वाशिंगटन: कोरोना का टीका अभी आया भी नहीं है लेकिन उससे पहले ही टीके को लेकर विवाद शुरू हो गया है. विवाद ये है कि जब टीका बनेगा तो पहले किस देश को मिलेगा? फ्रांस में बन रहे टीके पर अमेरिका नज़रें गड़ाए बैठा है. कम से कम सौ वैक्सीन पर दुनिया भर में काम चल रहा है. ऐसी ही एक रिसर्च फ्रांसिसी दवा कंपनी सेनोफ़ी कर रही है. लेकिन सेनोफी के CEO पॉल हडसन के बयान ने विवाद खड़ा कर दिया. हडसन ने कहा था कि अमेरिका के पास प्री ऑर्डर की पहली खेप पाने का अधिकार है क्योंकि उसने जोखिम में निवेश किया है.


दरअसल सेनोफी की रिसर्च में अमरीका की संस्था यूएस बायोमेडिकल ऐडवांस्ड रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट ऑथारिटी ने निवेश किया है. हडसन के बयान से फ्रांस सरकार ही नहीं यूरोपीय यूनियन भी नाराज़ हो गई है. फ्रांस सरकार ने कहा है कि ये मानवता का टीका है और बनने वाले टीके पर सभी का समान हक होना चाहिए. फ्रांस सरकार की नाराजगी की वजह से सेनोफी को बैकफुट पर आना पड़ा. मैं साफ कर देना चाहता हूं कि इसमें किसी देश को प्राथमकिता नहीं दी जाएगी.


अमेरिका में ही एक व्हीसल ब्लोअर ने आरोप लगाया है कि अमेरिका की तैयारी अधूरी है. व्हीसल ब्लोअर का कहना है कि अगर पूरी तैयारी ना की गई आने वाली सर्दियां मानव इतिहास की सबसे भयानक होंगी. वैक्सीन के लिए सप्लाई चेन, उसमें पड़ने वाले सामान की जरूरत होगी. शीशी, सीरींज, उनका डिस्ट्रिब्यूशन इसके लिए रणनीति चाहिए होगी. अमेरिकी सरकार के पास कोई रणनीति नहीं है. प्लान ना हुआ तो ये मुसीबत बन सकता है.


सवाल ये पूछा जा रहा है कि क्या अमेरिका अपने पैसों के बल पर वैक्सीन पर कब्जा करना चाहता है? अगर ऐसा है तो उन देशों का क्या जिनके पास इतनी आर्थिक ताकत नहीं है. वहीं दुनिया के 140 देशों के नेताओं, विशेषज्ञों ने पत्र लिखकर अपील की है कि कोरोना का टीका, जांच और टेस्ट से जुड़ी सामग्री फ्री होनी चाहिए. वहीं मांग ये भी की जा रही है कि जो भी कंपनी ये टीका बनाए वो इस पर पेटेंट कराकर कमाई ना करे.