ऐतिहासिक: 37 साल बाद आर्मी की दख़लअंदाज़ी से जिम्बाब्वे को मिले दूसरे राष्ट्रपति, एमर्सन नांगगागवा
ताते चलें कि अपनी पत्नी को सत्ता की ओर तेज़ी से बढ़ा रहे मुगाबे ने राष्ट्रपति पद पर आसीन हुए नांगगागवा को सरकार से बाहर कर दिया था.
हरारे: जिम्बाब्वे में हुई भारी उठा पटक के बाद एमर्सन नांगगागवा को देश राष्ट्रपति की पद की शपथ दिलायी गयी जिसके साथ ही देश में राजनीतिक ड्रामा का समापन हो गया. हाल तक रॉबर्ट मुगाबे के करीबियों में शुमार रहे नांगगागवा ने राजधानी हरारे के बाहरी इलाके में नेशनल स्पोर्ट्स स्टेडियम में अपने हजारों समर्थकों, गणमान्य अतिथियों और विदेशी राजनयिकों की गरिमामयी उपस्थिति में पद एवं गोपनीयता की शपथ ली.
स्टेडियम और उसके इर्द-गिर्द सुरक्षा का अचूक प्रबंध किया गया था. स्टेडियम में बड़ी संख्या में नांगगागवा के समर्थक बड़ी संख्या में पहुंच थे जो गाने पर झूम रहे थे. इस दक्षिण अफ्रीकी देश में 37 साल तक शासन करने वाले पूर्व राष्ट्रपति मुगाबे हाल ही में सैन्य हस्तक्षेप के बाद अपने पद से हटना पड़ा था. उससे पहले मुगाबे ने उपराष्ट्रपति नांगगागवा को बर्खास्त कर दिया था.
बताते चलें कि देश में अप्रत्क्ष तौर से तख्तापलट हुआ है. लगभग एक हफ्ते तक देश की आर्मी ने संसद से कोर्ट समेत तमाम बड़े संस्थानों को अपने कब्ज़े में ले लिया था. आर्मी ने देश से शांत रहने की अपील की थी और कहा था कि उसका ये कदम देश से भ्रष्ट्राचार समाप्त करने और इसे बढ़ावा देने वालों के खिलाफ है.
बताते चलें कि अपनी पत्नी को सत्ता की ओर तेज़ी से बढ़ा रहे मुगाबे ने राष्ट्रपति पद पर आसीन हुए नांगगागवा को सरकार से बाहर कर दिया था. आर्मी समेत देश का यही मानना था कि अंग्रेज़ों से मिली आज़ादी के बाद देश के इकलौते नेता रहे पूर्व राष्ट्रपति मुगाबे अपनी पत्नी और करीबीयों के बहकावे में आकर देश को गलत रास्ते पर ले जा रहे हैं.
इसी सोच के समर्थन में आर्मी ने देश को अपने कब्ज़े में ले लिया और हफ्ते दिन के भीतर मुगाबे को इस्तीफे के लिए मना लिया. मुगाबे अंग्रेज़ों के ख़िलाफ लड़ाई में देश के प्रमुख लोगों में शामिल रहे हैं. वहीं आज़ाद देश के पहले और अबतक के इकलौत शासक रहे हैं. एक दौर में देश की अर्थव्यवस्था काफी अच्छा कर रही थी लेकिन इसके बर्बाद होने का ठीकरा भी उन्हीं की नीतियों पर फोड़ा जाता रहा है.
बदलाव की बयार ने देश को एक नया और आज़ादी के बाद का दूसरा राष्ट्रपति ज़रूर दियाला है लेकिन देखने वाली बात होगी कि आर्मी की दख़लअंदाज़ी से देश के राष्ट्रपति बने नांगगागवा के हाथों में देश की व्यवस्था और अर्थव्यवस्था किस ओर जाती है.