जापान की संसद ने पूर्व विदेश मंत्री फुमिओ किशिदा को सोमवार को देश का नया प्रधानमंत्री चुन लिया. किशिदा जापान के 100वें प्रधानमंत्री होंगे और वे योशिहिदे सुगा का स्थान लेंगे. सुगा और उनकी कैबिनेट ने दिन की शुरुआत में इस्तीफा दे दिया था. किशिदा और उनकी कैबिनेट के सदस्य दिन में बाद में शपथ ग्रहण करेंगे.
गौरतलब है कि पिछले साल सितंबर में पद संभालने के महज एक साल बाद ही सुगा को पद छोड़ना पड़ा है. एक वर्ष पहले सुगा उस समय प्रधानमंत्री पद पर काबिज हुए थे जब तत्कालीन पीएम शिंजो आबे ने बीमारी के चलते अपना पद छोड़ने का निर्णय लिया था. बता दें कि कोरोना वायरस महामारी से निपटने के तरीकों और संक्रमण के बावजूद ओलंपिक खेलों के आयोजन पर अडिग रहने के चलते सुगा की लोकप्रियता में कमी आई और उन्हें केवल एक साल पद पर रहने के बाद ही इस्तीफा देना पड़ा.
किशिदा के सामने होंगी कई चुनौतियां
किशिदा पर आसन्न राष्ट्रीय चुनाव से पहले कोरोना वायरस वैश्विक महामारी और सुरक्षा चुनौतियों से तेजी से निपटने की चुनौती है.किशिदा ने पिछले हफ्ते कहा था कि उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता अर्थव्यवस्था होगी. किशिदा का "नया पूंजीवाद" काफी हद तक आबे की आर्थिक नीतियों की निरंतरता है। उनका उद्देश्य अधिक लोगों की आय बढ़ाना और विकास और वितरण का एक चक्र बनाना है.
बता दें कि जापान के पूर्व विदेश मंत्री किशिदा ने सत्तारूढ़ पार्टी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता पद का चुनाव पिछले सप्ताह जीत लिया था.सोमवार सुबह मतदान से पहले किशिदा ने कहा कि वह शीर्ष पद के लिए तैयार हैं. उन्होंने कहा कि,"मुझे लगता है कि यह सही मायने में एक नई शुरुआत होगी, और मैं भविष्य में आने वाली चुनौतिया का सामना दृढ़ इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प के साथ करना चाहता हूं."
2012 से 2017 तक देश के विदेश मंत्री रहे हैं किशिदा
किशिदा ने जापान के सबसे लंबे समय तक प्रधान मंत्री शिंजो आबे के अधीन 2012 से 2017 तक देश के विदेश मंत्री के रूप में कार्य किया. वह जापान की प्रतिनिधि सभा के भी मेंबर हैं. किशिदा को राजनीति विरासत में मिली है. उनका जन्म 29 जुलाई 1957 को हिरोशिमा के मिनामी के एक बेहद प्रतिष्ठित राजनीतिक परिवार में हुआ था. उनके परिवार में पिता और दादा दोनों ही राजनीति में सक्रिय थे.
किशिदा ने 1993 में राजनीति में एंट्री की थी
किशिदा ने अपने पिता और दादा के नक्शेकदम पर चलते हुए पहली बार 1993 में राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश किया था. उन्होंने 2012-17 के बीच एलडीपी के नीति प्रमुख और बाद में विदेश मंत्री के रूप में कार्य किया, जिसके दौरान वह रूस और दक्षिण कोरिया के साथ सौदेबाजी के लिए जिम्मेदार थे. वह लंबे समय से परमाणु हथियारों पर प्रतिबंध लगाने के समर्थन में रहे हैं और इसे "अपने जीवन का काम" कहते हैं. उन्होंने 2016 में एक ऐतिहासिक यात्रा पर पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को हिरोशिमा लाने में मदद की थी.
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