नई दिल्ली: अमेरिका के रक्षा मुख्यालय पेंटागन ने एक रिपोर्ट ट्रंप प्रशासन को दी है जिसके फौरन बाद ट्रंप ने अचानक ही चीन के खिलाफ ऐसा एलान कर दिया जिससे हर कोई हैरान हो गया है. ऐसे वक्त में जब अमेरिका समेत दुनिया कोरोना से जूझ रही है. ट्रंप के इस एलान ने हर किसी के होश उड़ा दिए हैं. क्या है अमेरिका का एलान? किस ब्रह्मास्त्र की बात हो रही है और क्यों इसकी जरूरत अमेरिका को पड़ी.


अमेरिका और चीन के बीच बढ़ता तनाव जंग की तैयारियों तक जा पहुंचा है और अमेरिका ने चीन के खिलाफ अपने सबसे बड़े हथियार का एलान कर दिया. अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के मुताबिक, 'हमारे पास अब ऐसा सैन्य हथियार होगा जो किसी ने पहले नहीं देखा होगा. हमारे पास और कोई रास्ता नहीं है. हमको ये करना ही होगा. हम ने इसको Super Duper Missile का नाम दिया है, जो मिसाइलें पहले से मौजूद हैं उससे ये 17 गुना तेज है. आपने सुना होगा कि रूस के पास 5 गुना और चीन 6 गुना तेज मिसाइल पर काम कर रहा है. अगर आप यकीन करें हम 17 गुना तेज गति (मिसाइल) पर काम कर रहे हैं जो कि दुनिया में लगभग सबसे तेज है.


ट्रंप का दावा है कि ये मिसाइल रूस और चीन की मिसाइलों से भी तेज गति से मार करती है. इस तरह ये दुनिया की सबसे तेज मिसाइल है. डॉनल्ड ट्रंप ने जिस मिसाइल का जिक्र किया उसे HyperSonic मिसाइल कहते हैं जिसके बारे में रूस और चीन भी दावा करते हैं लेकिन ट्रंप ने इस मिसाइल को सबसे शक्तिशाली बता कर हथियारों की नई दौड़ शुरू कर दी है. यहां सवाल ये भी उठता है कि हाइपरसोनिक मिसाइल होती क्या हैं और कोरोना से लड़ते अमेरिका को हाइपरसोनिक मिसाइल बनाने की जरूरत क्यों पड़ी, ट्रंप ने ये क्यों कहा कि वो जिस मिसाइल पर काम कर रहे हैं वो रूस और चीन से भी ज्यादा तेज है. क्या अमेरिका ने चीन को तबाह करने का अस्त्र बना लिया है.



ऐसा क्या हो गया जिस वजह से अमेरिका को रूस और चीन से भी खतरनाक मिसाइल पर काम करना न सिर्फ तेज कर दिया बल्कि ट्रंप को ये ऐलान करना पड़ा कि उनकी मिसाइल सबसे तेज और सबसे खतरनाक है. इस सवाल का जवाब अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन की एक रिपोर्ट है, जिसे पढ़ने के बाद अमेरिकी सरकार के होश उड़ गए. डॉनल्ड ट्रंप जैसे जैसे रिपोर्ट पढ़ते जा रहे थे, उनकी टेंशन बढ़ती जा रही थी. रिपोर्ट आने के 24 घंटे के भीतर ही ट्रंप को ऐलान करना पड़ा कि वो चीन से खतरनाक मिसाइल पर काम कर रहे हैं.


यहाँ पर ये भी समझना होगा कि हाइपर सोनिक मिसाइल क्या होती है. उन मिसाइलों को हाइपरसोनिक मिसाइल कहते हैं, जिनकी रफ्तार ध्वनि की गति से 5 गुना ज्यादा तेज होती है. ध्वनि की रफ्तार 1238 किलो मीटर प्रति घंटा होती है, जो 60 मिनट में 15000 मील यानी 24140 किलो मीटर दूर के लक्ष्य को भेद सकती है. मतलब ये कि न्यूयॉर्क से छोड़ी गई हाइपर सोनिक मिसाइल घंटे भर में ही बीजिंग को निशाना बना सकती है लेकिन अमेरिका का दावा है कि वो जिस सुपर डुपर मिसाइल पर काम कर रहा है वो मौजूदा मिसाइलों से 17 गुना ज्यादा तेज है, अगर ऐसा है तो फिर अमेरिका चंद ही मिनटों में सारे चीन को तबाह-बर्बाद कर सकता है.


