तोक्यो: तिब्बत के निर्वासित आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने कहा है कि चीन के नेता विभिन्न संस्कृतियों की विविधताओं को नहीं समझते हैं और कड़े सामाजिक नियंत्रण के प्रति सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी का झुकाव नुकसानदेह हो सकता है.
दलाई लामा ने बुधवार को यह भी कहा कि वह आधिकारिक रूप से नास्तिक कम्युनिस्ट पार्टी शासित चीन और प्रबल बौद्ध धर्मावलंबी ताइवान के बीच जटिल राजनीति में संलिप्त होने के बजाय भारत में ही रहना चाहते हैं, जहां वह 1959 से रह रहे हैं.
चीनी राष्ट्रपति से मिलने की अभी कोई योजना नहीं- दलाई लामा
तोक्यो फॉरेन कॉर्सपोंडेंट्स क्लब की मेजबानी वाले ऑनलाइन संवाददाता सम्मेलन में दलाई (86) ने कहा कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिलने की उनकी कोई खास योजना नहीं है. साथ ही उन्होंने राष्ट्रपति पद पर तीसरे कार्यकाल के लिए भी रहने की शी की योजना पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
तिब्बती आध्यात्मिक नेता ने कहा, ‘‘चीनी कम्युनिस्ट नेता संस्कृतियों की विविधताओं को नहीं समझते हैं. असल में अत्यधिक नियंत्रण लोगों को नुकसान पहुंचाएगा.’’ उल्लेखनीय है कि चीन सभी धर्मों पर कड़ा नियंत्रण रखता है और हाल के वर्षों में उसने तिब्बतियों, मुस्लिम उयगुर और अन्य अल्पसंख्यक समूहों को निशाना बना कर सांस्कृतिक समावेशीकरण अभियान चलाया है.
दलाई लामा ने कहा ये....
दलाई लामा ने कहा कि वह ‘‘स्थानीय व राजनीतिक उलझनों’’ में नहीं पड़ना चाहते हैं, लेकिन ताइवान और चीन की मुख्य भूमि पर भाइयों व बहनों के लिए योगदान देने के लिए समर्पित हैं.’’ उन्होंने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा, ‘‘कभी-कभी मुझे सचमुच में लगता है कि यह सामान्य बौद्ध भिक्षु जटिल राजनीति में शामिल नहीं होना चाहता है.’’
दलाई लामा ने 2011 में राजनीति से संन्यास ले लिया था लेकिन वह तिब्बती परंपरा के संरक्षण के प्रबल हिमायती बने हुए हैं. चीन उन पर तिब्बत की स्वतंत्रता का समर्थक होने का आरोप लगाता है. वहीं, दलाई लामा का कहना है कि वह महज तिब्बत की स्वायत्तता और स्थानीय बौद्ध संस्कृति के संरक्षक हैं.
इस बीच, चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा कि दलाई लामा के साथ वार्ता के दरवाजे खुले हुए हैं लेकिन बीजिंग तिब्बत के दर्जे पर चर्चा नहीं करेगा. वांग ने बुधवार को नियमित प्रेस वार्ता में कहा, ‘‘दलाई लामा पक्ष को चीन को तोड़ने पर अपने रुख को छोड़ देना चाहिए, अपनी अलगाववादी गतिविधियां बंद कर देनी चाहिए और केंद्रीय सरकार एवं चीन के लोगों का विश्वास जीतने के लिए ठोस कार्य करना चाहिए.’’
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