Exclusive: सीमावर्ती गावों में कैसी है चीन की तैयारी? बेसिक सुविधाओं से लेकर कनेक्टिविटी तक का एबीपी न्यूज़ ने लिया जायजा
China Border Village: चीन के सीमावर्ती गांव में एबीपी न्यूज पहुंचा और वहां का जायजा लिया. सीमा पर बसे गावों को चीन सरकार और सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ने टारगेट दिया है.
China Village Ground Report: चीन सीमावर्ती गांवों में जाकर एबीपी न्यूज ने जायजा लिया है. चीन के युन्नान प्रांत के शिशोमबन्ना प्रीफेक्चर की मेंगला काउंटी के क्वीलोम गांव में एबीपी न्यूज पहुंचा. यह इलाका लाओस और चीन की सीमा पर है. यहां मौजूद सुविधाओं और तौर-तरीकों को देखते हुए अंदाजा लगता है कि चीन ने विकास की रणनीति में अपने सीमावर्ती गांवों को भी शामिल किया है. बुनियादी सुविधाओं से लेकर कनेक्टिविटी का खास खयाल रखा गया है.
चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी की पकड़ इन गांवों तक है. पार्टी की ओर से इन गावों में टारगेट बोर्ड लगाए गए हैं. जिनमें बताया गया है कि चीन के गांवों को लेकर सरकार और कम्युनिस्ट पार्टी का लक्ष्य क्या है.
चीन की सीमा 14 देशों से मिलती है. कहीं पहाड़ हैं तो कहीं रेगिस्तान, कहीं मैदानी भाग है तो कहीं समुद्र. पड़ोसी देश को ध्यान में रखते हुए चीन ने अपने सीमावर्ती गांवों में अलग-अलग तरह सुरक्षा सुनिश्चित की है. मिसाल के तौर पर भारत की सीमा पर तैनाती अलग है तो रूस की सीमा पर अलग, इसी तरह म्यांमार और लाओस की सीमा पर भी तैनाती अलग है.
गांव में टारगेट बोर्ड
लाओस के साथ चीन के संबंध ठीक हैं. छोटा देश होने के कारण लाओस काफी हद तक चीन पर निर्भर भी रहता है. लाओस और चीन के बीच सीमावर्ती गांव क्विलोम सड़क मार्ग के जरिये शहर से करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर है.
शहर से इस सीमवर्ती गांव तक पहुंचने में करीब दो घंटे लगते हैं. गांव तक पहुंचने के रास्ते में सुरंग, पुल, पहाड़ और नदी देखने को मिलते हैं. रास्ते बनाते समय जंगलों का खयाल रखा गया है. पेड़ नहीं काटे गए हैं. दोनों ओर भरपूर हरियाली देखने को मिलती है. सड़क पर गड्ढे नहीं हैं. गाड़ियां आमतौर पर सौ किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ती हैं. भारत के एक्सप्रेस वे की तरह ही यहां भी सड़क सीमा तक जाती है.
गांव में जितना काम सरकार की ओर से किया जाता है, उसमें सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना का बड़ा योगदान रहता है. सौ वर्ष पुरानी यह पार्टी पिछले कई दशकों से यहां सत्ता पर काबिज है और शहर से लेकर सीमा तक, हर जगह किसी न किसी भूमिका में दिख ही जाती है. क्विलोम गांव में भी पार्टी का एक टारगेट बोर्ड लगा है, जिसके आधार पर काम किया जाता है.
हफ्तेभर में गांव के लोग करते हैं बैठक
गुओलियांग गांव में सभी घर पक्के मिले. गांव में 174 लोग रहते हैं. इन 174 लोगों की लगभग एक हफ्ते में बैठक होती है. कम्युनिस्ट पार्टी और सरकार का लक्ष्य है कि 2025 तक गावों को 'मेड इन चाइना' करना है. गांव में टारगेट बोर्ड में लक्ष्य के बारे में बताया गया है. इसमें पुराने समय की अर्थव्यवस्था का जिक्र है. इसमें कहा गया है कि 2013 में इस गांव की आय 6,766 रुपये थी. उसके बाद इस गांव की आय युआन के तौर पर बदली. बदलाव को लेकर तैयारी का भी जिक्र है.
