COP27 सम्मेलन: प्राकृतिक आपदा का शिकार होने पर पाकिस्तान को मिलेगी आर्थिक मदद, लेकिन भारत को नहीं?
दुनिया के गरीब और विकासशील देशों को विकसित देशों के विकास का खामियाजा भयंकर प्राकृतिक आपदाओं के तौर पर झेलना पड़ा है.अब सीओपी27 में ये देश लॉस एंड डैमेज फंड बनाने को राजी हो गए हैं.
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दुनिया में जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने की रणनीति तैयार करने में अहम भूमिका निभाने वाला संयुक्त राष्ट्र का सीओपी 27 सम्मेलन इस बार इतिहास में याद रखा जाएगा. आखिरकार 30 साल बाद ही सही इस जलवायु सम्मेलन में दुनिया के विकसित देश अपने विकास की रफ्तार में जलवायु परिवर्तन के लिए अपनी जवाबदेही मानने के लिए तैयार हुए हैं.
इसी के तहत ये देश जलवायु परिवर्तन की वजह से आने वाली प्राकृतिक आपदाओं का नुकसान झेलने वाले गरीब देशों के लिए लॉस एंड डैमेज फंड बनाने के लिए राजी हुए हैं. इस फंड के जरिए प्राकृतिक आपदाओं की वजह से तबाही की कगार पर पहुंचे दुनिया के बेहद गरीब और विकासशील देशों को मदद दी जाएगी.
विकासशील देशों की कतार में दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत भी है और यहां आए दिन आने वाली प्राकृतिक आपदाओं से होने वाला नुकसान भी नया नहीं है, लेकिन इसके बावजूद भारत को लॉस और डैमेज फंड मिलने के आसार नहीं है. आखिर भारत क्यों इस फंड के दायरे से बाहर है? इसके लिए पहले हमें सीओपी की भूमिका समझनी होगी.
क्या है सीओपी?
आए दिन कहीं बाढ़, कहीं तूफान और कहीं सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं के आने से दुनिया खौफ के साए में है. इसके पीछे एक वजह जलवायु परिवर्तन ही है. अब दुनिया को न चाहते हुए भी इस मसले पर संजीदा होना पड़ा है, क्योंकि इससे मानव जीवन के साथ ही धरती का वजूद भी खतरे में पड़ गया है. यही वह वजह रही जिससे इस दिशा में ठोस कदम उठाने, फैसले लेने और उन्हें अमल में लाने के लिए एक संस्था की जरूरत महसूस की गई.
इस गंभीर खतरे को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र सामने आया और जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क (United Nations Framework Convention On Climate Change- UNFCCC) की सबसे सर्वोच्च संस्था कॉफ्रेंस ऑफ पार्टीज यानी सीओपी (COP) बनाई गई. इसके बनने के बाद से ही हर साल जलवायु परिवर्तन पर सीओपी की बैठकें होती हैं.
1995 में सीओपी की पहली बैठक जर्मनी के बर्लिन में हुई थी. आमतौर पर सीओपी की बैठक इसके सचिवालय की सीट बॉन में होती है, जब तक कि कोई पार्टी सत्र की मेजबानी करने की पेशकश नहीं करती. इसका सचिवालय 1992 में जिनेवा में बनाया गया था, लेकिन साल 1996 से ये बॉन में है. सीओपी की अध्यक्षता यूएन के 5 मान्यता दिए हुए देशों अफ्रीका, एशिया, लैटिन अमेरिका, कैरेबियन, मध्य, पूर्वी और पश्चिमी यूरोप और अन्य में रोटेट होती रहती है.
इसी तरह सीओपी के आयोजित होने की जगहें भी इन समूहों के बीच शिफ्ट होती रहती हैं. मिस्र के शर्म अल-शेख में 6-18 नवंबर 2022 के बीच सीओपी का 27वां सम्मेलन आयोजित किया गया. हालांकि इस दौरान उठाए गए कई मुद्दों में एक राय कायम न हो पाने से ये सम्मेलन एक दिन और 20 नवंबर तक खिंच गया था.
