Hajj Pilgrims Death: सऊदी अरब के मक्का में लू की वजह से 900 से अधिक हज यात्रियों की जान जा चुकी है. हैरत की बात यह है कि इस्लाम में सबसे पवित्र माने गए शहर में इतनी बड़ी संख्या में मौतें तब हुईं, जब वहां इस तीर्थ यात्रा को लेकर पूर्व में चेतावनी भी दी जा चुकी थी. 2024 की शुरुआत में छपी एक स्टडी में आगाह किया गया था कि इस तीर्थयात्रा के दौरान लोगों की जान तक जाने का जोखिम हो सकता है. 


सऊदी के साइंटिस्ट्स ने चेताया था कि मक्का और उसके आस-पास के इलाके में जलवायु परिवर्तन के चलते वहां का तापमान बढ़ रहा है और यह हज यात्रियों की सेहत पर बुरा असर डाल सकता है. 'जर्नल ऑफ ट्रैवल मेडिसिन' में 'Escalating climate-related health risks for Hajj pilgrims to Mecca' शीर्षक वाले आर्टिकल में बताया गया था कि दुनिया भर में तापमान बढ़ रहा है, जिससे कि लू की स्थिति और गंभीर हो सकती है. इसे हीट-रिलेटेड इलनेस (एचआरआई) टर्म दिया गया था, जिसका मतलब गर्म जलवायु वाली जगहों पर जाने वाले यात्रियों के लिए गर्मी से जुड़ी बीमारियों का बढ़ता खतरा है.


स्टडी में सामने आए परिणामों से पता चला था कि मक्का में औसत औसत शुष्क और वेट बल्ब तापमान में प्रति दशक क्रमशः 0.4 डिग्री सेल्सियस और 0.2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई. 'वेट-बल्ब तापमान' आमतौर पर शुष्क हवा के तापमान को आर्द्रता के साथ जोड़ता है. एक्सपर्ट्स ने इस दौरान यह भी पाया कि दोनों तापमानों का हीट स्ट्रोक (एचएस) और हीट एक्सहॉजन (एचई) की घटनाओं के साथ गहरा नाता था. 


इतना ही नहीं, अमेरिका में मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) के विशेषज्ञों की ओर से साल 2019 में किए गए अध्ययन में पाया गया था कि भले ही दुनिया जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों को कम करने में सफल हो जाए पर हज 2047 से 2052 तक और 2079 से 2086 के बीच "अत्यधिक खतरे की सीमा" से अधिक तापमान में आयोजित होगा.


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