रूस ने दुनिया की पहली कोरोना वैक्सीन बनाने का दावा कर दिया है. लेकिन रूस के अलावा भी अभी दुनिया के कई देशों में वैक्सीन का ट्रायल चल रहा है. कुछ देशों में ये ट्रायल फेज-3 तक पहुंच चुका है. चीन, अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया जैसे देश इस मामले में सबसे आगे है. लेकिन रूस की वैक्सीन विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के उन छह वैक्सीन की लिस्ट में नहीं है जो थर्ड फेज के ट्रायल में पहुंच चुके हैं.
चीन की सीनोफॉर्म कंपनी कोरोना वैक्सीन का फेज-3 का ट्रायल कर रही है. अमेरिका की दो कंपनियां मॉर्डना और फाइजर बायोएनटैक का फेज-3 ट्रायल चल रहा है. ब्रिटेन में एस्ट्रोजेनिका-ऑक्सफोर्ड और ऑस्ट्रेलिया में एमसीआरआई की कोरोना वैक्सीन फेज-3 में है. इसके अलावा चीन की दो और कंपनियों सीनोबैक और कैनसीनो भी वैक्सीन का ट्रायल कर रही हैं.
रूस की वैक्सीन पर संदेह
रूस की कोरोना वैक्सीन को कई देश संदेह की दृष्टि देख रहे हैं. डब्ल्यूएचओ ने इस वैक्सीन पर अभी और जांच की जानी बाकी है. वहीं अमेरिका ने इसे रूस का प्रोपगेंडा करार दिया है. रूस के ऐलान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए अमेरिका के स्वास्थ्य मंत्री एलेक्स अजार ने कहा है कि कोरोना वायरस का पहला टीका बनाने की जगह कोरोना वायरस के खिलाफ एक प्रभावी और सुरक्षित टीका बनाना ज्यादा महत्वपूर्ण है.
वहीं इंपीरियल कॉलेज लंदन में रोग प्रतिरोधक क्षमता विज्ञान के प्रोफेसर डैनी आल्टमैन ने साइंस मीडिया सेंटर से कहा कि पूर्ण परीक्षण से पहले टीका जारी किए जाने से चिंताएं बढ़ गई हैं. सीएनएन ने उनके हवाले से कहा कि मानकों के अनुरूप तीसरे चरण के परीक्षण के बाद ही टीके को मंजूरी मिलनी चाहिए.
गमालेया रिसर्च इंस्टिट्यूट और रूस के रक्षा मंत्रालय ने सुयंक्त रूप से मिलकर ये वैक्सीन तैयार की है. इसका ट्रायल 18 जून को शुरू हुआ था जिसमें 38 स्वयंसेवी शामिल थे. इन सभी प्रतिभागियों में कोविड-19 के खिलाफ रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गई. पहले ग्रुप को 15 जुलाई और दूसरे ग्रुप को 20 जुलाई को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई.
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