गांव के उत्पादों को बढ़ावा, फायदे-नुकसान में पार्टी की भूमिका
गांव के उत्पादों को बड़ी खूबसूरती से सजाकर रखा जाता है. प्राकृतिक उत्पाद तैयार किए जाते हैं. लोगों में गांव के प्रोडक्ट को लेकर गर्व और अहमियत का भाव रहे, इसकी तैयारी की गई है. घाटे या नुकसान की आशंका से निपटने का भी इंतजाम किया गया है. इसके लिए विविध तरह के फल आदि से संबंधित पेड़-पौधे लगाए जाते हैं, जिनमें रबर, ऑरेंज और ड्रैगन फ्रुट जैसे पेड़ भी शामिल है, या कोई नया उत्पाद तैयार किया जाता है. किसी भी चीज में कम्युनिस्ट पार्टी की सबसे पहले भूमिका होती है. इस तरह पार्टी फायदे और नुकसान को संभालती है.
चीन मानता है कि जब तक गांव में परिवर्तन नहीं आएगा तब तक सत्ता में रहना बड़ा मुश्किल होगा. अगर गांव में परिवर्तन हो गया और लोगों की आय बेहतर हो गई तो विपक्ष की आवाज वैसे भी नहीं रहेगी, लेकिन अगर खुद को राष्ट्र ही नहीं, पूरे विश्व स्तर पर एक बड़ी शक्ति की तरह रखना है तो अपने लोगों को उसी तरह से आर्थिक रूप में सशक्त बनाना होगा.
गांव के सचिव ने की एबीपी न्यूज से बात
मेंगला काउंटी के एक गांव में कम्युनिस्ट पार्टी के एक स्थानीय सचिव लुओ योंगचाई ने बताया, ''हम सीपीसी संगठन के नेतृत्व में मानव संसाधन, उद्योग और अन्य अभियानों के पुनरुद्धार के माध्यम से अपने गांव का विकास करते हैं. गरीबी उन्मूलन अभियान से पहले चिकित्सा देखभाल, शिक्षा और पेयजल की स्थिति अच्छी नहीं थी, लेकिन अब स्थिति में काफी सुधार हुआ है.''
गांव की महिला यांग जिंगफेंग ने बताया, ''हमारा गांव बेहतर होता जा रहा है. कुछ साल पहले सड़कों और घरों की हालत खराब थी. अब आप बड़े बदलाव देख सकते हैं. यहां कृषि उद्योग भी है जो गांव को समृद्ध बनाता है.''
चीन से लाओस जाने वाली ट्रेन का सफर
सीमा के गांव तक पहुंचने वाली सड़क के साथ ट्रेन की सुविधा भी है जो सीधे लाओस पहुंचा देती है. ट्रेन भी ऐसी कि टिकट के साथ पासपोर्ट दिखाकर पड़ोसी देश में जाया जा सकता है. एशिया के अधिकतर देशों में अपने-अपने राज्य में अपनी-अपनी ट्रेन हैं, लेकिन चीन एक ऐसा देश है, जिसने देश ही नहीं, आसपास के देश तक अपनी फास्ट ट्रेन दौड़ा दी है.
160 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से दौड़ने वाली यह इंटरनेशनल फास्ट ट्रेन लाओस को चीन से जोड़ देती है. इस ट्रेन की वजह से चीन से लाओस पहुंचने में समय पहले के मुकाबले आधे से कम लगता है. यह ट्रेन पहाड़ों और सुरंगों से होकर गुजरती है.
ट्रेन में केवल चीन के ही नहीं, बल्कि आसपास के कई देशों के लोग भी सफर करते हैं. ट्रेन के सफर के दौरान आसपास के देशों के यात्रियों ने बताया कि यह उनके लिए सुविधाजनक और किफायती भी है. चीन के लिए यह ट्रेन इस लिहाज से भी फायदे का सौदा है कि इससे उसके व्यापार को लाभ मिलता है.
ट्रेन में ही खाने-पीने की सुविधा के लिए काउंटर होते हैं, जहां से सामान खरीदा जा सकता है. चुनिंदा स्टेशनों पर ही ट्रेन रुकती है. रेलवे कर्मचारियों के साथ पुलिस भी रहती है. इस ट्रेन के जरिये चीन ने अपना मकसद भी पूरा किया है. विश्व स्तर की सुविधा देकर पड़ोसी देश को उधार भी दिया है. इससे छोटे देशों को फायदा होता है लेकिन चीन का प्लान 'दबदबा' बनाने का ज्यादा है, जिनमें वो बड़े ही शांत तरीके से घुस रहा है.
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