नई दिल्ली: चीनी संविधान में ऐसा संशोधन किया गया है जिससे ये पड़ोसी देश सिंगल पार्टी सिस्टम से 'तानाशाही' में तब्दील हो गया. चीन के वर्तमान राष्ट्रपति के लिए कार्यकाल की मियाद ख़त्म कर दी गई है. इसका मतलब ये है कि वे जबतक चाहेंगे, राष्ट्रपति रहेंगे. इसके मायने ये भी हैं कि शी जब तक जीवित रहेंगे, वही चीन के राष्ट्रपति रहेंगे.
3000 में से महज़ पांच ने किया शी का विरोध
शी को जीवनभर के लिए राष्ट्रपति पद देने वाले संवैधानिक संशोधन पर चीन की नेशनल पीपल कांग्रेस के 3000 सदस्यों ने वोट किया. 2,957 लोगों ने तालियों की गड़गड़ाहट के बीच इसके पक्ष में वोट डाला जिससे साफ है कि ड्रैगन के नाम से भी जाने जाने वाले इस पड़ोसी देश में अब बस एक ही नाम काफी है- शी जिनपिंग.
जिन्होंने इस सख्स का विरोध करने की कोशिश की उनमें नेशनल पीपल कांग्रेस के महज़ पांच सदस्य शामिल हैं जिनमें तीन ने वोट नहीं डाला और दो ने इस संशोधन के खिलाफ़ वोट किया. जिन पांच लोगों ने शी का विरोध किया उनकी पहचान साफ नहीं हो पाई है और इसकी उम्मीद भी नहीं जताई जा रही है.
बराबर हुआ माओ और शी का कद
ऐसे ही दो संशोधन और किए गए जिससे शी मॉडर्न चीन के जनक माओ के कद के नेता बन गए. इन संशोधनों के सहारे चीनी संविधान में शी के विचार को उनके नाम शामिल किया गया. इससे पहले ऐसे अबतक महज़ दो चीनी नेताओं के मामले में हुआ है. वहीं शी के नेतृत्व में एक सुपरवाईज़री कमिटी का भी गठन किया गया है. इसका काम पार्टी के सदस्यों और नौकरशाहों की जांच करना होगा.
अमेरिकी सपने के नक्शेकदम पर चीन
चीन को इतनी ताकत दिए जाने के पीछे वो अमेरिकी सपना है जो पिछले चुनाव में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने देश को बेचा था. अमेरिकी सपने के तर्ज पर चीनी पार्लियामेंट के चेयरमैन झांग जियांग ने कहा कि देश को शी के कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा होना चाहिए ताकि चीन को फिर से महान बनाया जा सके. आपको बता दें कि 2017 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में ट्रंप ने अमेरिका को Lets Make America Great Again (चलो अमेरिका को फिर से महान बनाएं) का नारा दिया था.
शी हैं सही 'रास्ता'
चीनी कांग्रेस के एक सदस्य ने शी के समर्थन में ये तक कह डाला कि जब आपको 'सही रास्ता' मिल गया है तो उसे बदलने की क्या दरकार है. इससे वहां के नेताओं की शी को लेकर भावना साफ होती है. चीन दुनिया की दूसरी सबसे ताकतवर अर्थव्यवस्था है और देश में शी को माओ के बाद का दूसरा सबसे ताकतवर नेता माना जा रहा है. ऐसे में इतने ज़ोरदार तरीके से उनके पक्ष में वोट पड़ना उनकी ताकत को लेकर तमाम आशंकाओं पर विराम लगा देता है.
'ये चीन को तानाशाही की ओर ले जाएगा'
आलोचकों का कहना है कि शी को आजीवन सत्ता सौंपना चीन को तानाशाही की ओर ले जाएगा. आपको बता दें कि इससे पहले चीन में राष्ट्रपति का कार्यकाल दो बार तक सीमित था. न्यूज़पेपर से रिटायर्ड एक एडिटर ली डैटॉन्ग ऐसे ही विरोध के स्वर उठाने वालों में शामिल हैं. ली का कहना है कि 2000 से ज़्यादा कांग्रेस के सदस्य कठपुतलियों की तरह बर्ताव कर रहे हैं. ये हमें माओ युग में धकेलने वाला फैसला है.