Demetrius Galanos-Chanakya Niti: पश्चिमी देशों में भारत को जब अंधकार में डूबा हुआ देश समझा जाता था. भारतीय साहित्य में भी कुछ ऐसा है, जो अनुवाद करने के लायक है, यह यूनानियों के सोच से परे था, तभी डिमिट्रियस गैलानोस (Dimitrios Galanos) ने चाणक्य नीति का यूनानी भाषा में अनुवाद किया था. यूनानी भाषा में ‘ऐफोरिज्म ऑफ चाणक्या’ यानी ‘चाणक्य सूक्ति’ जब एथेंस में प्रकाशित हुई, तो न सिर्फ इसे जबरदस्त लोकप्रियता मिली बल्कि इसके अनुवादक 'निकोलस केफलस' को भी खूब प्रसिद्धि मिली. इस अनुवाद के प्रकाशित होने के बाद एथेंस के विद्वानों में हलचल मच गई थी.


निकोलस केफलस के बारे में पता चला कि वे एक जहाज के कप्तान हैं, इसी के साथ ही यह सवाल उठने लगा कि जहाज का कप्तान भारतीय संस्कृति का ज्ञाता और अनुवादक कैसे बन गया? यह बात यूनानियों को हजम नहीं हो रही थी. इसपर ज्याद रिसर्च करने पर पता चला कि ‘ऐफरिजम ऑफ चाणक्या’ में जिन लोगों का आभार प्रकट किया गया, उनमें एक नाम 'डिमिट्रियस गैलानोस' का भी था. बाद में यह बात सामने निकलकर आई कि यह सारा काम गैलानोस का ही है.


डिमिट्रियस गैलानोस एक ग्रीक इंडोलॉजिस्ट थे, जिन्होंने दक्षिण एशिया पर अध्ययन किया. उनका जन्म साल 1760 में एंथेस में हुआ लेकिन भारत के प्रति बढ़ती उनकी दिलचस्पी उनको हिंदुस्तान तक खींच लाई. महज 26 साल की उम्र में वो भारत के कोलकाता शहर में आ गए थे और यहीं पर कुछ यूनानी परिवारों के बच्चों को पढ़ाने लगे थे और बाद में बनारस आ गए. बनारस में डिमिट्रियस गैलानोस ने पूरी तरह से भारतीय संस्कृति को अपना लिया और अपना पहनावा भी बदल लिया.


गैलानोस के अनुवाद को केफलस ने कराया था प्रकाशित
बताया जाता है कि बनारस में डिमिट्रियस गैलानोस का उठना-बैठना संस्कृत के विद्वानों के साथ था. बनारस में ही निकोलस केफलस की मुलाकात डिमिट्रियस गैलानोस से हुई. बनारस में ही केफलस ने गैलानोस के साथ कुछ दिन बिताए थे. थोड़ी बहुत पहचान होने के बाद गैलानोस ने संस्कृत से यूनानी भाषा में किए अपने अनुवाद को केफलस को दे दिए. इसी अनुवाद को केफलस ने एथेंस में प्रकाशित कराया था. फिलहाल, डिमिट्रियस गैलानोस ने भारतीय साहित्य पर जितना काम किया था, यह किताब उसका एक छोटा सा हिस्सा था. 


भारत में आए और भारत के होकर रह गए गैलानोस
डिमिट्रियस गैलानोस बनारस के मशहूर संस्कृत विद्वान मुंशी शीतल प्रसाद सिंह के घर में रहते थे और वे यहीं के होकर रह गए. डिमिट्रियस गैलानोस भारत में करीब साढ़े चार दशक रहे और यहीं के ग्रन्थों को पढ़े और उनका अनुवाद किया. हालांकि, उनके द्वारा किए गए काम की पहचान उनकी मृत्यु के बाद हुई. डिमिट्रियस गैलानोस की 1833 में मृत्यु हो गई थी.


इन ग्रंथों का अनुवाद कर चुके हैं डिमिट्रियस गैलानोस
डिमिट्रियस गैलानोस की मृत्यु के 12 साल बाद साल 1845 में उनका दूसरा अनुवाद प्रकाशित हुआ. इस पुस्तक में ‘लघु चाणक्य’ से अनुवाद किए गए कुछ श्लोक शामिल थे. डिमिट्रियस गैलानोस ने भगवद्गीता का भी अनुवाद किया था, जो साल 1848 में प्रकाशित हुआ. इसके साथ ही उन्होंने फारसी-अंग्रेजी-यूनानी-संस्कृत शब्दकोश भी बनाया है. मुंशी शीतल प्रसाद सिंह के सहयोग से उन्होंने कई भारतीय ग्रन्थों पर काम किया है. इसमें ‘देवी महात्म्य’ और ‘मार्कंडेय पुराण’ जैसे ग्रन्थ भी शामिल हैं.


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