China Relation With Saudi Arabia and Iran: पिछले हफ्ते, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने साऊदी अरब में तीन प्रमुख क्षेत्रीय कार्यक्रमों में भाग लिया. इस यात्रा के दौरान शी सऊदी-चीन शिखर सम्मेलन, चीन-खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) शिखर सम्मेलन, और चीन-अरब शिखर सम्मेलन में मौजूद रहे. मुलाकात के दौरान शी और सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान ने चीन-सऊदी द्विपक्षीय संबंधों में एक नए युग की शुरुआत करने के लिए एक-दूसरे की खूब सराहना की.
शी की यात्रा ने पूरी दुनिया में एक संदेश दिया कि चीन-सऊदी संबंध तेजी से विकास की एक नई अवधि में प्रवेश कर रहे हैं. हालांकि साऊदी के साथ अच्छे संबंध के कारण अब ईरान की चिंताएं बढ़ गई हैं. तेहरान के लिए इन दोनों मुल्कों की बढ़ती नजदीकियां नुकसानदायक हो सकती हैं.
सऊदी अरब और ईरान के साथ चीन के जटिल संबंध
सऊदी अरब और ईरान के साथ चीन के संबंध थोड़े जटिल हैं. चीन के नेतृत्व को अपनी तटस्थता बनाए रखने और अपने आर्थिक, राजनीतिक और सुरक्षा हितों की रक्षा के लिए दोनों देशों के साथ संबंध अच्छे रखने होंगे.
चीन ने खाड़ी देशों के (खासकर ईरान और साऊदी) बीच प्रतिद्वंद्विता के मैदान से खुद को बाहर रखा है. हालांकि अब देखना होगा कि ईरान चीन द्वारा साऊदी को 4 बिलियन डॉलर की रक्षा उपकरणों की खरीद की खबरों पर कैसे रिएक्ट करता है. साऊदी के पास चीन निर्मित हथियार ईरान के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं.
चीन ने तेहरान या रियाद को विशेषाधिकार देने की धारणा से बचने के लिए अबतक अलग निती अपना रखी है. उदाहरण के लिए, 2016 में, शी ने सऊदी अरब और ईरान दोनों के साथ दो हफ्तों के भीतर ही व्यापक रणनीतिक साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. 2017 और 2019 भी अपनी रणनीति के तहत चीन ने केवल कुछ ही हफ्तों के अंतराल पर ईरान और सऊदी अरब के साथ अलग-अलग सैन्य अभ्यास किए. अब जब शी साऊदी गए थे तो इसी बीच तेहरान को लेकर भी चीन ने एक घोषणा कर दी. 10 दिसंबर को तेहरान में चीन के राजदूत ने घोषणा की कि चीनी वाइस प्रीमियर हू चुनहुआ 12 दिसंबर को तेहरान का दौरा करेंगे.
ईरान की नाराजगी
हालांकि चीन अपनी रणनीति के तहत चाहे कितनी भी कोशिश करे लेकिन ईरान शी जिनपिंग के साऊदी यात्रा से काफी नाराज है. शी की सऊदी अरब की यात्रा के बाद, एशिया-प्रशांत के लिए ईरान के उप विदेश मंत्री ने 12 दिसंबर को ईरान में चीन के राजदूत को तलब किया था.
साथ ही ईरान ने अपनी नाराज़गी चीन और सऊदी अरब के उस संयुक्त बयान को लेकर दी जिसमें ये कहा गया है कि दोनों देशों के बीच इस पर सहमति बनी है, "अबू मूसा, ग्रेटर तुंब और लेसर तुंब से जुड़े विवाद के शांतिपूर्ण हल के लिए अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के तहत द्विपक्षीय वार्ता की संयुक्त अरब अमीरात की शांतिपूर्ण कोशिशों का सभी मुल्क समर्थन करेंगे."
ईरान के विदेश मंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान ने ट्वीट कर कहा, "फारस की खाड़ी में मौजूद अबू मूसा, ग्रेटर तुंब और लेसर तुंब ईरान का अभिन्न हिस्सा हैं और हमेशा इसका हिस्सा रहेंगे. ईरान की क्षेत्रीय अखंडता का दूसरे मुल्कों को सम्मान करना चाहिए."
