सस्ती दवा पर खुलासा: कोविड-19 मरीजों की मौत के खतरे को 80 फीसद कम कर सकती है ये दवा
शोधकर्ताओं ने कोरोना वायरस के इलाज में जूं मारनेवाली दवा पर हैरतअंगेज दावा किया है. उनका कहना है कि आइवरमेक्टिन दवा कोविड-19 के मरीजों की मौत के खतरे को 80 फीसद घटा सकती है.
![सस्ती दवा पर खुलासा: कोविड-19 मरीजों की मौत के खतरे को 80 फीसद कम कर सकती है ये दवा Hair lice drug may cut the risk of hospitalized covid patients dying by up to 80 per cent: Study सस्ती दवा पर खुलासा: कोविड-19 मरीजों की मौत के खतरे को 80 फीसद कम कर सकती है ये दवा](https://static.abplive.com/wp-content/uploads/sites/2/2021/01/10131628/pjimage-9.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
जूं मारनेवाली दवा अस्पताल में भर्ती कोविड-19 मरीजों की मौत के खतरे को 80 फीसद तक कम कर सकती है. विश्लेषण करनेवाले लीवरपुल यूनिवर्सिटी के वायरोलोजिस्ट डॉक्टर एंड्रयू हिल का ये दावा है. उन्होंने 'आइवरमेक्टिन' दवा को कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में 'परिवर्तनकारी' बताया है. लेकिन दूसरे वैज्ञानिकों ने इस खोज पर संदेह जताया है और कहा कि संभावित इलाज के तौर पर इस्तेमाल किए जाने से पहले ज्यादा डेटा की जरूरत है.
जूं मारनेवाली दवा कोरोना वायरस के इलाज में आएगी काम?
उन्होंने अन्य एंटी वायरल दवाइयों हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन टोसिलिजुमाब का हवाला दिया. उनका कहना है कि महामारी के शुरू में मानव परीक्षण के नतीजों को उत्साहजनक बताया गया था. लेकिन बाद में दावा गलत साबित हुआ और दोनों दवाइयों के कोई फायदे सामने नहीं आए. आइवरमेक्टिन की खोज 1970 में की गई थी. उसके बाद ये दवा परजीवी संक्रमणों जैसे सिर की जूं और खुजली की जरूरत बन गई.
उसकी पहचान खुजली में स्ट्रोमेक्टोल के नाम से खाए जानेवाले टैबलेट की है और स्किन क्रीम के लिए सूलनट्रा कहा जाता है. सिर की जूं के इलाज में स्कलाइस के तौर पर पहचाना जाता है. दवा को इस साल अमेरिका में मंजूरी मिली थी. आज ब्रिटेन और अमेरिका में दवा को इन समस्याओं के लिखा जाता है, लेकिन कुछ वैज्ञानिकों का तर्क है ये कोविड-19 के खिलाफ भी मुफीद हो सकती है.
मरीजों की मौत के खतरे को 80 फीसद कम करने का दावा
दवा की जांच कर रहे वैज्ञानिकों का मानना है कि ये सार्स-कोवि-2 वायरस को पंगु बनाने का काम करती है. जिससे उसकी बढ़ती हुई तादाद रुक जाती है. रिसर्च के अगले महीने सामने आने से पहले शोधकर्ताओं ने 11 परीक्षणों के नतीजों को पेश किया. हालांकि, रिपोर्ट के कुछ हिस्से ही अभी उजागर हुए हैं और अगले महीने विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित होने की उम्मीद है. मगर इससे पता चलता है कि ब्रिटेन में दवा इस्तेमाल करनेवाले 573 में से सिर्फ आठ कोविड-19 मरीजों की मौत हुई.
इसके मुकाबले प्लेसेबो लेनेवाले 510 लोगों में से कोविड-19 के 44 मरीजों को जान गंवानी पड़ी. रिसर्च में शामिल दो अध्ययन के हवाले से बताया गया कि आइवरमेक्टिन दवा शरीर से वायरस को बहुत जल्दी निकालती है. मिस्र में मानव परीक्षण के दौरान हल्के लक्षण वाले 100 मरीजों को दवा की खुराक देने पर औसतन पांच रोज में वायरस साफ हो गया. इसके विपरीत, 100 मरीजों को दवा नहीं देने पर शरीर से वायरस खत्म होने में 10 दिन लगे.
रिपोर्ट में आगे बताया गया कि गंभीर लक्षण से जूझ रहे 100 मरीजों के दवा इस्तेमाल करने पर कोविड-19 हटने में औसतन छह रोज लगे और 100 मरीजों को दवा नहीं देने से वायरस खत्म होने में 12 दिन का समय लगा. यही नतीजे बांग्लादेश में किए गए मानव परीक्षण में भी देखे गए. परीक्षणों को मुख्य रूप से विकसित देशों जैसे बांग्लादेश, अर्जेन्टीना और मिस्र में किया गया था जबकि अनुसंधान को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अधिकृत किया. लेकिन प्रमुख वैज्ञानिकों ने दवा के प्रभाव को कोरोना वायरस के खिलाफ अभी साबित किए जाने की मांग की है.
Health Tips: ये हैं अस्थमा के शुरुआती लक्षण, नजरअंदाज करने की न करें गलती
Health Tips: ये 5 चीजें आपके इम्यून सिस्टम को करती हैं कमजोर, इनसे बना लें दूरी
![IOI](https://cdn.abplive.com/images/IOA-countdown.png)
ट्रेंडिंग न्यूज
टॉप हेडलाइंस
![ABP Premium](https://cdn.abplive.com/imagebank/metaverse-mid.png)
![शिवाजी सरकार](https://feeds.abplive.com/onecms/images/author/5635d32963c9cc7c53a3f715fa284487.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=70)