पाकिस्तान में इमरान खान की पार्टी टूटने के कगार पर खड़ी है. पाक की सेना के खिलाफ बोलने वाले इमरान खान की पार्टी को सेना ने कुचलना शुरू कर दिया है. एक के बाद कई बड़े नेता पार्टी का दामन छोड़ रहे हैं. दूसरी तरफ इमरान खान के अब तक 7 हजार समर्थकों को गिरफ्तार किया जा चुका है. इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद उनके समर्थकों ने आर्मी कोर कमांडर सेंटर्स पर हमले किए. इन हमलों के बाद शहबाज शरीफ की सरकार प्रदर्शनकारियों के खिलाफ आर्मी एक्ट लगाने के लिए तैयार हो गई है.


पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के टिकट पर चुनाव जीतने वाले नेशनल असेंबली (एमएनए) के सांसद सदस्य महमूद मौलवी ने इमरान खान की पार्टी से इस्तीफा दे दिया है. महमूद ने पार्टी छोड़ने से पहले कहा कि वह पार्टी अध्यक्ष इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद देशव्यापी दंगों के बाद पार्टी छोड़ रहे हैं.


उन्होंने जोर देकर कहा, "हम राजनीतिक दलों को बदल सकते हैं, लेकिन हम पाकिस्तान की सेना को नहीं बदल सकते. मैं सेना के खिलाफ कभी नहीं गया और न ही भविष्य में ऐसा करूंगा". 


जाते -जाते सांसद महमूद मौलवी इमरान खान की पार्टी पर कई आरोप भी लगा गए. उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा 'पार्टी कार्यकर्ता 9 मई से पहले चर्चा कर रहे थे, कि अगर इमरान खान को गिरफ्तार किया जाएगा तो वे रावलपिंडी में जनरल मुख्यालय (जीएचक्यू) की तरफ कूच करेंगे. मैंने उनसे कहा कि हमें सेना के खिलाफ नहीं लड़ना चाहिए. सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ने की कोई वजह ही नहीं है. जो हिंसक विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, मैं उनमें से किसी को नहीं जानता. यानी पार्टी के सांसद ने साफ तौर पर इमरान खान और उनकी पार्टी से संबंध तोड़ लिया है. 


शिरीन मजारी ने भी छोड़ा इमरान खान का साथ


पूर्व मानवाधिकार मंत्री शिरीन मजारी ने भी मंगलवार को पार्टी छोड़ दी. शिरीन मजारी पीटीआई के लिए सबसे बड़ा झटका माना जा रहा है. बता दें कि मजारी को 12 मई को गिरफ्तार किया गया था. 


मजारी ने इस्लामाबाद स्थित अपने आवास पर मंगलवार शाम एक संवाददाता सम्मेलन किया. उन्होंने सैन्य प्रतिष्ठानों पर हमले की निंदा की, और ये घोषणा कर दी कि वो अब राजनीति में नहीं रहेंगी. पार्टी छोड़ने के बाद मजारी को एक बार भी गिरफ्तार नहीं किया गया है.


बता दें कि शिरीन मजारी को कोर्ट से बार- बार रिहा और गिरफ्तार किया गया. तीसरी बार गिरफ्तार होने के बाद जब उन्हें जमानत मिली, तो उन्होंने 9 मई की हिंसा के लिए माफी मांगते हुए इमरान खान का साथ छोड़ दिया. 


फवाद चौधरी 


इमरान के करीबी सहयोगी और पूर्व सूचना मंत्री फवाद चौधरी ने भी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पार्टी से इस्तीफा दे दिया. इस्तीफा देते हुए फवाद चौधरी ने कहा, ‘‘मैने अपने पहले दिए बयानों में 9 मई को हुई घटनाओं की स्पष्ट रूप से निंदा की थी. मैंने कुछ समय के लिए राजनीति से दूर होने का फैसला किया है, इसलिए मैंने पार्टी के पद से इस्तीफा दे दिया है और इमरान खान से अलग हो रहा हूं.''


