Germany AIP Submarine: भारत सरकार नौसेना के लिए AIP पनडुब्बी डील को लेकर कई देशों से बात कर रही थी, लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि जर्मन कंपनी TkMS ने भारतीय AIP पनडुब्बी के कॉन्ट्रेक्ट को जीत लिया है. जर्मन रक्षा क्षेत्र की प्रमुख कंपनी थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स (टीकेएमएस) भारत के मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (एमडीएल) के साथ मिलकर भारत में ही छह AIP पनडुब्बियों का निर्माण करेगा. इससे 44 साल बाद एक जर्मन पनडुब्बी भारतीय नौसेना के बेड़े में शामिल हो सकेगी.


प्रोजेक्ट की लागत 8 बिलियन अमेरिकी डॉलर


इससे पहले साल 2021 में जब भारतीय नौसेना ने टेंडर जारी किया था तो उस समय जर्मन कंपनी ने भारत के साथ मिलकर पनडुब्बी बनाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी. थिसेनक्रुप भारतीय नौसेना के लिए 5.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर की परियोजना के लिए एमडीएल के साथ संयुक्त रूप से बोली लगाएगा. बताया जा रहा है कि इस प्रोजेक्ट की लागत बढ़कर 8 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो सकती है. 


पाकिस्तान को AIP तकनीक देने से किया मना


एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन सिस्टम (एआईपी) डीजल- इलैक्ट्रिक पनडुब्बियों की पानी में बने रहने और प्रहार क्षमता में इजाफा कर देता है. यह सिस्टम पाकिस्तानी पनडुब्बियों का साथ पानी पर आए बिना अपनी बैटरियों को चार्ज करने की सुविधा दे सकता था. इससे पहले साल 2020 में पाकिस्तान ने अपनी पनडुब्बियों की क्षमता को बढ़ाने के लिए उन्होंने जर्मनी से एआईपी सिस्टम देने की मांग की थी, जिसे तत्कालीन चांसलर एंजेला मर्केल ने ठुकरा दिया था. पाकिस्तान अपनी पनडुब्बियों और चीन-पाकिस्तान परियोजना के तहत निर्मित हैंगर क्लास पनडुब्बियों (टाइप039) को एडवांस करने के लिए एआईपी तकनीक चाहता था.


ऐसा पहली बार नहीं था जब जर्मनी ने पाकिस्तान को झटका दिया हो. इससे पहले, एस-26 पनडुब्बियों को जर्मन MTU 12V 396 SE84 डीजल इंजन से संचालित किया जाता था, लेकिन जर्मन सरकार ने कथित तौर पर पावरप्लांट के लिए निर्यात लाइसेंस रोक दिया था. इसके बाद पाकिस्तान की नौसेना चीन के CHD-620 डीजल इंजन का इस्तेमाल करने लगी. 


पाकिस्तान ने नाराज था जर्मनी


जर्मनी इस बात से नाराज था कि पाकिस्तान मई 2017 में काबुल में जर्मन दूतावास पर बम हमले के अपराधियों की पहचान कराने में मदद नहीं किया. वर्तमान में पाकिस्तान के पास तीन एआईपी पनडुब्बी है. हंगोर क्लास की पनडुब्बियां पाकिस्तानी नौसेना में शामिल हो जाएंगी, तो यह संख्या बढ़कर 11 हो जाने की उम्मीद है.


भारतीय नौसेना के पास कोई एआईपी पनडुब्बी नहीं है. अब पहली बार इसे मेक इन इंडिया के तहत बनाया जाएगा. भारत ने 1981 में जर्मनी की एचडीडब्ल्यू कंपनी से चार तरह की 1500 पारंपरिक पनडुब्बियां खरीदी थी. एचडीडब्ल्यू, थिसेनक्रुप की मूल कंपनी है. इसका उद्देश्य पनडुब्बी निर्माण की जानकारी हासिल करना था. जर्मन फर्म 1980 के दशक से एमडीएल के साथ काम कर रही है. भारतीय पनडुब्बियों को मरम्मत या एडवांस करने के लिए कभी जर्मनी नहीं भेजा गया, यह काम पूरी तरह से एमडीएल की ओर से किया गया.


लंबे समय से भारत AIP तकनीक पाना चाह रहा


भारत लंबे समय से जर्मनी, फ्रांस और रूस से यह महत्वपूर्ण तकनीक हासिल करने की कोशिश कर रहा है. 2005 में भारत ने छह स्कॉर्पीन पारंपरिक पनडुब्बियों के निर्माण के लिए फ्रेंको-स्पेनिश कंसोर्टियम आर्मरिस के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. पांचवीं स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बी को जनवरी 2023 में भारतीय नौसेना में शामिल किया गया. इन पनडुब्बियों में एआईपी नहीं है, लेकिन उन्हें घरेलू स्तर पर विकसित एआईपी तकनीक के साथ फिर से तैयार करने की योजना पर काम चल रहा है.


यह तकनीक भारतीय नौसेना को पानी में डूबे रहने के दौरान बंगाल की पूरी खाड़ी को कवर करने में मदद करेगी. पनडुब्बी तब सबसे ज्यादा असुरक्षित होती है जब वह अपनी इलेक्ट्रिक बैटरियों को चलाने के लिए ऑक्सीजन लेने के लिए पेरिस्कोप की गहराई पर होती है.


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