जिनेवा: वैश्विक तापमान 20वीं सदी में कम से कम पिछले 2,000 साल में सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गया है. जिससे इस ताप का असर एक ही वक्त में पूरे ग्रह को प्रभावित कर रहा है. एक अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है. ऐसा माना जाता था कि "लिटिल आइस एज" (1300 से 1850 एडी तक की अवधि) और इसी तरह लोकप्रिय "मेडिवल वार्म पीरियड" वैश्विक घटनाएं हैं.


हालांकि स्विट्जरलैंड के बर्न युनिवर्सिटी के शोधकर्ता इन कथित वैश्विक जलवायु बदलावों की एक अलग ही तस्वीर सामने रखते हैं. उनका शोध दिखाता है कि पिछले 2,000 साल में पूरे विश्व में एक जैसी गर्म या सर्द अवधि रही हो, इस बात के कोई सबूत नहीं मिलते.


बर्न युनिवर्सिटी के राफेल न्यूकोम ने कहा "यह सच है कि लिटिल आइस एज के दौरान पूरे विश्व में आम तौर पर ठंड रहती थी, लेकिन एक ही वक्त में हर जगह नहीं." उन्होंने कहा कि औद्योगिकीकरण से पहले गर्म और ठंड की अवधि अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग समय में रही.


जलवायु वैज्ञानिक के मुताबिक पूरे विश्व में एक ही वक्त में घट रहे जलवायु संबंधी चरणों की परिकल्पना अब उस प्रभाव के चलते सामने आई है, जिसे यूरोप एवं उत्तरी अमेरिका के जलवायु के इतिहास के जरिए समझा जा सकता है. यह रिसर्च 'नेचर और नेचर जियोसाइंस' पत्रिका में प्रकाशित हुआ है.


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