इमरान की पार्टी छोड़ चुके बड़े नेताओं पर एक नजर


अभी तक 12 से ज्यादा बड़े नेताओं ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है. इमरान खान की पार्टी के कई सांसद, जिनमें आमिर महमूद कियानी, मलिक अमीन असलम,आफताब सिद्दीकी, उस्मान तारा कई, पार्टी के बड़े हिंदू नेता जय प्रकाश का नाम शामिल है. 

इमरान खान की पार्टी में भगदड़ क्यों मची


अल-जजीरा में छपी रिपोर्ट के मुताबिक जानकार ये मानते हैं कि घरेलू राजनीति में पाकिस्तानी सेना की भूमिका के कारण राजनीतिक दलों से दलबदल कोई नई घटना नहीं है. जानकारों का मानना है कि इस तरह के दलबदल टॉप पर बैठे अफसरों के इशारे पर होता है. पाकिस्तान में सेना ने तीन दशकों तक देश पर सीधे शासन किया है. 


अलजजीरा में छपी रिपोर्ट के मुताबिक राजनीतिक विश्लेषक बेनजीर शाह ने कहा कि अभी तक ऐसा लगता है कि पाक की सेना नेताओं के लिए कोई निर्णय ले रही है. सेना ये तय करना चाहती है कि कौन सी राजनीतिक पार्टी को चुनाव लड़ना चाहिए. कौन सी पार्टी को चुनाव से दूर रखना चाहिए. शाह ने कहा कि यह अनुमान लगाना आसान नहीं है कि नेताओं के पीटीआई छोड़ने से भविष्य में पार्टी पर क्या असर पड़ेगा. 


उन्होंने कहा, ' अतीत में पीपीपी (पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी) और पीएमएलएन (पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज) जैसे राजनीतिक दलों को तोड़ने की कोशिश की जा चुकी है. लेकिन यह योजना शायद ही कभी काम करती है. इस राजनीतिक दल के नेता पार्टी के लिए वफादार साबित हुए थे.


इन नेताओं ने पार्टी के आधार को कमजोर नहीं होने दिया. ये नेता लंबे समय तक जेल में बंद रहने को तैयार थे, साथ ही अदालती मामले भी सहन करने में हिचकिचाए नहीं थे. वहीं इमरान की पार्टी के नेताओं में ये बात अभी तक नहीं दिखाई दे रही है. 


अलजजीरा में छपी रिपोर्ट के मुताबिक लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट साइंस में राजनीति विज्ञान की एसोसिएट प्रोफेसर असमा फैज बताते हैं 'इन दलबदलों का अगले चुनावों में पीटीआई के प्रदर्शन पर असर पड़ सकता है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि खान को लोगों के बीच भारी समर्थन प्राप्त है, लेकिन उन्हें मजबूत उम्मीदवारों की जरूरत है जो अपना वोट बैंक अपने साथ लाएं.


खान की गिरफ्तारी के बाद क्या-क्या हुआ


खान नौ मई को राजधानी इस्लामाबाद की अदालत में पेश हुए. अदालत में भ्रष्टाचार के आरोपों में नाटकीय रूप से खान को गिरफ्तार कर लिया गया था. दो दिन बाद सुप्रीम कोर्ट ने उनकी गिरफ्तारी को अवैध घोषित कर दिया. इस्लामाबाद की एक अन्य अदालत ने 12 मई को उनकी रिहाई का आदेश दिया. 


खान की गिरफ्तारी के कुछ ही देर बाद उनके कथित समर्थकों ने एक शीर्ष सैन्य कमांडर के आवास पर धावा बोल दिया. कमांडर के आवास में  आग भी लगा दी गई. 


देश भर में कई अन्य सैन्य प्रतिष्ठानों पर भी हमला किया गया. आग लगाई गई.  नाराज खान समर्थकों ने शक्तिशाली सेना पर खान की गिरफ्तारी की साजिश रचने का आरोप लगाया. 


लेकिन खान ने आगजनी के पीछे अपने समर्थकों का हाथ होने से इनकार किया. खान ने आरोप लगाया कि इस घटना को लेकर उन्हें और उनकी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पार्टी को फंसाने की साजिश रची जा रही है.


