नई दिल्ली: अमेरिका ने ईरान के दूसरे सबसे बड़े नेता कासिम सुलेमानी की हत्या 3 जनवरी यानी पिछले हफ्ते शुक्रवार को की थी. और तब से पूरी दुनिया में एक ही सवाल पूछा जा रहा है कि क्या कासिम सुलेमानी की मौत तीसरे विश्व युद्ध की वजह बनेगी? इसके पीछे बहुत से सामरिक और ऐतिहासिक कारण बताए जा रहे हैं. जैसे 1914 में पहले विश्व युद्ध की शुरुआत भी ऐसी ही एक राजनीतिक हत्या से हुई थी. तो आइए जानते हैं कि एक्सपर्ट्स की राय क्या है.


पूर्व राजदूत विवेक काटजू  का क्या कहना है...


इस मामले पर पूर्व राजदूत विवेक काटजू ने कहा कि सब मामलों की दारोमदार एक बात पर निर्भर करेगा कि इन मिसाइल अटैक का कितना नुकसान अमेरिकी सेना को हुआ है. अभी तक ये लगता है कि अमेरिका का कोई सैनिक हताहत नहीं हुआ और राष्ट्रपति ट्रंप भी देश को संबोधित कर ये बात कह चुके हैं. अगर अमेरिका की सेना को कोई क्षति नहीं पहुंची है तो मामला सुलझने की तरफ बढ़ता जाएगा.


देखिए पहले तो मैं यह कह दूं.आपने जो खेमें जिस तरह बताएं हैं वह नहीं हैं. चीन रूस और उसके साथ-साथ यूरोप के देश सब अमेरिका से अपील कर रहे हैं कि इस मामले को ज्यादा तूल मत दो. मामले को यहीं खत्म कर दो. क्योंकि अगर खाड़ी के क्षेत्र में पश्चिम एशिया में तनाव बढ़ता है.तो उससे दुनिया को फायदा नहीं नुकसान ही होगा. लेकिन ये सोचना कि अगर अमेरिका हमला करेगा तो रूस और चीन अमेरिका के खिलाफ अपनी सैन्य शक्ति का इस्तेमाल करेंगे और एक विश्व युद्ध की संभावना होगी. ये बिल्कुल गलत है. निराधार है. ऐसी स्थिति नहीं उत्पन्न हो सकती.


अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव और इस मामले से क्या संबंध है ?


इसकी शुरुआत 1979 से होती है जब इस्लामी क्रांति हुई थी. उस साल के दौरान अमेरिका के एक दूताावास तेहरान पर हमला किया था. रिवोल्यूशनरी लोगों ने ईरान के और 52 अमेरिकी राजनायिकों को 444 दिन बंदी रखा था. उस समय जिम्मी कार्टर डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति थे. उस समय वह बिल्कुल असाहय पाए गए और चुनाव हार गए.


राष्ट्रपति ट्रंप और अमेरिकी प्रशासन ने कहा कि सुलेमानी ने ये ऑक्सट्रेट किया था और अमेरिकी राष्ट्रपति जो ईमपीच हो चुके हैं .वो दिखाना चाहते थे कि डेमोक्रेट के कॉन्ट्रास्ट में वह कितने प्रबल हैं. वह दिखाना चाहते थे कि वह ताकतवर कितनी शक्तिशाली हैं .तो उन्होंने ये आदेश दिया कि ताकतवर सुलेमानी को खत्म करो. वो ये दिखाना चाह रहे थे कि डेमोक्रेट तो बिल्कुल दुर्बल है, मैं शक्तिलशाली हूं.अब आज के दिन क्या स्थिति है. ईरान में आक्रोश बहुत हुआ और उन्होंने मिसाइल दागी है. अगर अमेरिका कोई नुकसान नहीं हुआ तो वह सेनशंस बढ़ा देंगे और देशों को चेतावनी देंगे. अगर आपने इनसे कोई भी संबंध रखा तो आपको हमारे गुस्से का सामना करना पड़ेगा.वो ये सब कर सकते हैं.


अंतराष्ट्रीय संबंध हितों पर आधारित होते हैं. हमारे हित कहां हैं. हमारे ज्यादा हित इस समय अमेरिका के साथ हैं. हमारे ज्यादा हित निहित हैं. सऊदी अरेबिया यूएई और इन देशों में ...हां... ईरान के साथ भी हैं..लेकिन जब नीति बनाई जाती है तो ये पहले देखा जाता है किस तरह करें.अपने हितों की सुरक्षा कैसे करें. मुझे लगता है हम इसमें न दखलअंदाजी करना चाहेंगे न ही हमारा कोई रोल हो सकता है. जिस तरह स्थिति उत्पन्न हो रही है जिसका हमने अभी तक जिक्र नहीं किया.. रेव्यूशनलरी गार्ड की ओर तरफ से स्टेटमेंट्स बहुत आईं है. हम दुबई को निशाना बनाएंगे हम हाइफा को निशाना बनाएंगे. लेकिन ईरान के विदेश मंत्री ने ट्वीट कर कहा है कि हमपर जिन बेसिस पर हमपर हमला हुआ था उन बेसिस पर हमने कार्रवाई की है. हमने प्रपोशनेट कार्रवाई की है. हमनें यूएन चार्टर के तहत, आर्टिकल 51 के तहत आत्मरक्षा के तहत उसका जो प्रोविजन है उसके तहत कार्रवाई की है. हम इस मामले को बढ़ाना नहीं चाहते हैं.