लॉस एंड डैमेज फंड पर रजामंदी
सीओपी 27 सम्मेलन में इस बार जलवायु परिवर्तन से होने वाले लॉस एंड डैमेज से निपटने के लिए फंड सुरक्षित करने की मांग पर ठोस फैसला लिया गया. दरअसल दुनिया के गरीब और विकासशील देश बीते 30 साल से इस फंड की मांग कर रहे थे. आखिरकार इस सम्मेलन में विश्व के विकसित देशों ने प्राकृतिक आपदा का दंश झेल रहे गरीब और विकासशील देशों की मदद करने पर पहली बार हामी भरी है. इसके साथ ही ये साफ हो गया कि विकसित देशों ने विकास की दौड़ में दुनिया में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में बढ़ोतरी की जवाबदेही स्वीकार की है.
इस वजह से धरती पर प्राकृतिक आपदाओं आती रही हैं. अब ये देश उसका हर्जाना देने के लिए तैयार है. इन देशों को इसके लिए राजी होना भी चाहिए था, क्योंकि अमीर देशों के कार्बन उत्सर्जन का नतीजा इसमें बगैर किसी भागीदारी के विश्व के गरीब और विकासशील देश दशकों से भुगत रहे हैं. हालांकि प्राकृतिक आपदाओं की मार झेल रहे विकासशील देशों को अभी इस फंड की रकम के लिए इंतजार करना होगा. वहीं विकसित देशों के इस फंड का फायदा भारत, चीन, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका जैसे विकासशील देशों को मिलने के कम ही आसार हैं.
जब भारत ने कहा जीवाश्म ईंधन का हो कम इस्तेमाल
सीओपी 27 सम्मेलन में लॉस एंड डैमेज फंड के अलावा अन्य अहम मुद्दों पर अधिक प्रगति नहीं हो पाई. प्राकृतिक आपदाओं के लिए जवाबदेह वायुमंडल के बढ़ते तापमान पर काबू करने के लिए कोई ठोस फैसला इस सम्मेलन में भी नहीं लिया गया. वायुमंडल का तापमान बढ़ाने में योगदान देने वाले तेल, जीवाश्म गैस और कोयले में कटौती लाने को लेकर भी किसी तरह की कोई लालसा नहीं देखी गई.
भारत के जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल कम करने के प्रस्ताव का पहले से ही विरोध कर रहे विकसित देशों के सुर में मंच पर मौजूद अन्य देशों ने भी सुर मिलाया. तेल उत्पादक देशों ने भारत के इस प्रस्ताव का खासा विरोध किया. जलवायु परिवर्तन को लेकर साल 2015 में पेरिस समझौते पर सहमति बनी थी. इस पर भारत के साथ दुनिया के 200 से अधिक देशों ने अपनी रजामंदी थी. इसका उद्देश्य दुनिया के बढ़ते तापमान पर काबू पाना था. इसके तहत वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री से 2 डिग्री से अधिक न बढ़ने देने का वादा किया गया था.
इसका अहम कदम ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करना रहा था. बीते साल का COP26 ग्लासगो का क्लाइमेट पैक्ट जीवाश्म ईंधन और कोयले के इस्तेमाल को कम करने की सटीक योजना बनाने वाला पहला जलवायु समझौता बना. हालांकि सीओपी 27 में शामिल हुए दुनिया के देश बीते साल के सीओपी 26 के तय टारगेट पर ही अटके रह गए.
इसमें ग्लोबल वॉर्मिंग से बचने के लिए तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखने के लिए ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने का लक्ष्य रखा गया था. उधर संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि ग्लोबल वॉर्मिंग को 1.5 डिग्री तक के दायरे में सीमित रखने के लिए 2030 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 45 फीसदी की कमी करना जरूरी है.
#COP27 has taken an important step towards justice.
— António Guterres (@antonioguterres) November 20, 2022
I welcome the decision to establish a loss and damage fund and to operationalize it in the coming period.