इमरान खान के कहा, सेना के कमांडर की पुरानी इमारत को जलाना हम पर दोष मढ़ने की सोची समझी चाल है. उन्होंने कहा, '27 साल (उनके राजनीतिक करियर में) क्या मैंने कभी जलाने और दंगा करने के लिए कहा है? मैंने हमेशा कानून और संविधान के भीतर शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के बारे में बात की है.


इमरान खान की कहानी


70 वर्षीय खान ने 1996 में एक सेवानिवृत्त क्रिकेट कप्तान के रूप में पाकिस्तानी राजनीति में एंट्री की थी. एक क्रिकेटर के इतर पाक की जनता ने उन्हें एक राजनेता के तौर पर भी खूब प्यार दिया. इमरान खान ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाने के वादे किए. लोकतंत्र और कानून के शासन को मजबूत करने के महत्वाकांक्षी योजनाओं को मंजूरी दी. 


2018 में खान ने जनता को भरोसा दिलाया कि वह अकेले पाकिस्तान की समस्याओं से निजात दिला सकते हैं. वह व्यक्तिगत रूप से लोकप्रिय जरूर थे, लेकिन उनका बहुमत कम था. उनके सपोर्टर और खुद इमरान ये भी आरोप लगाते रहे हैं कि शक्तिशाली सेना हमेशा धांधली करती रही.


सेना ने दशकों से पाक पर शासन किया है और  जम कर भ्रष्टाचार करती आई है. कुल मिलाकर कहें तो ये होगा कि जिस भ्रष्टाचार को इमरान खान ने खत्म करने की कसम खाई थी वो नहीं कर पाई, और इसका ठीकरा पाक की सेना पर फोड़ा. 


सत्ता में आने के बाद सेना के अधीन खान के अधिकांश सुधारों का वादा कभी पूरा नहीं हुआ. मीडिया की स्वतंत्रता पर शिकंजा कसा गया, पाकिस्तान पारदर्शिता सूचकांक में और गिर गया जो भ्रष्टाचार को मापता है. अर्थव्यवस्था लड़खड़ा गई और खर्च बढ़ गया. 


आर्थिक संघर्ष और शिथिलता के आरोपों के बीच खान का समर्थन कम हो गया. यह अप्रैल 2022 तक ऐतिहासिक निचले स्तर पर था. खान के दर्जनों सांसद दल बदल कर गए थे, खान को सत्ता से हटना पड़ा. 


खान ने प्रधानमंत्री पद से हटाए जाने के लिए अमेरिका समर्थित साजिश को जिम्मेदार ठहराया. हालांकि इस दावे को खारिज भी कर दिया गया, अमेरिका ने खुद इसका खंडन किया था. इमरान खान के अमेरिका समर्थित साजिश वाले बयान के बाद देश में अमेरिका विरोधी भावनाओं को बढ़ावा मिला.  


अपने पूर्व सहयोगी पाक की सेना पर खान ने आरोप लगाना शुरू कर दिया. इमरान खान की ये चाल काम कर गई और देश की जनता के बीच खान के लिए एक बार फिर से प्यार उमड़ पड़ा. ये वो जनता थी जो दशकों से राजनीति में सेना के हस्तक्षेप से थक चुके हैं. हाल के महीनों में सैन्य नेतृत्व के खिलाफ खान के लोकलुभावन भाषणों ने हजारों लोगों सड़कों पर खींच लिया है, जो खान का समर्थन कर रहे हैं. 


हाल के महीनों में पाकिस्तान में आर्थिक संकट से गुजर रहा है.  मुद्रास्फीति 36% हो चुकी है. खाने के लिए लोग राशन की दुकानों में कतारों में खड़े हैं.  जानकारों का मानना है कि लोग मौत और भुखमरी के डर से खान को राजनीतिक रूप से मदद कर रहे हैं. सत्तारूढ़ गठबंधन ने सब्सिडी को हटा दिया है.  भोजन, ईंधन और बिजली की कीमत में वृद्धि लागू की. इस सब का गुस्सा पाक की जनता में है और वो इमरान के समर्थन में उतर आए हैं.