नई दिल्लीः चीन ने नोवल कोरोना वायरस के उत्पत्ति के ऊपर की जा रही शैक्षणिक रिसर्च के पब्लिकेशन्स पर प्रतिबंध लगाए हैं. ये दो चीनी विश्वविद्यालयों के द्वारा प्रकाशित एक केंद्रीय सरकार के निर्देश और ऑनलाइन नोटिस के अनुसार कहा जा रहा है जो कि बाद में वेबसाइट से हटा लिया गया.

नई नीति के तहत, कोविड -19 पर सभी शैक्षणिक पेपर प्रकाशन के लिए प्रस्तुत किए जाने से पहले अतिरिक्त अनुमति के अधीन होंगे. वायरस की उत्पत्ति पर किए गए अध्ययन को अतिरिक्त जांच करानी होगी और केंद्र सरकार के अधिकारियों द्वारा ये जांच अनुमोदित की जानी चाहिए.

चीनी सरकार की नई स्क्रूटनी की नीति कोरोना वायरस की उत्पत्ति के बारे में किए जा रहे शोध को रोकने की दिशा में उठाए कदम माने जा रहे हैं. चीन के वुहान से शुरू हुई इस महामारी ने दुनियाभर में 1 लाख से ज्यादा जानें ले ली हैं और विश्व में 17 लाख से ज्यादा लोग इस जानलेवा वायरस की चपेट में आ चुके हैं.

जनवरी के अंत से ही चीनी रिसर्चर्स ने कई अंतर्राष्ट्रीय प्रमुख मेडिकल जरनल्स में कोविड-19 से जुड़े लेख प्रकाशित किए हैं और इनके आधार पर कुछ बातें सामने आ पाई हैं. जैसे कि कब चीन के वुहान से ही मानव से मानव में इस वायरस के फैलने से जुड़े मामले सामने आए. इन प्रकाशनों के आधार पर चीन के आधिकारिक तथ्यों पर सवाल उठे हैं और चाइनीज सोशल मीडिया पर भी इसे लेकर काफी विवाद पैदा हुए हैं. और अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि चीन आधिकारिक तौर पर कोविड-19 से जुड़े रिसर्च के पब्लिकेशन्स पर सख्ती करने जा रहा है.

एक चाइनीज रिसर्चर ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि ये एक चिंताजनक कदम है और कोरोना वायरस से जुड़ी महत्वपूर्ण वैज्ञानिक रिसर्च के रास्ते में बाधा पैदा कर सकती है. उन्होंने कहा कि ये चीन के अधिकारियों और सरकार के मिलेजुले प्रयास हैं कि वो इससे जुड़ी बातों पर रोकथाम लगा सकें और ये परिदृश्य पैदा कर सकें कि इस महामारी की उत्पत्ति चीन में नहीं हुई. वहीं चीन की सरकार अब बिलकुल इस बात को बर्दाश्त नहीं करेगी कि बीमारी की उत्पत्ति के बारे में कोई भी स्टडी पूरी हो सके.

चीन के शैक्षणिक विज्ञान और तकनीकी विभाग से इस बारे में बात की गई तो उन्होंने कहा कि वायरस की उत्पत्ति के बारे में की जा रही किसी भी शैक्षणिक पेपर को कड़े और गहन तरीके से प्रबंधित किया जाएगा.

इस बारे में किसी भी पेपर को तीन तरह के चरणों से गुजरकर पब्लिकेशन तक पहुंचना होगा. इसकी शुरुआत विश्वविद्यालयों की शैक्षणिक कमिटियों से होगी. इसके बाद उन्हें शिक्षा विभाग के विज्ञान और तकनीकी विभाग के पास भेजा जाएगा. इसके बाद स्टेट काउंसिल की टास्क फोर्स के पास इन पेपर्स को पुनरीक्षण के लिए भेजा जाएगा. इन सब चरणों से पास होने के बाद ही विश्वविद्यालयों को टास्क फोर्स के जरिए अनुमति मिल पाएगी कि वो इन्हें जरनल्स में प्रकाशित करने के लिए सबमिट कर सकें.

चाइनीज यूनिवर्सिटी ऑफ हॉन्गकॉन्ग के एक मेडिसिन एक्सपर्ट ने बताया कि जब फरवरी में उन्होंने न्यू इंग्लैंड जरनल ऑफ मेडिसिन में अपना आलेख प्रकाशित कराया था तो इन सब तरह के अतिरिक्त पुनरीक्षण की कोई बात नहीं थी और उस समय इसे प्रकाशित कराना बेहद आसान था.