G20 Summit 2023: क्या है 'मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर', जिसे कहा गया चीन के BRI की काट?
G20 Summit Delhi: जी20 शिखर सम्मेलन में 'इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर' का ऐलान हुआ है. आइए जानते हैं कि आखिर ये क्या है और किस तरह काम करेगा.
G20 Summit India: भारत में हो रहे जी20 शिखर सम्मेलन में कुछ ऐसा हुआ है, जिसकी वजह से चीन बहुत ज्यादा परेशान हो सकता है. दरअसल, जी20 में 'इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर' (IMEC) लॉन्च करने का ऐलान हुआ है. इस प्रोजेक्ट में भारत, यूएई, सऊदी अरब, यूरोपियन यूनियन, फ्रांस, इटली, जर्मनी और अमेरिका शामिल हैं. इस इकोनॉमिक कॉरिडोर के जरिए एशिया से लेकर मिडिल ईस्ट और यूरोप तक व्यापार किया जाएगा.
दरअसल, IMEC सीधे तौर पर चीन के 'बेल्ड एंड रोड इनिशिएटिव' (BRI) की काट के तौर पर देखा जा रहा है. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2013 में बीआरआई को दुनिया के सामने पेश किया था. बीआरआई के जरिए चीन ने मध्य एशिया से होते हुए मिडिल ईस्ट और फिर यूरोप तक अपनी पहुंच बनाना चाहता है. सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि वह जलमार्गों के जरिए दक्षिण-पूर्व एशिया से मिडिल ईस्ट और फिर वहां से अफ्रीका तक अपना सामान पहुंचाना चाहता है.
क्या है IMEC प्रोजेक्ट?
IMEC प्रोजेक्ट के तौर पर रेल और शिपिंग कॉरिडोर होंगे, जिनके जरिए एशिया से यूरोप तक व्यापार किया जाएगा. IMEC 'पार्टनरशिप फॉर ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंट' (PGII) का हिस्सा है. PGII जी7 देशों का एक प्रयास है, जिसके जरिए विकासशील देशों में इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने के लिए फंडिंग दी जाती है. PGII को चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट से निपटने के लिए लाया गया है. IMEC का मकसद प्रोजेक्ट में शामिल देशों के बीच व्यापार बढ़ाना है.
यूरोपियन कमीशन की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन के जरिए तैयार किए गए डॉक्यूमेंट्स के मुताबिक, कॉरिडोर में रेल लिंक के साथ-साथ एक इलेक्ट्रिसिटी केबल, एक हाइड्रोजन पाइपलाइन और एक हाई-स्पीड डाटा केबल होगी. इस डॉक्यूमेंट में प्रोजेक्ट को महाद्वीपों और सभ्यताओं के बीच हरित और डिजिटल पुल बताया गया है. प्रोजेक्ट के जरिए सिर्फ एक देश को जोड़ने की बात नहीं हुई है, बल्कि इसमें शामिल सभी देशों को एक-दूसरे के साथ कनेक्ट करने पर चर्चा हुई है.
किस तरह काम करेगा IMEC प्रोजेक्ट?
'इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर' के जरिए भारत में बना सामान पहले समुद्र के रास्ते संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) जाएगा. फिर यूएई से सऊदी अरब, जॉर्डन होते हुए ये रेलमार्ग से इजरायल के हाइफा बंदरगाह तक पहुंचेगा. इसके बाद समुद्री मार्ग के जरिए भारतीय सामान को हाइफा से यूरोप पहुंचाया जाएगा. इस पूरे रास्ते में मुख्य भूमिका रेलमार्ग और समुद्री जलमार्ग की होगी.
व्हाइट हाउस की तरफ से जारी किए गए बयान में बताया गया है कि IMEC में दो कॉरिडोर होने वाले हैं. इसमें पहला ईस्ट कॉरिडोर है, जो भारत को अरब की खाड़ी से जोड़ेगा. फिर दूसरा नॉर्दर्न कॉरिडोर होगा, जो अरब की खाड़ी को यूरोप से जोड़ेगा. इसमें एक रेलमार्ग शामिल होगा, जो पूरो होने पर लागत-प्रभावी रूट तैयार करेगा. इसमें वर्तमान में मौजूद रेल और समुद्री मार्गों का भी इस्तेमाल किया जाएगा. आइए इस पूरे प्लान को थोड़ा सा और डिटेल में समझने की कोशिश करते हैं.
यूएई के पूर्वी हिस्से में फुजैराह बंदरगाह मौजूद है. भारत में बने उत्पादों को समुद्री मार्ग के जरिए यूएई के फुजैराह बंदरगाह तक पहुंचाया जाएगा. इसके बाद यूएई से सऊदी अरब तक का सफर शुरू होगा. एक बार जब भारतीय उत्पाद सऊदी अरब पहुंच जाएगा, तो फिर वहां से रेलमार्ग से इसे आगे जॉर्डन तक पहुंचाया जाएगा. सऊदी अरब और जॉर्डन के बीच पहले से ही रेलमार्ग है. कुल मिलाकर इजरायल तक पहुंचने में 2650 किलोमीटर लंबे रेलमार्ग का इस्तेमाल होगा.
इसमें से 1850 किलोमीटर लंबा रेलमार्ग पहले से ही सऊदी अरब और जॉर्डन के बीच काम कर रहा है. मगर इजरायल के हाइफा बंदरगाह तक सामान पहुंचाने के लिए आगे के हिस्से पर काम किया जाएगा. ट्रैक पर चलने वाले रेल इंजन को सोलर एनर्जी से चलाने का प्लान भी तैयार है. इस प्रोजेक्ट के जरिए न सिर्फ भारत का सामान यूरोप और मिडिल ईस्ट तक पहुंचेगा, बल्कि नेपाल और बांग्लादेश जैसे देश भी इटली, जर्मनी और फ्रांस जैसे मुल्कों तक अपने प्रोडक्ट को भेज पाएंगे.
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