ब्रिटेन के विनचेस्टर विश्वविद्यालय में मशहूर पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग की प्रतिमा लगाने के बाद विवाद गरमा गया है. विश्वविद्यालय के कई विद्यार्थियों व कर्मचारियों ने इसे महज फिजूलखर्ची बताते हुए कहा है कि ये धन किसी योग्य कार्य में खर्च किया जा सकता था.
ग्रेटा थनबर्ग पर सवाल नहीं, फिजूलखर्ची का विरोध
यूनिवर्सिटी एण्ड कॉलेज यूनियन (UCU) की विनचेस्टर शाख, जो विश्वविद्यालयों के अकादमिक स्टाफ का प्रतिनिधित्व करती है ने इस स्मारक को 'वैनिटी प्रोजेक्ट' करार देते हुए खारिज कर दिया है. UCU ने कोरोना महामारी के संकट के बीच मूर्ति पर व्यर्थ पैसा खर्च करने की आलोचना की है. UCU ने एक बयान जारी कर कहा है कि मूर्ति के लिए खर्च किए गए पैसे का उपयोग सेवाओं में कटौती जैसे कार्यों को रोकने के लिए किया जाना चाहिए था. स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष ने साफ किया है कि वे ग्रेटा थनबर्ग के जलवायु परिवर्तन व पर्यावरण संबंधी योगदान पर सवाल नहीं उठा रहे, बल्कि उनका विरोध फिजूलखर्जी को लेकर है.
सामाजिक न्याय का प्रतीक है ये प्रतिमा
उधर, विश्वविद्याल के कुलपति प्रोफेसर जॉय कार्टर का कहना है कि प्रतिमा की स्थापना के लिये कर्मचारियों या छात्रों से किसी प्रकार का धन नहीं लिया है और ये मूर्ति सामाजिक न्याय को लेकर प्रतिबद्धता दर्शाती है. 15 साल की उम्र में 2018 में जलवायु परिवर्तन को लेकर अभियान शुरू करने वाली ग्रेट थनबर्ग ने एमनेस्टी इंटरनेशनल के शीर्ष मानवाधिकार पुरस्कार और स्वीडिश राइट लाइवलीहुड जैसे प्रतिष्ठित अवॉर्ड हासिल किए है. यही नहीं 2019 में, टाइम पत्रिका ने उन्हें पर्सन ऑफ द ईयर के रूप में नामित किया था.
भारत में ग्रेटा थनबर्ग उस समय चर्चा में आई थीं,जब उन्होंने कृषि बिल को लेकर चलाए जा रहे किसान आंदोलन का समर्थन किया था. स्वीडन की ग्रेटा थनबर्ग ने कहा था, ''मैं अभी भी किसानों के साथ खड़ी हूं और उनके शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन का समर्थन करती हूं. नफरत, धमकी या मानवाधिकारों के उल्लंघन की किसी भी कोशिश से यह नहीं बदलेगा.''
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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
ब्रिटेन के विनचेस्टर यूनिवर्सिटी में भारी विरोध के बावजूद हुआ ग्रेटा थनबर्ग की मूर्ति का अनावरण, विरोध का कारण जानें
एबीपी न्यूज़
Updated at:
02 Apr 2021 02:49 PM (IST)
ब्रिटेन के विनचेस्टर विश्वविद्यालय में मशहूर पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग की प्रतिमा लगाने के बाद विवाद गहरा गया है. विश्वविद्यालय के कई विद्यार्थियों व कर्मचारियों ने इसे महज फिजूलखर्ची बताते हुए कहा है कि ये धन किसी योग्य कार्य में खर्च किया जा सकता था.
ग्रेटा थनबर्ग
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