सूडान में जारी गृहयुद्ध के बीच चर्चा में आया 'जर्म वारफेयर', कुछ ही दिनों मे ये ले सकता है करोड़ों की जान
रैपिड सपोर्ट फोर्स ने नेशनल पब्लिक हेल्थ लैब को अपने कब्जे में ले लिया है. इस लैब में खतरनाक बीमारियों के वायरस और बैक्टीरिया रखे जाते हैं.
सूडान में गृहयुद्ध छिड़े एक हफ्ते से ज्यादा का समय हो चुका है. इससे पूरी दुनिया सकते में हैं. इस बीच रैपिड सपोर्ट फोर्स ने खारतूम की उस लैब पर कब्जा कर लिया है जहां खतरनाक बीमारियों के वायरस और बैक्टीरिया रखे जाते हैं. इस लैब का नाम है नेशनल पब्लिक हेल्थ लैब.
वर्तमान में फोर्स ने इस लैब में प्रवेश के सभी रास्ते को बंद कर दिए हैं. वहीं वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन को डर है कि शायद लैब में घातक जीवाणु बम तैयार किए जा रहे है. अगर ये डर सच्चाई में बदलता है और रैपिड सपोर्ट फोर्स वाकई में इस लैब को कब्जे में लेकर जीवाणु बम बना रही है तो सूडान की लड़ाई आने वाले कुछ दिनों में बायोलॉजिकल युद्ध में बदल सकती है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर बायोलॉजिकल हथियार क्या हैं और ये कितना खतरनाक हो सकता है?
क्या है जैविक हमला?
आसान भाषा में कहा जाए तो जैविक हमले का मकसद आम युद्ध की तरह ही दुश्मन को हराना या कमजोर कर देना है. लेकिन इसके लिए बारूद या किसी दूसरे पारंपरिक हथियारों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. इसमें कई तरह के वायरस, बैक्टीरिया, फंगस और जहरीले पदार्थों से हमला किया जाता है.
जैविक हमले के कारण लोग बीमार पड़ने लगते हैं, कमजोर पड़ जाते हैं या उनकी मौत हो जाती है. ऐसे में सामने वाले का युद्ध जीतना आसान हो जाता है. जैविक हमले का इंसानी शरीर पर बहुत भयानक असर पड़ता है. अक्सर इसका असर आने वाली कई पीढ़ियों तक देखा जा सकता है. कई मामलों में लोग विकलांग और साथ-साथ मानसिक बीमारियों के भी शिकार होते हैं. जैविक हथियार कम समय में बहुत बड़े क्षेत्र में तबाही मचा सकते हैं.
उदाहरण के तौर पर कोरोना वायरस को ही ले लेते हैं. दरअसल चीन पर आरोप है कि इस देश ने वुहान के लैब से कोविड वायरस को दुनिया भर में फैलाया है. इस संक्रमण ने पूरी दुनिया में करोड़ों लोगों की जान ली है. आरोप है कि कोरोना के संक्रमण के बाद कई देशों की अर्थव्यवस्था पूरी तरह बर्बाद हो गई जिसका सीधा फायदा चीन को मिला है. हालांकि इसकी आज तक पुष्टि नहीं हो सकी.
कब हुई जैविक हमले की शुरुआत
जैविक हमले की शुरुआत कब और कहां से हुई इसका कोई पुख्ता सबूत तो नहीं मिल पाया, लेकिन साल 1347 में जैविक हमले का सबसे पहला मामला दर्ज किया गया था. उस वक्त मंगोल सेना ने यूरोप को बर्बाद करने के लिए वहां व्यापार के लिए पहुंचे जहाजों का इस्तेमाल किया था. मंगोल सेना ने यूरोप जा रहे जहाज में प्लेग के जीवाणु और प्लेग वायरस से संक्रमित चूहे डाल दिए थे. कहा जाता है कि जब ये जहाज इटली के सिसली बंदरगाह पर पहुंचे तो इसमें सवार सभी लोग मारे जा चुके थे. जो कुछ लोग जिंदा थे वह या तो खून की उल्टियां कर रहे थे या तेज बुखार से ग्रसित थे.
