कोरोना वायरस की महामारी के बीच नकली दवाइयों के कारोबार में इजाफा हो रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इस बारे में चेताया है. WHO ने कहा है कि कोरोना वायरस बीमारी से जुड़ी नकली दवाइयों का खतरनाक असर हो सकता है. महामारी की रोकथाम में कारगर दवा या वैक्सीन अभी तक बाजार में मुहैया नहीं है.
WHO टीम के पेरनेट बोरडेलिन स्टीव कहते हैं, "नकली दवाइयां इस बीमारी का इलाज नहीं करेंगी. इसके बजाए नुकसान का कारण साबित होंगी. हो सकता है कि उत्पाद तैयार करते वक्त जहरीले केमिकल का इस्तेमाल किया गया हो." दुनिया के कई देशों में लॉकडाउन के कारण दवा सप्लाई का तंत्र टूटना शुरू हो गया है. भारत में दवा बनानेवाली कंपनियों में औसत 50-60 फीसद काम हो रहा है. यहां से अफ्रीका को 20 फीसद दवाइयों की सप्लाई होती है मगर उत्पादन में कमी के कारण अफ्रीकी देश सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं. कंपनियों का कहना है कि दवाइयां तैयार करने में उन्हें जद्दोजहद करना पड़ रहा है. टैबलेट्स के लिए कच्चा माल अब बहुत महंगा हो गया है. जिसका भार बर्दाश्त करना उन्हें मुश्किल हो रहा है. इसका असर एंटी बॉयोटिक्स और एंटी मलेरिया जैसी बुनियादी दवाइयों पर पड़ रहा है. पाकिस्तान में मलेरिया से बचाव की दवा कलोरोक्वीन में इस्तेमाल होनेवाली सामग्री की कीमत 100 डॉलर होती थी मगर अब इसका दाम बढ़कर 1150 डॉलर प्रति किलो हो गया है. अफ्रीकी देश कांगो और कैमरून में बड़ी मात्रा में नकली कलोरोक्वीन दवा की बिक्री की बात सामने आ रही है.
कांगो में आम तौर पर 40 डॉलर में बिकने वाली दवा अब 250 डॉलर से ज्यादा में बेची जा रही है. हालांकि ब्रिटेन में रजिस्टर्ड दवा कंपनी 'ब्राउन एंड बर्क फार्मास्यूटिकल लिमिटेड' ने इस दवा से अपने संबंधों को नकारा है. नकली बताते हुए उसने अपने यहां बननेवाली इस दवा की खबर का खंडन किया है. WHO के स्टीव बताते हैं कि जब मांग और पैदावार के बीच असंतुलन होता है तब गैर मानक या नकली दवाइयों की मांग बढ़ जाती है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से जुड़ी कलोरोक्वीन और हाईड्रो कलोरोक्वीन के प्रभावकारी होने की खबर के बाद मलेरिया के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवा की मांग बढ़ गई है. हालांकि WHO ने कलोरोक्वीन और हाईड्रो कलोरोक्वीन को कोरोना वायरस के खिलाफ इस्तेमाल का सबूत नहीं होने की बात कही.
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