श्रीलंका. भारत के रामेश्वरम से अगर समुद्री रास्ता पकड़ेंगे तो महज 1-2 घंटे में इस पड़ोसी देश की जमीन पर खड़े होंगे. श्रीलंका के साथ भारतीयों का पौराणिक नाता भी है. लेकिन आज बात उस पर नहीं करेंगे. कभी सोने की लंका कहलाने वाला श्रीलंका आज गृहयुद्ध की कगार पर पहुंच चुका है. आजादी के बाद सबसे बुरे आर्थिक हालात से जूझ रहा है. यूं कहें कि इकोनॉमी का इंजन का कुछ अता-पता नहीं है. खाने के लाले पड़े हुए हैं और महंगाई सातवें आसमान को भी पार कर गई है. लोग सड़कों पर उतर चुके हैं, मौजूदा सरकार के विरोध में. पीएम आवास में लोगों ने आग लगा दी थी और 5 लोगों की मौत अब तक हो चुकी है.
राजनीतिक हलचलें तेज हैं. प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे इस्तीफा दे चुके हैं. राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को आर्थिक अस्थिरता खत्म करने के लिए वकीलों के प्रभावशाली बार असोसिएशन ने 11 बिंदु वाली योजना भेजी है, जो धीरे-धीरे राष्ट्रपति व्यवस्था को खत्म कर देगी. इसमें अंतरिम सरकार के गठन की भी बात कही गई है. उधर, प्रदर्शनकारियों का कहना है कि जब तक राजपक्षे परिवार सत्ता छोड़कर नहीं जाता, हम विरोध-प्रदर्शन जारी रखेंगे. इस लाइन को दोबारा पढ़िए. हमने ऐसा क्यों लिखा ये आपको बताएंगे लेकिन पहले एक उदाहरण देखिए.
भारत में जब कोई शादी होती है तो रिश्तेदारों का मजमा जुटता है. बुआ-फूफा, मामा-मौसा-मौसी, भाई-भाभी, कजिन, बहनोई-साले साली वगैरह-वगैरह. सब मिलकर शादी में मजे लूटते हैं. नाचते-गाते हैं. कोई रायता फैलता है तो भी इनकी वजह से ही. श्रीलंका के साथ भी ऐसा ही हुआ. भारत में पार्टियों में परिवारवाद होता है लेकिन श्रीलंका में दशकों से परिवार की ही सरकार राज कर रही थी.
पहले राजपक्षे परिवार को समझिए
राजपक्षे परिवार का राजनीतिक दबदबा कैसे बढ़ा, इसे समझना है तो थोड़ा पीछे जाना होगा. राजपक्षे फैमिली श्रीलंका के दक्षिणी जिले हंबनटोटा के गिरुवापट्टुवा गांव से ताल्लुक रखती है. इनकी काफी जमीन वगैरह है साथ ही खेत और नारियल के बागान भी. इसी परिवार के एक सदस्य डॉन डेविड राजपक्षे इहला वालिकाडा कोराले में सरपंच बने. परिवार ने राजनीति में कदम उस वक्त रखा जब डॉन डेविड राजपक्षे के बेटे डॉन मैथ्यू राजपक्षे 1936 में हंबनटोटा जिले से राज्य परिषद में चुने गए. डॉन मैथ्यू की मौत 1945 में हुई और उपचुनाव में उनके भाई डॉन एल्विन राजपक्षे बिना किसी विरोध के जीत गए.
इसके बाद जब 1947 में श्रीलंका में संसदीय चुनाव हुआ तो परिवार के दो सदस्य हंबंनटोटा जिले के दोनों क्षेत्रों से जीत गए. डॉन एल्विन राजपक्षे बेलिएट्टा से और लक्ष्मण राजपक्षे (डॉन मैथ्यू का बेटा) हंबंनटोटा से सांसद चुने गए. अगले तीन दशक तक राजपक्षे परिवार को कोई भी हंबंनटोटा से चुनौती देने की जुर्रत नहीं कर सका. वहीं 25 दिसंबर 1936 को जन्मे डॉन मैथ्यू के दूसरे बेटे जॉर्ज सीलोन की राज्य परिषद और सीनेट के सदस्य थे. वह श्रीलंका फ्रीडम पार्टी के संस्थापक सदस्य डॉन एल्विन राजपक्षे के भतीजे और महिंदा राजपक्षे के चचेरे भाई थे.
