China-Philippines Crisis: फिलीपींस ने तोड़े चीनी बैरियर, दक्षिण चीन सागर में फिर बढ़ा तनाव, जानिए क्या है इस झगड़े की असल वजह
China News: फिलीपींस से करीब 200 किमी दूर स्थित स्कारबोरो शोल में लैगून के एंट्री गेट पर 300 मीटर लंबा बैरियर लगाया गया था. फिलीपींस ने इसे ही गिराया है. इसे लेकर 2012 से ही विवाद चल रहा है.
China-Philippines Tussle: फिलीपींस और चीन के बीच फिर तनाव पैदा हो गया है. फिलीपींस कोस्ट गार्ड ने सोमवार (26 सितंबर) को कहा कि उसने चीनी कोस्ट गार्ड की ओर से लगाए गए कुछ फ्लोटिंग बैरियर को हटा दिया है. ये बैरियर दक्षिण चीन सागर में मछली पकड़ने वाली फिलीपीन की नौकाओं को एक विवादित क्षेत्र में प्रवेश करने से रोकने के लिए लगाए गए थे.
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, फिलीपींस से करीब 200 किमी दूर स्थित स्कारबोरो शोल में लैगून के एंट्री गेट पर 300 मीटर लंबा बैरियर लगाया गया था. फिलीपीन ने इसे ही गिराया है. चीन और फिलीपींस के बीच 2012 से स्कारबोरो शोल को लेकर झगड़ा चल रहा है. दोनों इस पर दावा करते हैं, लेकिन संप्रभुता कभी स्थापित नहीं हुई है और यह अभी प्रभावी रूप से बीजिंग के नियंत्रण में है. अब इस घटना ने एक बार फिर दक्षिण चीन सागर विवाद को सामने ला दिया है.
क्या है दक्षिण चीन सागर विवाद?
दक्षिण चीन सागर चीन की मुख्य भूमि के ठीक दक्षिण में स्थित है और इसकी सीमा ब्रुनेई, चीन, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, ताइवान और वियतनाम जैसे देशों से लगती है. ये देश समुद्र में क्षेत्रीय नियंत्रण को लेकर सदियों से आपस में झगड़ते रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ साल में तनाव नई ऊंचाइयों पर पहुंच गया है. चीन खुद को सबसे ताकतवर बनाने की रेस में इस क्षेत्र पर नियंत्रण करना चाहता है.
1947 में राष्ट्रवादी कुओमितांग पार्टी के शासन के तहत देश ने तथाकथित "नाइन-डैश लाइन" के साथ एक नक्शा जारी किया था. यह रेखा मूल रूप से बीजिंग के दावे वाले दक्षिण चीन सागर के जल और द्वीपों को घेरती है. चीन समुद्र के 90% हिस्से पर दावा करता है. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के सत्ता में आने के बाद भी यह रेखा आधिकारिक मानचित्रों में दिखाई देती रही.
पिछले कुछ वर्षों में चीन ने इस समुद्री इलाके में अन्य देशों को उसकी सहमति के बिना कोई भी सैन्य या आर्थिक अभियान चलाने से रोकने की कोशिश की है. उसका कहना है कि समुद्र उसके विशेष आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) के तहत आता है. हालांकि, चीन के व्यापक दावों का अन्य देशों की ओर से विरोध किया गया है. काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस (सीएफआर) के अनुसार, इस विरोध के जवाब में चीन ने द्वीपों का आकार भौतिक रूप से बढ़ा दिया है या समुद्र में नए द्वीप बनाए हैं.
मौजूदा चट्टानों पर रेत जमा करने के अलावा चीन ने बंदरगाहों, सैन्य प्रतिष्ठानों और हवाई पट्टियों का निर्माण किया है. विशेष रूप से पारासेल और स्प्रैटली द्वीप समूह में, जहां इसकी क्रमशः बीस और सात चौकियां हैं. चीन ने लड़ाकू जेट, क्रूज़ मिसाइलों और एक रडार प्रणाली को तैनात करके वुडी द्वीप का सैन्यीकरण किया है.
क्या है दक्षिण चीन सागर का महत्व?
संयुक्त राज्य ऊर्जा सूचना एजेंसी के अनुमान के अनुसार, दक्षिण चीन सागर के नीचे 11 अरब बैरल तेल और 190 ट्रिलियन क्यूबिक फीट प्राकृतिक गैस जमा है. इसके अलावा यहां समुद्री मछलियों का भी भंडार है. यह मछलियां पूरे क्षेत्र के लाखों लोगों के लिए आय का एक प्रमुख स्रोत है. बीबीसी ने बताया कि दुनिया के आधे से अधिक मछली पकड़ने वाले जहाज इसी क्षेत्र में संचालित होते हैं. यही नहीं, यह समुद्र एक महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग भी है.
'नाइन-डैश लाइन' क्या है?
नौ-डैश लाइन चीनी मानचित्रों पर समुद्र में चीन के क्षेत्रीय दावों को दिखाती है. सीएफआर ने कहा, शुरुआत में यह "इलेवन-डैश लाइन" थी, लेकिन 1953 में सीसीपी के नेतृत्व वाली सरकार ने "टोंकिन की खाड़ी को शामिल करने वाले हिस्से को हटा दिया, जिससे सीमा नौ डैश तक रह गई. यह रेखा चीनी मुख्य भूमि से 2,000 किलोमीटर दूर फिलीपींस, मलेशिया और वियतनाम के कुछ सौ किलोमीटर के अंदर तक चली जाती है.
इसलिए भी फिलीपींस और चीन के बीच विवाद
स्कारबोरो शोल जिसे हुआंगयान द्वीप के नाम से भी जाना जाता है, यह फिलीपींस के ईईजेड के तहत आता है. वहीं बीजिंग इस पर अपना दावा जताता है. वह कहता है कि "चीन के नाविकों ने 2,000 साल पहले हुआंगयान द्वीप की खोज की थी. वह सोंग राजवंश (960-1279 ईस्वी) के दौरान यात्राओं, मानचित्रण अभियानों और शोल के निवास के व्यापक रिकॉर्ड का हवाला देता है.
चीन ने इस मामले में ट्रिब्यूनल का फैसला भी नहीं माना
2016 में फिलीपींस स्कारबोरो शोल के विवाद में चीन को इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल में ले गया. यहां सुनवाई के दौरान ट्रिब्यूनल ने अपने फैसले में नौ-डैश लाइन को काफी हद तक खारिज कर दिया और कहा कि, “चीन ने फिलीपीन जहाजों को खतरे में डालकर और समुद्री को नुकसान पहुंचाकर अंतरराष्ट्रीय कानून तोड़ा है.” वहीं, चीन ने इसे खारिज कर दिया और कहा कि यह ट्रिब्यूनल का अधिकार क्षेत्र नहीं है.
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