Dhannipur Mosque: अयोध्या में मस्जिद निर्माण को लेकर मुस्लिम समाज ने तैयारियां तेज कर दी है. धन्नीपुर में बनने वाली मस्जिद के लिए आब-ए-जमजम से धुलकर ईंट भारत लाई गई है. मस्जिद में सबसे पहले इसी ईंट को लगाया जाएगा. इस्लाम को मानने वाले लोगों के लिए आब-ए-जमजम पवित्र दुनिया का कोई पानी नहीं होता.
एक रिपोर्ट के मुताबिक अयोध्या राम मंदिर से 25 किलोमीटर दूर धन्नीपुर गांव में मस्जिद-ए-मोहम्मद बिन अब्दुल्ला का निर्माण होना है. इस मस्जिद की नींव रखने के लिए पहले मुंबई से ईंट मक्का भेजी गई. वहां पर इस ईंट को पवित्र जमजम के पानी से धोया गया और मदीना के इत्र का छिड़काव भी किया गया. इस ईंट को अब भारत लाया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक ईंट पर कुरान की आयतें भी लिखी गई हैं.
5 हजार साल पुराना है जमजम कुएं का इतिहास
मस्जिद-ए-मोहम्मद बिन अब्दुल्ला कमेटी के अध्यक्ष हाजी अराफात शेख ने बताया कि इस ईंट को अयोध्या लाया जाएगा. ईंट को जमजम के पानी से धुलने के पीछे मुस्लिमों के इस पवित्र जल से जुड़ी आस्था है. मक्का स्थित इस कुएं के पानी का इस्लाम में बहुत महत्व है. इस कुएं का इतिहास करीब 5 हजार साल पुराना बताया जाता है. मुस्लिम समाज जमजम के पानी को चमत्कार के तौर पर देखते हैं, क्योंकि जमजम के पानी में सालों तक कीड़े नहीं पड़ते हैं.
इस्लाम मान्यताओं के मुताबिक जमजम का कुआं 5 हजार साल पहले मोहम्मद इस्माइल के पैरों के नीचे से निकला था. बताया जाता है कि जब उनकी मां हाजरा (इब्राहिम की दूसरी पत्नी) अपने बेटे की प्यास बुझाने के लिए सफा और मारवाह की दो पहाड़ियों के बीच सात बार दौड़ी तभी मोहम्मद इस्माइल के पैरों के नीचे से जमजम का कुआं निकला.
इस तरह से जमजम कुएं का पड़ा नाम
बताया जाता है कि हाजरा ने झरने के पानी को बहने से रोकने के लिए जोर-जोर से 'जोमजोम' चिल्लाया था, इसी के चलते इस कुएं का नाम जमजम पड़ा. बताया जाता है कि इस कुएं का पानी आम पानी से अलग है. जमजम के पानी में सालों तक कीड़े नहीं पड़ते हैं और इस पानी में भारी मात्रा में खनिज पाए जाते हैं. इसका स्वाद भी अलग है. इसी वजह से दुनियाभर से हज पर जाने वाले लोग जमजम का पानी लाते हैं और अपने घरों में सालों तक रखते हैं.
जमजम के कुएं का रखरखाव भी सदियों से किया जा रहा है. बताया जाता है कुछ समय को छोड़ दें तो इस कुएं ने पानी देना कभी बंद नहीं किया. इस कुएं की रक्षा पैगंबर मोहम्मद के दादा अब्द अल-मुत्तलिब बिन हाशिम ने की थी.
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