नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी फूट की ओर, ओली की कुर्सी बचाने के लिए चीनी राजदूत की बढ़ी सक्रियता
नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के दो धड़ों के बीच मतभेद उस समय बढ़ गया था जब प्रधानमंत्री ने एकतरफा फैसला करते हुए संसद के बजट सत्र का समय से पहले ही सत्रावसान करने का फैसला किया.
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काठमांडू: नेपाल की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) विभाजन की ओर बढ़ती प्रतीत हो रही है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' के बीच आधा दर्जन से अधिक बैठकें होने के बाद भी उनके मतभेद नहीं दूर हो सके हैं. उम्मीद की जा रही है कि 68 साल के ओली के राजनीतिक भविष्य के बारे में शुक्रवार को पार्टी की स्थायी समिति की बैठक के दौरान फैसला किया जा सकता है. इस बीच नेपाल में चीनी राजदूत होउ यान्की की सक्रियता बढ़ गयी है ताकि ओली की कुर्सी को बचाया जा सके. माना जाता है कि ओली का झुकाव चीन की ओर है.
बुधवार को एनसीपी की 45 सदस्यीय स्थायी समिति की एक महत्वपूर्ण बैठक शुक्रवार तक के लिए टाल दी गयी. यह लगातार चौथा मौका है, जब पार्टी की बैठक टाल दी गयी ताकि पार्टी के दोनों नेताओं को मतभेदों को दूर करने के लिए पर्याप्त समय मिल सके.
पीएम आवास पर चीनी राजदूत काठमांडू पोस्ट की खबर के अनुसार होउ यान्की ने ओली और प्रचंड के बीच मध्यस्थता के लिए गुरुवार को पूर्व प्रधानमंत्री से उनके आवास पर मुलाकात की. प्रचंड के एक सहयोगी ने इस मुलाकात की पुष्टि की. सूत्रों के अनुसार यह मुलाकात करीब 50 मिनट चली. पिछले कुछ दिनों में चीनी राजदूत कई वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात कर चुके हैं. कई राजनीतिक दलों के नेताओं ने चीनी राजदूत द्वारा की जा रही इन मुलाकातों की आलोचना की है और कहा कि यह नेपाल के आंतरिक राजनीतिक मामलों में हस्तक्षेप है.
प्रचंड खेमे को वरिष्ठ नेताओं और पूर्व प्रधानमंत्रियों माधव कुमार नेपाल तथा झालानाथ खनल का समर्थन हासिल है. यह खेमा ओली के इस्तीफे की मांग कर रहा है और उसका कहना है कि ओली की हालिया भारत विरोधी टिप्पणी "न तो राजनीतिक रूप से सही थी और न ही राजनयिक रूप से उचित थी."
क्या है विवाद नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के दो धड़ों के बीच मतभेद उस समय बढ़ गया था जब प्रधानमंत्री ने एकतरफा फैसला करते हुए संसद के बजट सत्र का समय से पहले ही सत्रावसान करने का फैसला किया. काठमांडू पोस्ट की खबर के अनुसार ओली और प्रचंड के बीच कई दौर की बातचीत होने के बाद भी कोई सहमति नहीं बन सकी. इस बीच, विरोध प्रदर्शनों के लिए निर्देश नहीं देने के संबंध में प्रचंड के साथ समझौता होने के बावजूद बुधवार को देश भर में ओली के समर्थन में छिटपुट प्रदर्शन हुए.
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