ऐसी ही एक मिसाइल रूस के पास भी है. रूस की इस मिसाइल का नाम अवनगार्ड है, जो हाइपरसोनिक न्यूक्लियर मिसाइल है, मतलब ये कि कुछ ही घंटों में धरती के किसी भी कोने में न्यूक्लियर अटैक कर सकती है. ट्रंप का दावा है कि अब रूस और चीन भी उसके आगे कुछ नहीं होंगे. क्योंकि उसकी हाइपरसोनिक मिसाइल हर दुश्मन की छुट्टी कर देगी. हाइपर सोनिक मिसाइल की सबसे बड़ी ताकत उनकी स्पीड है जिससे दुश्मन को पलटवार का मौका ही नहीं मिलता, जो पहले वार करता है उसे एडवांटेज हासिल हो जाता है. वहीं ये बैलेस्टिक और क्रूज मिसाइलों से उलट अपना डायरेक्शन बदल सकती है, इसीलिए इसे पकड़ पानी बहुत मुश्किल है.



चीन हाइपर सोनिक मिसाइलें बनाने और तैनात करने वाला पहला देश है. पिछले साल चीन ने अपनी नेशनल मिलिट्री परेड में DF-17 मिसाइल दिखाई थी, जो उसकी हाइपरसोनिक मिसाइल है. इसके बाद रूस ने भी हाइपरसोनिक मिसाइल बनाने का दावा किया. ट्रंप के ऐलान के बाद उम्मीद है कि 2022 तक अमेरिकी सेना भी हाइपरसोनिक मिसाइल से लैस हो जाएगी. वहीं भारत का DRDO हाइपर सोनिक मिसाइल पर काम कर रहा है.


ट्रंप का ये ऐलान दुनिया में हथियारों की दौड़ का आगाज भी है, जिसमें अमेरिका भी अपनी बादशाहत बचाने के लिए कूद गया है. यहां एक सवाल ये भी उठता है कि ऐसा क्या हो गया कि कोरोना से लड़ते अमेरिका को इसका महामारी के बीच ऐलान करना पड़ा. इस सवाल का जवाब अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन की एक रिपोर्ट है. जिसने शायद ट्रंप को अपने सुपर डुपर हथियार के जरिए रूस और खासकर चीन को धमकाने के लिए प्रेरित किया हो. अमेरिकी रक्षा विभाग के सूत्रों ने द टाइम्स अखबार को बताया, अगर ताइवान पर चीन ने हमला किया तो अमेरिका उसे नहीं बचा पाएगा. यही नहीं प्रशांत महासागर में गुआम सैन्य अड्डा भी खतरे में होगा. इस रिपोर्ट का सारांश ये है कि अगर ताइवान को लेकर जंग हुई तो अमेरिका चीन से हार सकता है. ये सुनने में ही बहुत अजीब लगता है कि अमेरिका चीन से हार सकता है. लेकिन ये बात चीन नहीं कह रहा, ये दावा अमेरिका के रक्षा विभाग का है. इसीलिए इस रिपोर्ट के बाहर आते ही अमेरिका में हंगामा मच गया है.


ये रिपोर्ट इसलिए भी चौंकाने वाली है क्योंकि अमेरिका हर लिहाज से चीन पर भारी है. अमेरिका के 13,264 के मुकाबले चीन के पास 3,120 एयरक्राफ्ट हैं. अमेरिका के पास 2085 कॉम्बेट एयरक्राफ्ट हैं तो चीन के पास 1232. अटैक हेलिकॉप्टर में भी अमेरिका 967 बनाम 281 से आगे है. अमेरिका के पास 20 एयरक्राफ्ट कैरियर हैं तो चीन के पास सिर्फ 2. अमेरिका के पास 91 डिस्ट्रॉयर हैं तो चीन के पास 36 हैं. सिर्फ सबमरीन के मामले में चीन अमेरिका पर भारी है.


