अभी हाल ही में जासूसी बैलून मामले में चीन और अमेरिका के बीच विवाद पैदा हो गया. अब फिलीपींस ने भी चीन पर 'सैन्य ग्रेड' की लेजर लाइट का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है. फिलीपींस का कहना है कि चीन ने सैन्य-ग्रेड लेजर लाइट का इस्तेमाल करते हुए उसके देश के जहाज को रोकने की कोशिश की है. इससे पहले रूस यूक्रेन युद्ध में भी लेजर लाइट के इस्तेमाल का दावा किया जा चुका है.
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर ये पूरा मामला क्या है? लेजर हथियार होते कैसे हैं और दुनिया में किन देशों के पास लेजर हथियार हैं?
अब जानते हैं कि आखिर क्या है पूरा मामला
इस सोमवार यानी 13 अगस्त को फिलीपींस ने चीनी तट रक्षकों पर आरोप लगाया कि चीन ने विवादित चीन सागर में फिलीपींस तटरक्षक नाव पर लेजर लाइट वेपन का इस्तेमाल किया है. इसका इस्तेमाल करने के कारण जहाज चला रहे क्रू को कुछ देर के लिए दिखाई देना बंद हो गया था.
हालांकि अब तक ये पता नहीं चल पाया है कि आखिर चीनी पक्ष ने किस तरह के लेजर हथियार का इस्तेमाल किया था. लेकिन इसके इस्तेमाल पर संयुक्त राष्ट्र ने इन पर रोक लगाई हुई है क्योंकि यह आंखों की रोशनी को नुकसान पहुंचा सकता है. यही कारण है कि चीन के इस एक्शन का अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और जर्मनी जैसे देशों ने तत्काल विरोध किया.
हालांकि चीन ने फिलीपींस के क्रू पर किसी भी खतरनाक लेजर हथियार के हमले से इनकार कर दिया. चीन का कहना है कि उन्होंने जहाज को रोकने के लिए किसी खतरनाक लेजर का नहीं बल्कि "हैंड-हेल्ड लेज़र स्पीड डिटेक्टर और हैंड-हेल्ड ग्रीनलाइट पॉइंटर" का इस्तेमाल किया था.
लेजर हथियार होते कैसे हैं?
दुनिया में बढ़ रही टेक्नोलॉजी के साथ साथ युद्ध और हथियार के तरीके भी बदल रहे हैं. धीरे धीरे पारंपरिक हथियारों की जगह दूर से हमला करने वाले हथियार विकसित हो रहे हैं. भविष्य में युद्ध अत्यधिक ऊर्जा वाले हथियारों से लड़ा जाएगा.
चीन ने मार्च 2022 में एक माइक्रोवेव मशीन रिलेटिविटी क्लिनस्ट्रोन एम्प्लिफायर विकसित की है जो अंतरिक्ष में सैटेलाइट को जाम या तबाह कर सकती है. इसके अलावा साल 2017 में रूसी मीडिया ने लेजर हथियार जदीरा का जिक्र करते हुए बताया था ये हथियार 5 किलोमीटर दूर मौजूद ड्रोन को 5 सेकेंड के भीतर मार सकती है. साथ ही मिसाइलों को जलाकर भस्म कर सकती है.
साल 2018 रूस ने ही लेजर हथियार ‘पेरेसवेट’ का जिक्र किया था. यह लेजर हथियार पृथ्वी से 1500 किलोमीटर की ऊंचाई पर मौजूद सैटेलाइटों को अंधा बना सकता है. इसके साथ ही यह फाइटर जेट के पायलट को अंधा कर सकता है.
कैसे इस्तेमाल किया जाता है लेजर हथियार
लेजर हथियार इंफ्रारेड लाइट की किरण भेजकर अपने टारगेट को गर्म करता है और तब तक गर्म करता रहता है जब तक वह जलकर खाक न हो जाए. हालांकि बारिश, कोहरे या बर्फ में इसका इस्तेमाल करने से यह लेजर बीम अपने टारगेट से भटक सकती है.
किन देशों के पास हैं ये हथियार
भारत: साल 2021 में डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन की तरफ से बताया गया था कि हमारे देश में लेजर वेपन डायरेक्शनली अनरिस्ट्रिक्टेड रे गन अरे, यानी DURGA-2 बनाई जा रही है. इस लेजर हथियार का इस्तेमाल थल, नौसेना और वायुसेना तीनों ही कर सकेंगें. इस हथियार को लेकर जो जानकारी सामने आई है उससे यह पता चलता है कि दुर्गा-2 लेजर तकनीक पर आधारित तंत्र होगा. इसकी क्षमता 100 किलोवॉट होगी और इसके इस्तेमाल से लेजर बीम के जरिए किसी भी ड्रोन जैसे ऑब्जेक्ट को डेढ़ से दो किमी की ऊंचाई पर हवा में ही नष्ट किया जा सकेगा
अमेरिका: साल 2014 में अमेरिकी नौसेना ने सबसे पहली बार लेजर वेपन बनाया था. इसे ‘लॉज’ नाम दिया गया. इस हथियार को USS पेंस पर तैनात किया गया था. वर्तमान में बोइंग और जनरल अटॉमिक्स इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सिस्टम अमेरिका का सबसे ताकतवर लेजर हथियार बना रही हैं जो कि 300 किलोवाट का होगा. यह हथियार इतना खतरनाक होगा कि इसमें किसी भी ड्रोन, मिसाइल और फाइटर जेट को पलक झपकते ही मार गिराने की ताकत होगी.
