उनका देश इस सेक्टर में दूसरों पर निर्भर है.
कुल मिलाकर अमेरिका कभी नहीं चाहेगा कि ताइवान में किसी भी सूरत में चीन की दखलंदाजी बढ़े या फिर चीन के नियंत्रण में आए और उसको सेमीकंडक्टर देने वाली कंपनी टीएसएमसी कभी चीन के इशारे पर काम करने लगे.
अब जो बाइडेन की पूरी कोशिश है कि टीएसएमसी के जरिए ही सेमीकंडक्टर के निर्माण क्षमता अमेरिका में बढ़ जाए. साल 2021 में इस ताइवानी कंपनी ने अमेरिका में जमीन खरीदा है और अगले एक साल वहां फैक्टरी शुरू भी हो जाएगी.
हाल ही में अमेरिका में एक कानून भी पास किया गया है जिसके जरिए सेमीकडंक्टर निर्माण करने वाली कंपनियों की 52 अरब डॉलर तक की सब्सिडी दी जा सकेगी. लेकिन शर्त ये होगी कि ये कंपनियां चीन को एडवांस सेमीकंडक्टर नहीं देंगी. जाहिर है अमेरिका की सब्सिडी पाने के लिए उन्हें चीन का साथ छोड़ना होगा.
मतलब साफ है कि अमेरिका ने चीन के खिलाफ एक तकनीकी युद्ध शुरू कर दिया है जिसके जरिए चीन को रोककर खुद वो एडवांस टेक्नॉलजी का अगुवा बना रहना चाहता है.
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