अब तक परिवार का राजनीतिक दबदबा कायम हो चुका था. डॉन एल्विन राजपक्षे के 9 बच्चे हुए. 6 लड़के और तीन लड़कियां. इसमें सबसे बड़े थे चामल, दूसरे नंबर पर महिंदा, फिर जयंती, टुडोर, गोटबाया, बासिल, प्रीति, डुडले और गांधीनी. डॉन मैथ्यू राजपक्षे रागी (जिसकी उस क्षेत्र में लोग खेती करते थे) का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक भूरे रंग का शॉल पहनते थे. बाद में महिंदा राजपक्षे भी इसी तरह का शॉल पहने नजर आते हैं. डॉन मैथ्यू राजपक्षे बेलिएट्टा से 1947 से 1965 तक सांसद रहे. और विजयानंद दहनायके की सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे.
फैमिली गवर्नमेंट
राजपक्षे परिवार श्रीलंका की सत्ता पर दशकों से राज कर रहा है. मौजूदा सरकार में चार भाई और उनके बच्चे सबसे बड़े पदों पर थे. गोतबाया राजपक्षे राष्ट्रपति हैं. महिंदा राजपक्षे प्रधानमंत्री थे. चामल राजपक्षे सिंचाई मंत्री और बासिल वित्त मंत्री थे. सरकार में महिंदा राजपक्षे के बेटे नमल खेल मंत्री और योशिथा पीएम के चीफ ऑफ स्टाफ थे. जबकि चामल के बेटे शशिन्द्रा कृषि राज्य मंत्री थे. वहीं महिंदा राजपक्षे का भांजा निपुण राणावका राज्य मंत्री था. महिंदा राजपक्षे ने 9 मई को इस्तीफा दिया जबकि बाकी सभी मंत्री 3 अप्रैल को इस्तीफा सौंप चुके हैं. इससे पहले भी ये सब पिछली सरकारों में अहम पद संभाल चुके हैं.
चामल राजपक्षे 1989 में हंबंनटोटा से सांसद रहे. इसके बाद 2010 से 2015 के बीच संसद के स्पीकर, 2019 से 2020 तक मिनिस्टर ऑफ इंटरनल ट्रेड, फूड एंड सिक्योरिटी एंड कंज्यूमर वेलफेयर जैसे विभाग संभाले. 2020 से 2022 के बीच सिंचाई मंत्री का पदभार देखा.
वहीं 2009 में राष्ट्रपति बनने से पहले गोटबाया राजपक्षे 1971 से 1991 तक श्रीलंका की सेना में रहे. इसके बाद 2005 से 2015 तक मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस और अर्बन डेवेलपमेंट मंत्रालय में सेक्रेटरी का पद देखा. महिंदा राजपक्षे 2005 में पहली बार राष्ट्रपति बने इसके बाद 2010 में उन्हें दूसरा कार्यकाल मिला. 2019 में वे अपने भाई की सरकार में प्रधानमंत्री बने. बासिल राजपक्षे 2010 से 2015 तक इकोनॉमिक डेवेलपमेंट मिनिस्टर रहे और कम्पाला से सांसद रहे. 2021 से 2022 तक वित्त मंत्रालय संभाला.
जॉर्ज राजपक्षे के बच्चे श्यामलाल राजपक्षे 1994 से 2004 के बीच दक्षिणी प्रांतीय काउंसिल के सदस्य रहे. जबकि उनकी बेटी और महिंदा व गोटबाया की भतीजी निरुपमा राजपक्षे 2010 से 2015 के बीच वाटर सप्लाई एंड ड्रेनेज में डिप्टी मिनिस्टर रहीं. 2005 से 2015 तक हंबंनटोटा से सांसद चुनी गईं.
ये भी पढ़ें
'संकट से जूझ रहे श्रीलंका की मदद करेगा भारत', भारतीय उच्चायुक्त ने बताया कैसे निभाएंगे दोस्ती