डेनमार्क का भारत को बड़ा झटका, पुरुलिया हथियार कांड के मास्टरमाइंड का प्रत्यर्पण कर दिया खारिज
Purulia Arms Drop Case: मामला 1995 का है, जब पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में एक मालवाहक विमान से नील्स होल्क ने एसॉल्ट राइफल, रॉकेट लॉन्चर और मिसाइल गिराने की घटना में साथ दिया था.
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Purulia Arms Drop Case: डेनमार्क की एक अदालत के फैसले से भारत को बड़ा झटका लगा है. गुरुवार (29 अगस्त) को अदालत ने 29 साल पुराने मामले के आरोपी नील्स होल्क के भारत के प्रत्यर्पण अनुरोध को खारिज कर दिया. नील्स हथियार तस्करी के आरोप में गिरफ्तार हुआ है.
दरअसल, मामला 1995 का है, जब पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में एक मालवाहक विमान से नील्स होल्क ने एसॉल्ट राइफल, रॉकेट लॉन्चर और मिसाइल गिराने की घटना में साथ दिया था. उसने यह बात खुद स्वीकार की थी.
आरोपी का कहना- मेरी जान को खतरा हो सकता है
हिलेरोएड जिला न्यायालय का कहना है कि भले ही भारत की ओर से अतिरिक्त राजनयिक गारंटी दी गई है, लेकिन इसके बावजूद भी यह एक ऐसा जोखिम है कि होल्क को भारत में अमानवीय व्यवहार का सामना करना पड़ सकता है. वहीं मामले के आरोपी 62 वर्षीय नील्स होल्क का कहना है कि उसे इस बात का डर है कि यदि उसे प्रत्यर्पित किया गया तो उसकी जान को खतरा हो सकता है. अदालत के इस फैसले की घोषणा से पहले आरोपी होल्क ने गुरुवार की सुबह डेनिश रेडियो डीआर से यह कहा था कि वह न्यायाधीश के समक्ष जवाबदेह ठहराए जाना चाहेंगे.
2002 में भी भारत ने की थी प्रत्यर्पण की मांग
जिस घटना को लेकर डेनमार्क की अदालत में नील्स होल्क को लेकर फैसला सुनाया है, उसमें 1995 में विमान से हथियार गिराए जाने के बाद एक ब्रिटिश नागरिक और पांच लातवियाई लोगों को भारतीय अधिकारियों ने गिरफ्तार कर लिया था, लेकिन इन सब के बीच होल्क भागने में सफल रहा. नील्स होल्क का पूरा नाम नील्स क्रिश्चियन नीलसन है. इसी को लेकर भारत ने सबसे पहले 2002 में डेनमार्क से उसके प्रत्यर्पण के लिए कहा था. उस दौरान सरकार सहमत भी हो गई थी, लेकिन डेनमार्क की दो अन्य अदालत ने उसके प्रत्यर्पण को खारिज कर दिया था.
दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध हो सकते हैं खराब
अदालत का यह कहना था कि उसे भारत में यातनाएं दी जाएंगी और अमानवीय व्यवहार का खतरा भी हो सकता है. इससे दोनों देशों के बीच राजनायिक संबंध तनावपूर्ण हो सकते हैं. इसके बाद जून 2023 में डेनमार्क ने फिर से 2016 के भारत के प्रत्यारोपण अनुरोध पर गौर फरमाया और फैसला किया की प्रत्यर्पण अधिनियम की आवश्यकताओं को पूरा किया गया है.
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