Haj 2025: हज यात्रियों का कोटा कम क्यों? Haj Policy-2025 के खिलाफ दाखिल हुईं इतनी सारी रिट याचिकाएं, सुप्रीम कोर्ट बोला- बात सही पर...
Haj Policy 2025: याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि हज ग्रुप ऑर्गेनाइजर्स (HGOs) को जो कोटा दिया गया है उनमें से कुछ एचजीओ के पास कम हज यात्री हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने हज पॉलिसी-2025 की क्रियान्वयन को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है. याचिका में हज यात्रियों के कोटे के आवंटन को भेदभावपूर्ण और मनमाना बताया गया है. कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करने से मना किया है. हालांकि, कोर्ट ने माना कि पॉलिसी बनाते समय कमर्शियल इंटरेस्ट का भी ध्यान रखना चाहिए. भारत सरकार ने सऊदी अरब के साथ मिलकर यह नीति बनाई है.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की बेंच मामले पर सुनवाई कर रही थी. हज ग्रुप ऑर्गेनाइजर्स (HGOs) ने अलग-अलग रिट याचिकाएं दाखिल कर पॉलिसी के क्रियान्वयन पर आपत्ति जताई और कहा कि कुछ एचजीओ को दूसरों के मुकाबले कम हज यात्री दिए गए हैं. कोर्ट सभी याचिकाओं को एक साथ सुन रहा था. कोर्ट ने कहा कि ये याचिकाएं नीति को नहीं बल्कि उसके कार्यान्वयन को चुनौती देने के लिए दाखिल की गई हैं. उन्होंने कहा कि नीति का कार्यान्वयन पहले ही आकार ले चुका है तो वह इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं.
कोर्ट ने प्रमुख और गैर-प्रमुख HGO से कहा कि वह अधिशेष हज यात्रियों को कम आवंटन वाले HGO को रीएलोकेट कर सकते हैं. कोर्ट ने माना कि हज 2025 जैसी नई नीति के कार्यान्वयन में अक्सर शुराआती चुनौतियां आती हैं और विसंगतियों का भी सामना करना पड़ता है.
कोर्ट ने कहा कि नीति के सबसे महत्वपूर्ण लाभार्थी हज यात्री हैं और धार्मिक हित नीति का आधार है. इसके अलावा एचजीओ के वाणिज्यिक हितों पर भी विचार करना जरूरी है, जिसके लिए ये रिट याचिकाएं दाखिल की गई हैं इसलिए भविष्य में हज नीतियों के कार्यान्वयन के लिए पॉलिसी बनाने वाले एचजीओ के हितों का ध्यान रखेंगे.
कोर्ट ने कहा कि इन याचिकाओं में नीति को नहीं बल्कि नीति के कार्यान्वयन को चुनौती दी गई है, हम इसमें हस्तक्षप नहीं करेंगे, लेकिन भविष्य में ऐसे किसी भी भेदभाव या अन्य मुद्दे के लिए याचिकाकर्ता उचित फरम के सामने अपनी दलीलें रखने के लिए स्वतंत्र हैं.
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