Food Wastage In Europe: पूरे विश्व में इस समय महंगाई अपने चरम पर है. जानकार इसके पीछे रूस- यूक्रेन के बीच रहे है युद्ध को कारण बताते है. कुछ जानकारों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के चलते भी महंगाई में बढ़ोतरी हुई है. इसी बीच यूरोप से एक हैरान करने वाली खबर सामने आई है. दरअसल एक रिसर्च में पता चला है कि यूरोप में अन्न की बर्बादी उसके आयात की तुलना में ज़्यादा हो रही है. फीडबैक ईयू के रिसर्च के मुताबिक यूरोप में हर साल करीब 15.30 करोड़ टन भोजन की बर्बादी होती है.
2030 तक बर्बादी को आधा करना है लक्ष्य
अकेले यूरोप में जितनी गेहूं की बर्बादी होती है, उतने ही गेहूं में यूक्रेन की आधी आबादी का पेट भरा जा सकता है. फीडबैक ईयू के निर्देशक फ्रैंक मेचिल्सन ने कहा कि उच्च खाद्य कीमतों और जीवन के संकट के समय में अनाज की इतनी बर्बादी करना एक बड़ी अव्यवस्था को पैदा करने जैसा है. रिसर्च के मुताबिक फ्रैंक ने कहा कि हमें 2030 तक इस बर्बादी को 50 फीसदी तक कम करना है. इसका समर्थन करीब 43 पर्यावरण संबंधी गैर-लाभकारी संस्थाओं ने भी किया है.
सस्ता युग चला गया
संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, यूक्रेन युद्ध के कारण अगस्त में वैश्विक खाद्य कीमतों में करीब 8 फीसदी का इजाफा हुआ था. गेहूं, मक्का और सोयाबीन की वर्तमान कीमतों ने 2008 के विश्व आर्थिक संकट के रिकॉर्ड को भी तोड़ दिया है. एफएओ के पूर्व अर्थशास्त्री अब्दोलरेजा अब्बासियन ने कहा कि सस्ते भोजन का युग अब समाप्त हो चुका है.
अनाज को बचाया जा सकता है
उन्होंने कहा कि खाद्य सामानों की कीमतें रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद भी वैसी ही बनी रहेगी. ईयू के रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक बर्बाद हो रहे खाद्यान्न की कीमत करीब 11.38 लाख करोड़ रुपये है. रिपोर्ट में यह भी पता चला कि लगभग ग्रीनहाउस गैस की 6 फीसदी बर्बादी इसके कारण हो रही है. खाद्य उत्पादन का करीब 20 फीसदी हिस्सा बर्बाद हो रहा है. 2030 तक ईयू ने इस बर्बादी को आधा करने का लक्ष्य रखा है, जिससे 47 लाख हेक्टेयर के उपज को बचाया जा सकता है.
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