Clearly this will not be enough, but it is a much-needed political signal to rebuild broken trust. pic.twitter.com/5yhg5tKXtJ
फिलहाल विकसित देश देंगे फंड
सीओपी27 में लॉस एंड डैमेज फंड की मंजूरी पर यूएन महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने ट्वीट किया, “मैं लॉस एंड डैमेज फंड को मंजूरी मिलने के कदम और आने वाले वक्त में इसके जारी होने के फैसले का स्वागत करता हूं. मैं साफ तौर पर इस बात को भी मानता हूं कि ये काफी नहीं होगा. लेकिन टूटे हुए विश्वास को दोबारा से जोड़ने के लिए ये एक बेहद जरूरी संकेत है.”
समझौते के मुताबिक शुरुआत में इस फंड में विकसित देश, प्राइवेट, गवर्नमेंट ऑर्गेनाइजेशन और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान ही फंड देंगे. गौरतलब है कि जलवायु परिवर्तन पर सबसे बड़ा मुद्दा वित्तीय सहयोग पर सहमति नहीं बन पाना ही रहा है. साल 2009 में विकसित देशों ने विकासशील देशों को कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए एक टारगेट दिया था.
इसे 2020 तक पूरा किया जाना था. इसके लिए इन देशों ने 100 अरब डॉलर देने का वादा किया था. ये टारगेट पूरा नहीं हो पाया और इसके लिए अब 2023 का टारगेट तय किया गया है. गरीब देश लॉस और डैमेज की के लिए फंड की मांग करते रहे हैं. दरअसल बॉन में हुए जलवायु सम्मेलन से पैसे की अदायगी वाली बात को हटा दिया गया था, क्योंकि अमेरिका जैसे कुछ विकसित देश को ये खौफ सताता रहा है कि अगर अगर उन्हें इस तरह के फंड देने पड़े तो दशकों तक वो इस फंड को देने के लिए जवाबदेह हो जाएंगे.
अब जब ये देश फंड देने की बात पर राजी हुए है तो यूरोपियन यूनियन और अमेरिका सीओपी27 में मांग कर रहे थे कि विश्व के चीन जैसे पॉल्यूशन फैलाने वाले बड़े देश को भी इस फंड में भागीदारी करनी चाहिए. उनका कहना था कि 1992 में चीन और सऊदी अरब जैसे देशों को विकासशील देश माना गया था.
अब 3 दशकों के अंदर ही इन देशों ने काफी प्रगति की है. जहां चीन अमेरिका के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है इसके साथ ही उत्सर्जन के मामले में भी वह दूसरा है. हालांकि चीन, भारत और सऊदी अरब जैसे देशों के फंड में भागीदारी की COP27 के फाइनल समझौते में कोई जिक्र नहीं है. हालांकि इसमें फंड के लिए रकम जुटाने के तरीके बढ़ाने की बात जरूर कही गई है.
फंड पर नहीं था एजेंडा
19 नवंबर को सीओपी27 के आखिरी दिन विकसित देश प्राकृतिक आपदा से जूझ रहे गरीब देशों को लॉस एंड डैमेज फंड देने की बात पर राजी हो गए थे, लेकिन इस पर औपचारिक सहमति नहीं बन पाई थी. ये प्रस्ताव जी-77 के देशों ने रखा था जिनमें चीन -भारत जैसे कम विकसित देश और छोटे द्वीपीय देश शामिल थे.
कमजोर देशों ने कहा था कि वे COP27 के मंच को लॉस एंड डैमेज फंड लिए बगैर नहीं छोड़ेंगे. गरीब देशों का कहना था कि वो अमीर देशों में हो रहे विकास की वजह से हो रहे अधिक कार्बन उत्सर्जन का खामियाजा झेल रहे है, इसलिए इस मुसीबत से निपटने के लिए इन देशों ने उनकी मदद करनी चाहिए. ये फंड बाढ़, तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं से विस्थापित लोगों को स्थानांतरित करने जैसे कामों के लिए भारत सहित गरीब और विकासशील देशों की लंबे वक्त से मांग थी.
