नई दिल्ली: कोरोना संकट भारत सहित दक्षिण एशियाई देशों के बच्चों की बड़ी संख्या को प्रभावित कर सकता है. यूनिसेफ की नई रिपोर्ट में इस बात का अंदेशा जाहिर किया गया है. एक अनुमान के मुताबिक 12 करोड़ बच्चे अगले छह महीनों के भीतर गरीबी की चपेट में आ सकते हैं. जिससे क्षेत्र में ऐसे बच्चों की कुल संख्या बढ़कर 36 करोड़ हो जाएगी.


रिपोर्ट दक्षिण एशिया के आठ देशों को शामिल किया गया है. जिसमें अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, मालदीव और श्रीलंका शामिल हैं. इसमें कहा गया है कि इन देशों में अनुमान के मुताबिक 24 करोड़ बच्चे पहले से ही "बहुआयामी" गरीबी में हैं जिनमें खराब स्वास्थ्य, शिक्षा की कमी, स्वच्छता की कमी और काम की खराब गुणवत्ता जैसे कारक शामिल हैं. इसके अलावा 12 करोड़ और बच्चे कोविड-19 संकट के चलते गरीबी में आ जाएंगे जिससे ऐसे बच्चों की संख्या बढ़कर 36 करोड़ हो जाएगी.


रिपोर्ट में टीकाकरण, पोषण और अन्य महत्वपूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं में कोविड-19 से होनेवाली बाधा के नकारात्मक प्रभाव को भी दर्शाया गया है. जॉन्स हॉपकिन्स ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ द्वारा किये गए एक शोध की रिपोर्ट के हवाले से कहा गया, ‘‘दक्षिण एशिया में अगले 12 महीनों में पांच साल या उससे कम उम्र के 8 लाख 81 हजार बच्चों और 36 हजार माताओं की अतिरिक्त मौत हो सकती है. इनमें अधिक संख्या में होनेवाली मौत भारत और पाकिस्तान में दर्ज की जाएगी. हालांकि बांग्लादेश और अफगानिस्तान में भी अतिरिक्त मृत्यु दर का स्तर देखा जा सकता है.”


यूनीसेफ इंडिया की प्रतिनिधि यास्मीन हक ने कहा कि जल्द से जल्द मूलभूत आवश्यक सेवाएं शुरू करने की जरूरत है. उन्होंने पीटीआई से कहा, ‘‘हमें बच्चों के लिए मुख्य आवश्यक सेवाएं जल्द से जल्द बढ़ानी होंगी. भारत में कुपोषण पहले से ही एक समस्या है और हमने पोषण अभियान में काफी ऊर्जा देखी है. हमें उस ऊर्जा स्तर पर वापस आने की आवश्यकता है. हमें यह देखने की जरुरत है कि आंगनवाड़ी केंद्र कोविड-19 के समय कैसे काम करेंगे.’’


 उन्होंने कहा कि इसके लिए अतिरिक्त बजट और खर्च की जरूरत होगी. न केवल स्वास्थ्य क्षेत्र में बल्कि पंचायत स्तर और सरपंच स्तर पर भी तेजी लाने की जरूरत होगी. भारत और नेपाल में सैकड़ों स्कूलों को पृथक केंद्र बना देने से एक विशेष समस्या पैदा हो गई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि ज्यादा परेशान करने वाला पहलू कोविड-19 के प्रसार के पीछे जातीय या धार्मिक समुदायों को दोषी ठहराया जाना भी है.


नफरत फैलाने वाले भाषण नेपाल, भारत, श्रीलंका और अफगानिस्तान सहित विभिन्न देशों में देखने को मिले हैं. यूनीसेफ के रीजनल एडवाइजर फॉर कम्युनिकेशन फॉर डेवलप्मेंट एल. साद ने कहा, ‘‘हमें झूठी सूचना का मुकाबला करने के लिए ऑनलाइन और ऑफलाइन प्रयास करने होंगे.’’ रिपोर्ट में भारत में सुनवाई करने से पहले बाल अपराधियों को हिरासत और केयर सेंटर में रखने पर भी चिंता जताई गई है.


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