जहाज से शुरू हुआ प्लेग का संक्रमण जल्द ही सिसली के रास्ते स्पेन, इंग्लैंड, फ्रांस, ऑस्ट्रिया, हंगरी, स्विट्जरलैंड, जर्मनी, स्कैंडिनेविया और बॉल्टिक जैसे कई देशों तक पहुंच गया. उस वक्त प्लेग ने करोड़ों लोगों की जान ली थी. कहा जाता है कि प्लेग ने यूरोप के लगभग एक तिहाई आबादी की मार डाला था. बाद में उन जहाजों को डेथ शिप कहा गया.
पहले विश्व युद्ध में भी हुआ जैविक हमला
पहले विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी ने एंथ्रेक्स और हैजे से संक्रमित शवों को दुश्मन देश के इलाके में फेंक दिया. दुश्मन देश का कोई भी व्यक्ति जैसे ही इन शवों के संपर्क में आता था वह भी संक्रमित हो जाता. कहा जाता है कि उस वक्त जर्मन सेना के इस हमले का रूस के सेंट पीटर्सबर्ग पर भारी प्रभाव पड़ा था.
रोक लगाने की हुई कोशिश
पहले विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद साल 1925 जेनेवा प्रोटोकॉल बनाया गया. इस प्रोटोकॉल पर 108 देशों ने दस्तखत किए थे. जेनेवा प्रोटोकॉल का साफ मकसद था आने वाले समय में देशों को जैविक या केमिकल युद्ध से बचाना. हालांकि ऐसा हुआ नहीं. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान ने इसी प्रोटोकॉल को तोड़ते हुए चीन के खिलाफ जैविक प्रयोग किए थे.
साल 2001 में भी हुआ था जैविक हमला
साल 2001 के सितंबर महीने में न्यूयॉर्क में हुए आतंकी हमले के बाद वहां जैविक हमला किया गया था. दरअसल हमले के बाद अमेरिका के कुछ पत्रकारों और नेताओं को ऐसी चिट्ठियां मिली जिसे छूने के बाद वह बीमारी का शिकार होने लगे. कुछ आतंकवादियों ने अमेरिकी कांग्रेस के कार्यालय में भी एंथ्रेक्स बैक्टीरिया से संक्रमित चिट्ठियां भेजी थी, जिसे छूने के बाद पांच लोगों की मौत हो गई थी.
ये देश गुपचुप तरीके से बना चुके हैं जैविक हथियार
दुनिया के अब कई देशों के पास जैविक हथियार है. इन देशों में जापान, अमेरिका, जर्मनी, कनाडा, रूस, चीन जैसे 17 देश शामिल हैं. एक समय था जब जर्मनी के पास सबसे ज्यादा बायो वेपन हुआ करता था. साल 2022 में अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि चीन लगातार अपना बायोलॉजिकल इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार कर रहा है. उसके सैन्य संस्थान भी अलग-अलग तरह के टॉक्सिन पर काम कर रहे हैं जिनका दोहरा इस्तेमाल करता है. अमेरिका दोहरे इस्तेमाल को जैविक- खतरा मानता है.
सूडान में क्यों हो रहा है गृहयुद्ध
सूडान में वर्तमान में जो चल रहा है पीछे की कहानी को समझने के लिए सूडान के बारे में जानना बेहद जरूरी है. इस देश का जन्म सिविल वॉर से हुआ. दरअसल साल 2011 में सूडान दक्षिण सूडान से अलग होकर एक नया देश बना.
अफ्रीका के उत्तर-पूर्व में बसे सूडान के क्षेत्रफल की बात करें तो यह अफ्रीका का सबसे बड़ा देश है और इसकी सीमाएं सात देशों से लगती है. सूडान के उत्तर में मिस्र है और पूर्व में इरिट्रिया और इथियोपिया है. सूडान के उत्तर-पूर्व में लाल सागर है- जबकि साउथ में दक्षिण सूडान - चाड और लीबिया इसके पश्चिम में हैं.
इन देश में खूनी संघर्ष का सिलसिला पिछले दो साल से चलते-चलते अब सिविल वॉर की हालत में पहुंच चुका है. इस युद्ध में अब तक तीन सौ से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं.