देखिए अगर अमेरिका की जान की क्षति नहीं हुई है तो डॉनाल्ड ट्रंप के लिए राहत की खबर होगी. कुछ न कुछ वो कार्रवाई कर सकते हैं. इसका मतलब ये नहीं कि वह सैन्य कार्रवाई करें. वह सेंक्शन बढ़ा देंगे. वो ईरानी रिजिम को शिकंजे में लेगें. वो चाहते हैं रिजिम चेंज लेकिन वो ये भी जानते हैं रिजिम चेंज इतना आसान नहीं है.


कमर आगा विदेश एक्सपर्ट का क्या कहना है...


कमर आगा विदेश एक्सपर्ट- देखिए ईरान जानता है अमेरिका के पास अथाह शक्ति है. और वो शक्ति इतनी बड़ी है शायद दुनिया में किसी के पास नहीं है. शायद रूस कुछ थोड़ा बहुत मैच कर सकता है. ईरान चाहेगा नहीं कि कोई अटैक उसके मुल्क उपर हो. मुझे लगता है ईरान ने जानकर ऐसी जगह पर मिसाल दागे थे कि अमेरिकन सैनिकों की जान न जाए. बिल्डिंग को नुकसान हो. ये उनका प्लान रहा होगा. ईरान ने इससे पहले भी जो कहा जाता है कि शिप वगैरह पर जो अटैक किया, उसमें भी लोगों की हत्याएं नहीं हुई थी.


कमर आगा ने कहा मैं एक चीज कहने चाहूंगा. ईरानियन अमेरिकन माइट को चैलेंज किया है.अगर अमेरिका उसका बदला नही लेगा.तो मैं समझता हूं अमेरिका की छवि मिडिल ईस्ट में और कम हो जाएगी.पहले ही भी उसकी पब्लिक सपोर्ट ज्यादा नहीं है. उन देशों में भी नहीं है जहां पर प्रो अमेरिकन रिजिम्स हैं वो भी बहुत कमजोर हो चुकी है.चाहे सऊदी अरेबिया हो यूएई हो. दूसरी बात ये है कि सऊदी अरेबिया,यूएई जो ईरान के बहुत खिलाफ थे.चाहते थे जंग हो. अब उनकी कोशिश ये है खासतौर पर जब से ईरानियनन बैग टहूयति मलेशिया ने ऑयल इंस्टोलेशन पर अटैक किया है.तब से सउदी अरेबिया कोशिश कर रहा है बातचीत हो.


एक रिपोर्ट ये भी है खासतौर से इराकी प्रेसिडेंट ने ये बताया कि सुलेमानी जो,आए थे वो ईरान का मैसेज लेकर आए थे. जो मैसेज उनको सउदी अरेबिया देना था. बातचीत के लिए इनको शामिल किया था. सुलेमानी चाहते थे कि ईरान और सउदी अरेबिया के बीच बातचीत हो. उनकी हत्या के बाद ये मसला रूक गया. यूएई भी चाहता है कि बातचीत हो.अगर अमेरिका के बगैर बातचीत होती है. . नके संबंध सुधरते हैं. ईरान, सऊदी अरेबिया और यूएई ये तीनों देश चाहते हैं कि बातचीत हो. इराकी सरकार तीनों के बीच मध्यस्था कर रही है.ये खबर भी आ चुकी है. अगर अमेरिका के बगैर ये इस तरह की बड़ी कार्रवाई होती है तो अमेरिका की प्रेस्टीज और कम होगी.


कुछ समय पहले रसिया ने अभी स्टेटमेंट ने दिया है. उसमें उन्होंने कहा है कि न्यूक्लियर वार भी हो सकता है. ईरान से रसिया से रिक्वेस्ट की है उसको डिफेंस के लिए न्यूक्लियर वैपन दे. रसिया ने कहा है न्यूक्लीयर वैपन का भी इस्तेमाल हो सकता है. ईरान ने मांग की है कि उन्हें डिफेंस के लिए न्यूक्लियर वैपन दिए जाएं. ये सही बात है अमेरिका के सामने ईरान की कोई हैसियत नहीं है. उसके पास अथाह हथियार हैं. अमेरिका ने ये हथियार दिखाने के लिए नहीं बनाए हैं.अगर जरूरत पड़ी तो वह इस्तेमाल भी कर सकता है.


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