इस तरह कागजों पर आंकड़ों में अमेरिका चीन पर भारी है, पेंटागन की रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि ताइवान को बचाने के लिए अगर अमेरिका जंग में कूदा तो उसका गुआम द्वीप खतरे में पड़ सकता है, जो चीन की बैलेस्टिक मिसाइलों की रेंज में आता है. गुआम प्रशांत महासागर में अमेरिका का बहुत अहम सैन्य अड्डा है, जो सामरिक दृष्टि से बहुत अहम है. चीन हो या फिर उत्तर कोरिया, जब भी अमेरिका का इन दोनों देशों से तनाव होता है तो सबसे पहले निशाने पर गुआम द्वीप ही आता है. यहां पर अमेरिका के सबसे खतरनाक और आधुनिक लड़ाकू विमान बी टू बॉम्बर तैनात रहते हैं. ऐसे में जानकार भी मानते हैं कि अगर इस द्वीप पर हमला अमेरिका के लिए बहुत नुकसानदायक हो सकता है. लेकिन यहां सवाल ये है कि क्या दुनिया की महाशक्ति अमेरिका को चीन हरा सकता है तो इस सवाल पर एक्सपर्ट ने कहा, 'सुनकर यकीन नहीं होता कि अमेरिका चीन से हार जाएगा, लेकिन पेंटागन ऐसा मानता है, इसकी वजह क्या हो सकती है ? अगर चीन गुआम पर मिसाइलों से हमला कर सकता है, तो अमेरिका की भी तो कोई तैयारी होगी, वो इसे कैसे रोकेगा?'



अमेरिका और चीन के बीच कोरोना के बाद ताइवान को लेकर तनाव चरम पर है. चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है, तो वहीं ताइवान खुद को एक आजाद देश बताता है. चीन की इस नस को अमेरिका दबा कोरोना से तबाही का बदला लेना चाहता है. अमेरिका की कोशिश ताइवान को वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाजेशन असेंबली में एंट्री करवाने की है. जिसने चीन को बहुत नाराज कर दिया है और वो अगस्त में ताइवान के एक द्वीप को कब्जा करने का प्लान बना रहा है.


वाशिंगटन के सेंटर फॉर स्ट्रेजिक एंड इंटरनेश्नल स्टडीज के डायरेक्टर बोनी ग्लास्टर का मानना है कि अमेरिका और चीन के बीच ताइवान ज्वलंत मुद्दा बन चुका है. इस वजह से दोनों देशों के बीच एटमी युद्ध भी हो सकता है. ध्यान रहे बोनी ग्लास्टर अमेरिका सरकार के ईस्ट एशिया कंसल्टेंट भी हैं. जिस वजह से इनकी बात का महत्व बढ़ जाता है. एक्सपर्ट को लगता है कि चीन ने चोरी छिपे अपनी ताकत में बहुत इजाफा कर लिया है. अमेरिका को आशंका थी कि चीन 2030 तक उसे चुनौती दे पाएगा. लेकिन पेंटागन की रिपोर्ट ने ट्रंप प्रशासन को डरा दिया है. अमेरिकी रक्षा विभाग के सूत्रों ने द टाइम्स अखबार को बताया कि चीन 2030 से पहले ही चीन खतरनाक हो गया है. चीन की सेना हाइपरसोनिक मिसाइलों से लैस है. रिपोर्ट में बताया गया कि 2030 में चीन के पास नई सबमरीन, एयरक्राफ्ट कैरियर और डिस्ट्रोयर होंगे. जिससे ताकत के मामले में चीन अमेरिका से आगे जा सकता है.


पूरी संभावना है कि इस रिपोर्ट के आने के 24 घंटे के अंदर ही अमेरिकी राष्ट्रपति को हाइपरसोनिक मिसाइल बनाने का दावा करना पड़ा हो. हालांकि इस मिसाइल पर अमेरिका पहले से काम कर रहा था, लेकिन चीन की चुनौती को देखते हुए अमेरिका को भी कमर कसनी पड़ रही है. अमेरिका का हाइपरसोनिक मिसाइल बनाना, अपनी मरीन्स को एंटी शिप मिसाइलें देना. ये बताता है कि चीन किस कदर अमेरिका के लिए खतरनाक बन चुका है, लेकिन अगर ट्रंप का दावा सही है तो फिर अमेरिका की हाइपर सोनिक मिसाइल अमेरिका से आगे निकलने के चीनी ड्रैगन के सपने को चकनाचूर कर सकती है.


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