Mount Everest: माउंट एवरेस्ट (Mount Everest) पर दुनिया की छत पर जलवायु परिवर्तन निर्णायक रूप से आ गया है. ग्लेशियर  (Glacier) से एक बर्फ का टुकड़ा  (ice core) निकालने वाले शोधकर्ताओं के एक नए अध्ययन के अनुसार, पृथ्वी पर सबसे ऊंचे पर्वत पर सबसे ऊंचा ग्लेशियर हर साल दशकों की बर्फ खो रहा है.


नेचर पोर्टफोलियो जर्नल क्लाइमेट एंड एटमॉस्फेरिक रिसर्च में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया कि माउंट एवरेस्ट का साउथ कोल ग्लेशियर, जो पर्वतारोहियों को शिखर तक ले जाता है, 1990 के दशक के बाद से इस क्षेत्र में तापमान के गर्म होने के कारण अपना आधा द्रव्यमान खो चुका है. यह इस सदी के मध्य तक पूरी तरह से गायब हो सकता है.


निष्कर्ष 2019 नेशनल ज्योग्राफिक और रोलेक्स परपेचुअल प्लैनेट एवरेस्ट अभियान के परिणाम हैं, जो 34 अंतर्राष्ट्रीय और नेपाली वैज्ञानिकों, कई शेरपाओं और लॉजिस्टिक चुनौतियों की एक श्रृंखला को एक साथ लाया है.


शोधकर्ताओं की टीम ने स्थापित किए पांच मौसम स्टेशन 
अभियान प्रमुख और प्रमुख वैज्ञानिक पॉल मेवेस्की ने कहा कि यह अभियान व्यापक था, और आइस कोर के साथ-साथ जैविक नमूने लेना, एक उच्च-रिज़ॉल्यूशन मानचित्र बनाना, और पानी की गुणवत्ता के साथ-साथ एवरेस्ट के ग्लेशियरों के इतिहास का अध्ययन करना इसमें शामिल था. टीम ने पांच मौसम स्टेशन भी स्थापित किए जिनमें से दो मौसम स्टेशन दुनिया में सबसे अधिक ऊंचाई पर हैं). मेवेस्की के मुताबिक यह एवरेस्ट के दक्षिण की ओर किया गया अब तक का सबसे पूर्ण वैज्ञानिक प्रयोग था.


1990 के बाद हुआ ज्यादा नुकसान 
शोधकर्ताओं ने पाया है कि दक्षिण कर्नल ग्लेशियर पर बर्फ को जमने में करीब 2000 साल लगे और लगभग 30 साल में 55 मीटर (180 फीट) बर्फ खो गई. शोधकर्ताओं का अनुमान है कि यह नुकसान 1990 के दशक के बाद से हुआ है. यदि बर्फ के नुकसान की दर जारी रहती है, तो मेवेस्की कहते हैं, साउथ कर्नल ग्लेशियर शायद कुछ ही दशकों में गायब हो जाएगा. यह काफी उल्लेखनीय संक्रमण है.


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