कोरोना पर ताइवानी तीर से तिलमिलाया चीन, वर्ल्ड हेल्थ असेंबली की बैठक पर है सबकी नजर
वर्ल्ड हेल्थ असेंबली अमेरिका और चीन के बीच कूटनीतिक जंग का अखाड़ा बनेगी.वर्ल्ड हेल्थ असेंबली के बाद 22 मई को होने वाली विश्व स्वास्थ्य संगठन के एग्जिक्यूटिव बोर्ड की अगुवाई एक साल तक भारत के हाथ होगी.
नई दिल्ली: कोरोना वायरस को लेकर वैसे ही अमेरिका और चीन के बीच में तनाव चल रहा था मगर अब ताइवान के मुद्दे पर तो दोनों के बीच तलवारें खिंच गई हैं. ऐसे में इस महीने 18-19 मई को होने वाली वर्ल्ड हेल्थ असेंबली अमेरिका और चीन के बीच कूटनीतिक जंग का अखाड़ा बनेगी. वहीं कोरोना वायरस के लेकर चल रहे सियासी दंगल में भारत की भूमिका अहम होगी क्योंकि वर्ल्ड हेल्थ असेंबली के बाद 22 मई को होने वाली विश्व स्वास्थ्य संगठन के एग्जिक्यूटिव बोर्ड की अगुवाई एक साल तक भारत के हाथ होगी.
दरअसल, विश्व स्वास्थ्य संगठन के कामकाज का निर्धारण एक एग्जीक्यूटिव बोर्ड करता है. इस बोर्ड में संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों के प्रतिनिधि होते हैं. वहीं कार्यकारी बोर्ड के सदस्यों का चुनाव विश्व स्वास्थ्य सभा में किया जाता है. महत्वपूर्ण है कि पिछले साल हुई विश्व स्वास्थ्य सभा की बैठक में दक्षिण और पूर्व एशिया समूह ने सर्व सम्मति से भारत का नाम अगुवाई के लिए बढ़ाया था. साथ ही यह भी तय हुआ था कि भारत 2021 तक इस बोर्ड की अध्यक्षता करेगा.
विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला के शब्दों में, भारत विश्व स्वास्थ्य संगठन के कार्यकारी बोर्ड की अध्यक्षता संभालने जा रहा है.ऐसे में जबकि हम कोरोना वायरस जैसी चुनौती निपटने के तरीके तलाश रहे हैं, हमारा उद्देश्श्य अपने ग्लोबल विलेज के लिए नया आपादा प्रबंधन प्रोटोकॉल बनाने का है. ताकि एक अधिक संवेदनशील, किफायती और मानवीय स्वास्थ्य सिस्टम बनाया जा सके और संसाधनों को वैश्विक स्तर पर तैनात किया जा सके.
हालांकि भारत ने अभी इस बारे में अपने पत्ते नहीं खोले हैं कि अमेरिका, जर्मनी समेत दुनिया के कई देशों की तरफ से विश्व स्वास्थ्य सभा में चीन को शामिल करने के मामले पर दिए प्रस्ताव को लेकर उसका क्या रुख है. इस बारे में पूछे जाने पर अधिकारिक सूत्रों का कहना था कि मामले को लेकर विचार चल रहा है और बैठक से पहले स्थिति साफ कर दी जाएगी.
जिनेवा में भारत के स्थाई प्रतिनिधि रह चुके पूर्व राजदूत दिलिप सिन्हा कहते हैं कि कोरोना वायरस के मुद्दे को एक स्वास्थ्य चुनौती और मानवीय आधार पर देखा जाना चाहिए. ऐसे में सवा दो करोड़ से अधिक आबादी वाले मुल्क को विश्व स्वास्थ्य संगठन के कामकाज से कैसे बाहर रखा जा सकता है. इसके लिए कूटनीतिक तरीका निकाला जाना चाहिए. ऐसे में ताइवान को यदि चीनी ताइपे के तौर पर यदि बैठक में शरीक होने की इजाजत दी जा सकती है तो इसपर सहमति बनाने का प्रयास होना चाहिए. सिन्हा कहते हैं कि ताइवान जब ओलंपिक में चीनी ताइपे के नाम से शरीक हो सकता है तो फिर वैश्विक स्वास्थ्य से जुड़ी अंतरराष्ट्रीय संस्था में क्यों नहीं.
गौरलतब है कि ताइवान को विश्व स्वास्थ्य सभा में बतौर पर्यवेक्षक शामिल किए जाने को लेकर अमेरिका, जर्मनी समेत 16 मुल्कों ने प्रस्ताव दिया है. ताइवान भी विश्व स्वास्थ्य सभा की बैठक में शरीक होने का इच्छुक है. हालांकि ताइवान ने चीन की तरफ से जाहिर की गई इस शर्त को मानने से इनकार कर दिया है कि वो खुद को वन-चायना नीति के तहत चीन का हिस्सा स्वीकार करे.
ताइवान के स्वास्थ्य मंत्री चेन शिह-चुंग ने शुक्रवार को ताइपे में एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान कहा कि हम उस चीज को कैसे स्वीकार कर सकते हैं जो है ही नहीं. उन्होंने माना कि अभी ताईवान को 18 मई को आयोजित विश्व स्वास्थ्य सभा की वीडियो कांफ्रेंसिंग बैठक में भाग लेने का कोई न्यौता नहीं मिला है. लेकिन ताईवान बैठक में शरीक होने के प्रयास जारी रखेगा.
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियन ने गुरुवार को कहा था कि, "इस साल के विश्व स्वास्थ्य सभा की बैठक में ताइवान को एक पर्यवेक्षक के रूप में भाग लेने के लिए को आमंत्रित करने के विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रस्ताव पर दृढ़ता से विरोध कर रहा है. ताइवान की भागीदारी का मुद्दा एक-चीन सिद्धांत के अनुसार संभाला जाना चाहिए."
ताइवान सरकार के मुताबिक उसने विश्व स्वास्थ्य संगठन को दिसंबर में ही कोरोना वायरस के संबंध में आगाह किया था. लेकिन चीन के दबाव में उसे नजरअंदाज किया गया. ताइवानी स्वास्थ्य मंत्री ने कुछ हफ्ते पहले 18 दिसंबर को ताइवान की तरफ से भेजे गए ईमेल को भी सार्वजनिक किया था. हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक इस ईमेल में कोरोना वायरस के इंसानी संक्रमण का विषय नहीं उठाया गया था.
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