सूडान में हालात का जिम्मेदार कौन?
इस देश में मची तबाही के पीछे दो कद्दावर चेहरे हैं, दो जनरल जिनकी जिद और वर्चस्व की लड़ाई की कीमत आमलोग को अपनी जान देकर चुकानी पड़ रही है. पहला आर्मी चीफ जनरल अब्देल फतेह अल बुरहान और दूसरा रैपिड सपोर्ट फोर्स का चीफ जनरल हमदान दगालो.
बुरहान और दगालो दोनों ही इस देश के दो पावर सेंटर हैं. वर्तमान में सूडान की सेना का कमान जनरल अब्देल फतेह अल बुरहान के हाथ में है जबकि हमदान दगालो रैपिड सपोर्ट फोर्स यानी RSF के मुखिया है. इन दोनों जनरल के पास अपनी सेनाएं हैं, हथियार हैं और इन दोनों की सेना आपस में ऐसे भिड़ीं है कि इसने सूडान जंग का मैदान बन गया है.
तख्तापलट के बाद से ही खराब है देश की स्थिति
दरअसल इस देश में 2 साल पहले से ही यानी साल 2021 से ही सत्ता संघर्ष चल रहा है. वर्तमान में सरकार की कमान आर्मी चीफ अब्देल फतेह अल बुरहान के हाथ में है जबकि रैपिड सपोर्ट फोर्स यानी RSF के मुफिया मोहम्मद हमदान दगालो नंबर दो माने जाते हैं- सूडान इन दो जनरलों की लड़ाई में ही फंसा है. इस देश में दो साल पहले तक नागरिक और सेना की संयुक्त सरकार थी लेकिन साल 2021 में सरकार का तख्ता-पलट कर दिया गया. इसके बाद से ही सेना और रैपिड सपोर्ट फोर्स में ठनी है.
अपने अपने जिद पर अड़े दोनों जनरल
देश के दो बड़े जनरल फतेह अल बुरहान और हमदान दगालो अपनी-अपनी जिद पर अड़े हुए हैं. खासकर सेना और रैपिड सपोर्ट फोर्स के विलय को लेकर. दरअसल मामला ये है कि अगर एक लाख सैनिकों वाले रैपिड सपोर्ट फोर्स का सेना में विलय हो जाता है तो नई सेना का नेतृत्व कौन करेगा. इस पर सहमति नहीं बन पाई है. इतना ही नहीं फतेह अल बुरहान चाहते हैं कि उनकी सेना किसी निर्वाचित सरकार को ही सत्ता हस्तांतरित करेगी- लेकिन यहां भी हमदान दगालो से कोई सहमति नहीं बन पाई है.
वहीं पश्चिमी देशों और क्षेत्रीय नेताओं ने सूडान के दोनों ही पक्षों से तनाव कम करने और बातचीत के टेबल पर लौटकर नागरिक शासन को बहाल करने के लिए कहा है. शुक्रवार को ऐसे संकेत मिले थे कि दोनों पक्षों के बीच का तनाव सुलझ जाएगा.
युद्ध में अब तक कितने लोगों की जा चुकी है जान
सूडान में छिड़े गृहयुद्ध में अब तक 400 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है. यहां कई भारतीय भी फंसे हैं. इन लोगों को ऑपरेशन कावेरी के तहत भारतीय एयर फ़ोर्स अब तक सूडान में फंसे 1200 लोगों को रेस्क्यू कर चुकी है.
रैपिड सपोर्ट फोर्स क्या है?
सूडानी नेशनल असेंबली ने अपने सेशन नंबर 43 में समर्थित रैपिड सपोर्ट फोर्सेज एक्ट के तहत 18 जनवरी, 2017 को फोर्स की स्थापना की थी. ये सेना से अलग है. माना जाता है कि रैपिड सपोर्ट का ताकतवर होना भी सूडान सिविल वॉर की बड़ी वजह है. रैपिड सपोर्ट फोर्स के लड़ाकों ने सूडान के सोने की खानों पर भी कब्जा कर लिया है जिस पर देश की इकोनॉमी टिकी है.