Bolsonaro Supporters Storm Key Government Buildings in Brazil: ब्राजील दक्षिण अमरीका का सबसे विशाल और महत्त्वपूर्ण देश है. यहां रविवार को भारी हिंसा हुई. देश के कई हिस्सों में प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़प हुई. पूर्व राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो के समर्थकों ने हिंसा की. उन्होंने पुलिस बैरिकेड्स तोड़ दिया और राष्ट्रपति भवन में घुस गए. यह मंजर ठीक वैसा ही था जैसे कुछ दिनों पहले श्रीलंका में देखा गया था. अब हुई हिंसा और तोड़फोड़ में ब्राजील की पुलिस ने 400 लोगों को गिरफ्तार किया है. हालांकि हिंसा की आग अभी भी थमी नहीं है.


ब्राजील में जारी हिंसा को लेकर सबके मन में सवाल है कि आखिर एक हफ्ते पहले ही राष्ट्रपति बने लुइज इनासियो लूला डा सिल्वा के खिलाफ देशभर में प्रदर्शन क्यों हो रहे हैं. क्या है पूरा मुद्दा आइए समझते हैं. 


क्यों हो रही है ब्राजील में हिंसा


बता दें कि ब्राजील में चुनाव के बाद से ही राजनीतिक संकट बनी हुई है. ब्राजील में 30 अक्टूबर को हुए रिइलेक्शन में लुइज इनासियो लूला डा सिल्वा ने जीत दर्ज की. इसके बाद से ही पूर्व राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो के समर्थकों ने विरोध प्रदर्शन शुरू किया.  पूर्व राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो के समर्थकों ने चुनाव का परिणाम मानने से इनकार कर दिया है. समर्थक तो छोड़िए खुद बोल्सोनारो अपनी हार स्वीकार नहीं कर रहे हैं.


हिंसा थमने के आसार नहीं!
ब्राजील के न्याय मंत्री फ्लैवियो डीनो ने कहा, "इंटरनेट पर अभी भी ऐसे लोग हैं, जो कह रहे हैं कि ऐसी आतंकवादी घटनाएं अभी थमेंगी नहीं. पर हम उन्हें ऐसा नहीं करने देंगे. वो ब्राजील के लोकतंत्र को तबाह नहीं कर पाएंगे. हम राजनीतिक संघर्ष को अपराध के रास्ते पर नहीं जाने देंगे. अपराधियों से अपराधियों जैसा व्यवहार किया जाएगा."


अमेरिका, इराक, श्रीलंका  और फिर ब्राजील


साल 2021 में अमेरिका में ऐसी ही हिंसा देखने को मिली थी. ट्रंप के समर्थक अपनी हार नहीं पचा पाए थे. उन्होंने जमकर कैपिटल हिल में हंगामा किया था. इराक में भी आक्रोशित सैकड़ों प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन पर कब्जा कर लिया. ज्यादातर प्रदर्शनकारी इराकी शिया लीडर मुक्तदा अल सदर के समर्थक थे. प्रदर्शनकारी ईरान समर्थित पार्टी द्वारा प्रधानमंत्री के लिए पूर्व मंत्री और पूर्व प्रांतीय गवर्नर मोहम्मद शिया अल-सुदानी की उम्मीदवारी का विरोध कर रहे थे.


इसके अलावा श्रीलंका की घटना कौन भूल सकता है जहां हजारों की तादाद में प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति भवन को घेर लिया था. आर्थिक तंगहाली का सामना कर रहे श्रीलंका के लोग प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से नाराज थे.


लूला की सरकार के सामने पहले से ही बड़ी चुनौतियां


लूला की सरकार के सामने सत्ता संभालते ही कई चुनौतियां आ गई है.  सबसे बड़ी चुनौती पर्यावरण संतुलन बनाना है. दरअसल अमेजन जंगल का 60 प्रतिशत हिस्सा ब्राजील में है. ये दुनिया की जलवायु का संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं. साथ ही ग्लोबल वॉर्मिंग से लड़ने में भी मदद करते हैं लेकिन जंगल में आग, अवैध उत्खनन और पेड़ों की कटाई के चलते ब्राजील को 90 साल के सबसे भीषण सूखे का सामना करना पड़ा. लूला हमेशा से ही पर्यावरण संरक्षण के पक्ष में रहे हैं. उनके राष्ट्रपति बनने के बाद अब ब्राजील पेड़ों की कटाई जैसी समस्याओं से उबर सकता है.


तीसरी बार लूला ने संभाली ब्राजील की सत्ता
ब्राजील में हुए चुनाव के नतीजे आने के बाद वामपंथी गठबंधन के नेता लुइस इनासियो लूला डी सिल्वा नए राष्ट्रपति बने. उन्होंने मौजूदा राष्ट्रपति जेयर बोल्सोनारो को बेहद कड़े मुकाबले में हरा दिया था. लूला को 50.9 प्रतिशत और जेयर को 49.2 प्रतिशत वोट मिले हैं. लूला ब्राजील की तीसरी बार सत्ता संभाल रहे हैं.


30 अक्टूबर को राष्ट्रपति चुनाव के लिए दूसरे राउंड की वोटिंग हुई थी. लूला डी सिल्वा को 50.90 प्रतिशत, जबकि बोल्सोनारो को 49.10 प्रतिशत वोट मिले. ब्राजील के संविधान के मुताबिक, चुनाव जीतने के लिए किसी भी कैंडिडेट को कम से कम 50 प्रतिशत वोट हासिल करने होते हैं. पिछले महीने हुई पहले राउंड की वोटिंग में लूला को 48.4 प्रतिशत, जबकि बोल्सोनारो को 43.23 प्रतिशत वोट मिले थे.