‘हाइब्रिड चावल के पिता’ के नाम से मशहूर वैज्ञानिक युआन लोंगपिंग का निधन
प्रख्यात वैज्ञानिक युआन लोंगपिंग का आज 91 साल की उम्र में निधन हो गया. वह ‘हाइब्रिड चावल के पिता’ के नाम से पूरी दुनिया में मशहूर थे.
पूरी दुनिया में ‘हाइब्रिड चावल के पिता’ के नाम से मशहूर वैज्ञानिक युआन लोंगपिंग का आज 91 साल की उम्र में निधन हो गया. सरकारी संवाद एजेंसी शिन्हुआ ने बताया कि शीर्ष धान वैज्ञानिक लोंगपिंग का निधन हुनान प्रांत की राजधानी चांगसा के अस्पताल में हुआ. चीन के राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के महानिदेशक हु पीसांग ने कहा, ‘‘कुछ शब्द युआन की उपलब्धि के साथ जुड़ेंगे. उन्होंने दुनिया की भूख से मुकाबला करने में मदद की.’’
युआन का 1930 में बीजिंग में जन्म हुआ था. उन्होंने 1973 में उच्च उत्पादन वाले धान की संकर प्रजाति विकसित की थी, जिसकी बाद में बड़े पैमाने पर चीन में खेती की गई और स्थायी रूप से चावल का उत्पादन बढ़ा. चीन में हाइब्रिड धान के जनक युआन लोंगपिंग का आज दोपहर में निधन हो गया.
चीनी नागरिकों ने इस महान वैज्ञानिक के निधन पर गहरा शोक जताया है. गौरतलब है कि युआन लुंगफिंग चीन में हाइब्रिड धान के अनुसंधान व विकास के संस्थापक रहे हैं, जो विश्व में हाइब्रिड धान की श्रेष्ठता से लाभ उठाने वाले पहले वैज्ञानिक भी थे. युआन लुंगफिंग की हमेशा इच्छा हाइब्रिड धान का विकास कर विश्व की जनता को लाभ देना रही है.
गौरतलब है कि एफएओ ने युआनलुंगफिंग की उपलब्धियों पर बड़ा ध्यान दिया, और उन्हें भारत के कृषि विकास में मदद देने के लिए भी आमंत्रित किया, ताकि भारत में अनाज के अभाव को दूर किया जा सके. भारतीय जनता की सहायता देने के लिए चीन ने एफएओ का अनुरोध स्वीकार किया.
इस यात्रा में युआन लुंगफिंग ने न सिर्फ भारतीय लोगों को बहुत कृषि पुस्तकें प्रदान कीं, बल्कि चीन के सुपर धान का बीज भी भारत को दिया. उनका लक्ष्य था कि भारत भी चीन की तरह उच्च उपज और अधिक आपदा प्रतिरोधी धान उगा सके, और भारतीय जनता चीन की कृषि उपलब्धियों को साझा करे.
युआन लुंगफिंग भारत में पहुंचते ही जल्द ही खेतों में व्यस्त हो गए. उन्होंने भारत के मौसम व भूमि की स्थिति को जानने के बाद स्थानीय किसानों को सुपर धान उगाना सिखाना शुरू किया. इसके अलावा उन्होंने भारतीय धान की विशेषता के आधार पर तीन हफ्ते तक निरंतर रूप से खेतों व प्रयोगशाला में अध्ययन कर भारत के लिए उपयुक्त धान का बीज पैदा किया. बाद में इस प्रकार के धान ने भारत के अनाज उत्पादन में कम से कम 30 प्रतिशत की वृद्धि की है.