कोरोना महामारी से दुनियाभर में अब तक जंग जारी है. कोविड महामारी ने लोगों खासकर युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाला है. साल 2020 में मार्च के महीने में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड-19 को एक वैश्विक महामारी घोषित किया था जिसके बाद कई देशों में लॉकडाउन लगाया गया था. डेल्टा, ओमिक्रोन वैरिएंट के तेजी से प्रसार और मत्यु दर बढ़ने के बाद लॉकडाउन की स्थिति ने लोगों को गंभीर शारीरिक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक रुप से प्रभावित किया. इस वायरस के तेजी से वैश्विक प्रसार ने सभी आयु वर्ग के लोगों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को बढ़ा दिया. मनोवैज्ञानिक और शारीरिक परिणाम लोगों के जीवन में समाज के कार्य करने के तरीके में व्यापक परिवर्तनों से आए. सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट ने व्यक्तियों को आर्थिक रूप से प्रभावित किया, कुछ लोगों को बेरोजगारी का सामना करना पड़ा. उस दौरान आय में तेजी से गिरावट दर्ज की गई.


कोरोना का मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ा बुरा असर


कोरोना महामारी के दौरान कई लोगों को बेहद ही खराब स्थिति का सामना करना पड़ा. शिक्षा और सेवा-क्षेत्र में काफी बदलाव हुए. ऑनलाइन और वर्चुअल तरीके से काम का संचालन अलगाव, अकेलापन, चिंता और मानसिक तनाव की भावनाओं को बढ़ा दिया. ओपी जिंदल यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक्स स्टडीज द्वारा दिसंबर से फरवरी तक एक अध्ययन के दौरान, शोध दल ने डॉक्टरों, मनोचिकित्सकों, मनोवैज्ञानिकों, परामर्शदाताओं और अन्य मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों से बात की. अध्ययन का उद्देश्य यह समझना था कि महामारी ने बच्चों और किशोरों के सामाजिक, शारीरिक और भावनात्मक विकास को किस हद तक प्रभावित किया, और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इसने मनोचिकित्सकों और मानसिक स्वास्थ्य के व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन को कैसे प्रभावित किया.


लॉकडाउन में महामारी ने बच्चों को कैसे प्रभावित किया


संयुक्त राष्ट्र बाल कोष, या यूनिसेफ के अनुसार, दुनिया भर में 2.2 बिलियन बच्चे हैं, जो वैश्विक आबादी का 28% है. लॉकडाउन की वजह से स्कूल जाने से वंचित हो गए और डिस्टेंस स्कूल एडुकेशन के लिए मजबूर होने वालों को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा. अधिकांश समूहों के लिए बढ़ी हुई अनिश्चितता के माहौल के बीच महामारी ने जीवित रहने की चिंताओं को बढ़ा दिया. फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं और नर्सों का जीवन, सीमित अध्ययन या अकादमिक चर्चा बच्चों और मनोवैज्ञानिकों या मनोचिकित्सकों के मानसिक स्वास्थ्य पर केंद्रित है. अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन के मुताबिक चिंता को एक भावना के रूप में परिभाषित किया गया है जो चिंतित विचारों, शारीरिक परिवर्तनों और तनाव की भावनाओं की विशेषता है.


7 में एक से अधिक किशोर मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंता से पीड़ित-यूनिसेफ 


हाल के महीनों में कोविड-19 और लॉकडाउन ने "बच्चों" और "युवाओं" को कैसे प्रभावित किया, इसकी जांच के लिए महत्वपूर्ण क्रॉस-सेक्शनल शोध किए गए हैं. निष्कर्षों से पता चलता है कि इस प्रभाव का प्रकार कई जोखिम कारकों से प्रभावित रहता है, जिनमें शामिल हैं- उम्र, शैक्षिक स्थिति, पहले से मौजूद मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति, और संक्रमण या संक्रमण के डर के कारण क्वारंटाइन में रहने का लंबा अनुभव. भले ही पहले कुछ कोरोना लहर के दौरान छोटे बच्चों और किशोरों में कोविड -19 संक्रमण की दर अपेक्षाकृत कम थी, फिर भी वे जिस तनाव में थे, उसने उनकी मानसिक स्थिति को बेहद संवेदनशील बना दिया. विशेषज्ञों के साथ अनुसंधान दल की बातचीत के आधार पर, यह देखा गया कि वयस्कों की तुलना में बच्चों और किशोरों में, विशेष रूप से महामारी के दौरान, मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है. यूनिसेफ के अनुसार, 10 से 19 वर्ष की आयु के हर सात किशोरों में से एक से अधिक मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंता से पीड़ित हैं.


ये भी पढ़ें:


पुरुषों की Fertility पर बुरा असर डाल रहा कोरोना! IIT-बॉम्बे के रिसर्च से हुए चौकाने वाले खुलासे


जापान में सामने आया कोरोना वेरिएंट XE का पहला मामला, जानें क्या हैं लक्षण, कितना है खतरनाक