इजराइल: इजराइल भी उन देशों में शामिल है जिसके पास लेजर वेपन है. इस देश ने साल 2021 के अप्रैल में पहली बार लेजर मिसाइल डिफेंस सिस्टम ‘आयरन बीम’ का सफलतापूर्वक परीक्षण किया. आयरन बीम में ड्रोन, मोर्टार, रॉकेट और एंटी टैंक मिसाइलों को पहले हमले में ही तबाह करने की क्षमता है. इस हथियार की सबसे खास बात जो इजरायल के प्रधानमंत्री नेफ्ताली बेनेट ने बताई थी वह ये है कि इसमें इसके एक हमले में केवल 267 रुपए ही खर्च आएगा.
चीन: चीन ने भी इस साल अपने जे-20 फाइटर जेट को लेजर हथियारों से लैस करने की घोषणा की है. इसके अलावा चीन लेजर सिस्टम पर काम कर रहा है. इनके हमले से संचार, निगरानी और GPS सैटेलाइट को बर्बाद किया जा सकता है.
विवादित सागर की जमीन पर चीन के कब्जे से परेशान फिलीपींस
दरअसल दक्षिण चीन सागर के विवादित इलाकों में कई जमीनी संरचनाओं पर चीन ने अपना दावा किया हुआ है. इस दावे ने कई देशों की चिंता बढ़ा दी है. चीन संसाधनों से भरे हुए दक्षिण सागर के सभी जलमार्गों पर अपना दावा करता रहा है. ये मार्ग अंतरराष्ट्रीय कारोबार के लिहाज बेहद महत्वपूर्ण और व्यस्त रूट है.
इस मार्ग से हर जहाज से खरबों डॉलर का सामान गुजरता है. इन रास्तों के दावेदारों में फिलीपींस, वियतनाम, मलेशिया, ब्रुनेई और ताइवान भी शामिल हैं. वहीं जहां तक रही चीन की बात तो साल 2012 में संयुक्त राष्ट्र समर्थित एक ट्राइब्यूनल ने फैसला सुनाते हुए कहा था इस रूट पर चीन के दावों का कोई आधार नहीं है.
लेकिन पिछले कुछ सालों में चीन ने उस विवादित हिस्से में रीफ पर कृत्रिम द्वीप बना लिए हैं और उनके साथ ही छावनियां और हवाई पट्टियां भी बना रहा है. फिलीपींस पहले भी कई बार चीन पर तटरक्षक बल और समुद्री मिलिशिया पर मछुआरों की नाव और दूसरे जहाजों पर हमला करने का आरोप लगता रहा है.
फिलीपींस नहीं छोड़ेगा जमीन
वर्तमान में बीजिंग के साथ तनाव को लेकर फिलीपींस के राष्ट्रपति फर्डिनेंड मार्कोस जूनियर ने शनिवार यानी 18 फरवरी को कहा, 'वे अपने देश का एक इंच भी नहीं खोएंगे.'
चीन के अलग-अलग देशों से एक के बाद एक विवाद
दरअसल कुछ दिनों पहले ही अमेरिका के आसमान पर एक चाइनीज बैलून दिखाई दिया था जिसे लेकर अमेरिका और चीन के बीच विवाद छिड़ गया है. अमेरिका ने उस बैलून को जासूस बैलून बताते हुए सैन्य कार्रवाई के दौरान मार गिराया था जिस पर चीन की ओर से तीखी प्रतिक्रिया दी गई है.
इसके बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने बीते शुक्रवार यानी 17 फरवरी को कहा कि कथित चीनी स्पाई बैलून को गिराने के लिए वो 'माफी नहीं मांगेंगे.' वहीं दूसरी तरफ चीन इस बात का खंडन कर रहा है कि उन्होंने कोई स्पाई बैलून नहीं भेजा था.
इस घटना के बाद जापान ने भी घोषणा की कि वह अतीत में आसमान में उड़ने वाली अज्ञात वस्तुओं का विश्लेषण करेगी. जापान को शक है कि चीन ने 2019 के बाद से उनके हवाई क्षेत्र में तीन स्पाई बैलून छोड़े थे.