विकासशील देशों खासकर अमेरिका ने इस नए फंड का विरोध इस डर से किया था कि यह उन्हें जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाले बड़े नुकसान के लिए कानूनी तौर पर जवाबदेह बना देगा .इस वजह से ये फंड सीओपी27 के एजेंडे में नहीं था. विकसित देशों का ये भी कहना था कि इस फंड के लिए जब तक बड़े संपन्न विकासशील देश रकम में भागीदारी नहीं करेंगे वो भी इसके लिए पैसा नहीं देंगे. इक तरह से विकसित देशों का इशारा भारत- चीन जैसे देशों की तरफ था. हालांकि हालांकि सीओपी 27 के आखिरी फैसले में विकसित देशों की इस बात का कोई जिक्र नहीं है.
भारत जैसे देशों को क्यों नहीं मिलेगा ये फंड
भले ही डैमेड एंड लॉस फंड देने को लेकर विकसित देश राजी हो गए हैं, लेकिन अभी इस फंड को बनाने, उसके इस्तेमाल के नियम-कायदों को तय करने, इसके लिए पैसा इकट्ठा करने और बांटने में ही कम से कम एक साल तो लग ही जाएगा.
वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट इंडिया की क्लाइमेट प्रोग्राम डायरेक्टर उल्का केलकर के मुताबिक, “फंड के लिए अभी महज कमेटी ही बनाई गई है, फंड के लिए नियम बनाने में एक साल तो लगेगा, लेकिन कई देशों के फंडिंग का ऐलान करना एक अच्छी खबर है. फंड के लिए जितनी जल्दी नियम तय होंगे, देशों को मदद उतनी जल्दी मिलेगी.”
इस फंड की रकम अहम तौर पर द्वीपीय देशों सहित गरीब देशों को दी जाएगी. जलवायु परिवर्तन से बेहद बुरी तरह प्रभावित मध्यम आय वाले देशों के लिए भी ये फंड दिया जाएगा, लेकिन भारत को इस फंड से मदद मिलने पर सवाल है. हालांकि भारत ने इस फंड के लिए कहा भी नहीं है.
भारत के साथ ही चीन, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका के देश भी इस फंड के दायरे से बाहर होंगे. गरीब और कमजोर अर्थव्यवस्था वाले पाकिस्तान और मालदीव जैसे देशों ने इस फंड को लेकर खुशी जाहिर की है.
भारत के पास पहले से इंतजाम
भारत को लॉस और डैमेज फंड शायद ही मिले, लेकिन उसे इसकी परवाह भी नहीं करनी होगी, क्योंकि देश को जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क (UNFCCC) के पहले से मौजूद क्लाइमेट एडेप्टेशन फंड (आगे की तैयारी के लिए वाला फंड) सबसे अधिक फंड मिल रहा है. नाबार्ड यानी राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक एडेप्टेशन फंड के प्रस्ताव देता है.
भारत के कई सूबों में इसके प्रोजेक्ट चल रहे हैं. एडेप्टेशन फंड (एएफ) की स्थापना 2001 में क्योटो प्रोटोकॉल के विकासशील देशों में ठोस एडेप्टेशन प्रोजेक्ट्स और प्रोग्राम को रकम मुहैया कराने के लिए की गई थी जो खास तौर पर ये जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के प्रति संवेदनशील हैं.
केलकर कहती हैं कि भारत में किसी भी तरह की प्राकृतिक आपदा आने पर ऐसा कम ही होता है कि देश दूसरे देशों की तरफ मदद के लिए देखता है. भारत खुद के बलबूते पर ही इस तरह की परेशानियों से उबरता है. ऐसे में लॉस एंड डैमेज फंड की देश को अधिक जरूरत भी नहीं है. ऐसे में इस फंड के सबसे अधिक जरूरत वाले देशों को ये मिले तो ये अच्छी बात है.
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