यहां आपको बता दें कि फारस की खाड़ी में मौजूद अबू मूसा, ग्रेटर तुंब और लेसर तुंब तीन छोटे द्वीप हैं जिन पर ईरान और संयुक्त अरब अमीरात दोनों ही अपना दावा करते हैं. दोनों इसको लेकर आमने-सामने हैं. ईरान किसी भी कीमत पर इस समस्या के समाधान के लिए तीसरे पक्ष को शामिल करने पर राजी नहीं है. यही कारण है कि शी और अरब के संयुक्त बयान पर ईरान बौखलाया हुआ है.
शी का साऊदी दौरा क्यों महत्वपूर्ण
चीन ने वैश्विक तेल बाजारों में संतुलन और स्थिरता के समर्थक के रूप में और चीन को कच्चे तेल के विश्वसनीय प्रमुख निर्यातक के रूप में सऊदी की भूमिका का स्वागत किया. सऊदी स्टेट टीवी अल-एख़बारिया ने कहा कि दोनों देशों के बीच व्यापक रणनीतिक साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद शी जिनपिंग ने सऊदी किंग सलमान बिन अब्दुल अज़ीज़ को चीन की यात्रा के लिए आमंत्रित किया.
किन-किन मसलों पर समझौता?
चीनी स्टेट मीडिया के मुताबिक दोनों देशों के बीच हर दो साल में राष्ट्राध्यक्षों की बैठक आयोजित करने पर सहमति भी बनी है. जिनपिंग ने कहा है कि चीन वैश्विक तौर पर सऊदी अरब को एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में देखता है और उसके साथ एक रणनीतिक साझेदारी विकसित करने के लिए अधिक महत्व देता है. हाइड्रोजन पर ऊर्जा समझौते पर हस्ताक्षर करने के साथ-साथ सऊदी अरब के महत्वाकांक्षी आर्थिक सुधार एजेंडे, विजन 2030 की बात की गई. दोनों के बीच सौदों में एक पेट्रोकेमिकल परियोजना, आवास विकास और चीनी भाषा का शिक्षण भी शामिल है.
जिनपिंग की सऊदी अरब यात्रा के मायने?
शी जिनपिंग की सऊदी दौरे का मकसद यूक्रेन में युद्ध के मद्देनजर रूस (Russia) पर बढ़ते प्रतिबंध की वजह से अपने देश की ऊर्जा आपूर्ति के लिए संबंध को मजबूत करना है. वहीं, सऊदी अरब एक तरह से अमेरिका (America) को संदेश देने की कोशिश कर रहा है कि वह उसे बंधा हुआ ना समझे. अभी कुछ महीने पहले ही अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन भी सऊदी अरब की यात्रा पर थे. बाइडन सऊदी को राजी करने गए थे कि वह तेल का उत्पादन बढ़ाए लेकिन उसने ऐसा करने से इनकार किया. उधर, चीन को अपने हथियार भी बेचने हैं और सऊदी को इसकी काफी जरूरत भी है.
आखिर क्या है चीन की रणनीति?
अब सवाल उठ रहा है कि चीन मध्य पूर्वी देशों में इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहा है. अभी तक अमेरिका का इन देशों पर हमेशा दबदबा रहा है. ऐसे में माना जा रहा है कि चीन, अमेरिका की जगह लेना चाहता है और इन देशों की मदद के लिए हाथ बढ़ाकर अपना दबदबा बढ़ाना चाहता है.
क्या भारत पर इसका असर पड़ेगा
शी के साऊदी यात्रा से जहां ईरान नाराज है तो वहीं सवाल उठ रहे हैं कि इस यात्रा का भारत पर क्या असर पड़ेगा. पहली नजर में देखें तो चीन और साऊदी की नजदीकियां अमेरिका के लिए तो चिंता की बात है लेकिन भारत को फिलहाल इससे कोई नुकसान नहीं है. खाड़ी देश भारत के मित्र हैं. चीन के बाद भारत ही वो देश है जो तेल का सबसे बड़ा आयातक है.
भारत के लिए अगर कोई चिंता की बात है तो बस ये कि जिस तरह से चीन इस क्षेत्र में आधारभूत ढांचों, परियोजनाओं का निर्माण कर रहा है उससे भारत को अपने पड़ोस के इस क्षेत्र में उसकी गतिविधियों से चौकन्ना रहना होगा.