नेपाल संसद की प्रतिनिधि सभा में विवादित नक्शे में बदलाव का संविधान संशोधन बिल पास
भारत और नेपाल के बीच यह ताजा सीमा विवाद उस वक्त गरमाना शुरू हुआ जब भारत ने अगस्त 2019 में अपने जम्मू-कश्मीर सूबे से अनुच्छेद 370 खत्म करदो केंद्र शासित प्रदेशों बनाए और देश का नया राजनीतिक नक्शा जारी किया गया.
नई दिल्ली: नेपाल संसद की प्रतिनिधि सभा ने नक्शे में बदलाव का संविधान संशोधन बिल पास कर दिया है. बता दें कि नेपाल सरकार ने बीते दिनों जारी किए नए नक्शे को आधिकारिक राजचिह्न में जगह देने के लिए नेपाल संसद में इस संविधान संशोधन विधेयक पेश किया था. जिसके बाद प्रमुख विपक्षी दल नेपाली कांग्रेस की तरफ से मिले समर्थन ने इस विधेयक को संसद में पारित कराने का रास्ता साफ कर दिया था. अब यह बिल पास हो गया है.
नेपाल सरकार की ओर से कानून, न्याय और संसदीय मामलों के मंत्री शिवमया तुंबाहांगफे ने नेपाली संसद में यह संशोधन विधेयक पेश किया था. नेपाल के कोट-ऑफ-आर्म्स यानी राजचिह्न को संशोधित करने के लिए एक कदम के रूप में संविधान की अनुसूची 3 में संशोधन की आवश्यकता है. गौरतलब है कि बीते दिनों जारी नेपाल के नए राजनीतिक मानचित्र में लिम्पीयाधुरा, लिपुलेख और कालापानी जैसे उन इलाकों को भी अपने क्षेत्र में दिखाया हैं जो भारत के पास हैं.
भारत का रुख
लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा जैसे इलाकों को शामिल करते हुए जारी किए गए नए नेपाली मानचित्र को भारत ने ऐतिहासिक तथ्यों से परे और एकतरफा कदम करार दिया है. भारत ने साफ किया है कि वो इसे स्वीकार नहीं करेगा. नेपाल के भू-प्रबंधन मंत्राल की तरफ से जारी किए मानचित्र पर प्रतिक्रिया में भारत के विदेश मंत्रालय प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा कि यह एकतरफा कदम है. साथ ही कूटनीतिक वार्ता के जरिए सीमा मामे को सुलझाने की द्विपक्षीय समझ के भी विपरीत है. इस तरह कृत्रिम तौर पर किए गए भौगोलिक विस्तार को भारत स्वीकार नहीं कर सकता है.
विदेश मंत्रालय प्रवक्ता ने कहा था कि नेपाल इस मामले पर भारत की लगातार बताई जाते रहे मत से वाकिफ है. ऐसे में हम नेपाल सरकार से आग्रह करते हैं कि वो नक्शों के जरिए भारत की संप्रभुता और अक्षुण्णता पर दबाव बनाने का प्रयास न करे. भारत ने उम्मीद जताई कि नेपाल का राजनीतिक नेतृत्व एक सकारात्मक वातावरण बनाएगा जिससे सीमा विवाद को सुलझाने में मदद मिलेगी.
महत्वपूर्ण है कि नेपाल में चल रहे राजनीतिक घमासान के बीच सत्तारूढ़ केपी शर्मा ओली सरकार ने लिपुलेख इलाके में भारत की तरफ से बनाई गई सड़क का बहाना बनाते हुए नया विवाद खड़ा कर दिया. हालांकि नए नक्शे को जारी करते हुए नेपाल के भू-प्रबंधन विभाग ने 1816 में ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ हुई सुगौली संधि का हवाला देते हुए काली नदी के उद्गम स्थल लिंपयाधुरा, गुंजी आदि इलाकों को नेपाली जमीन होना का दावा किया. साथ ही भारत के साथ मित्रतावत रिश्तों का हवाला देते हुए कहा वो सीमा मामलों को सुलझाने के लिए प्रतिबद्ध है. हालांकि सुगौली संधि में इस बात का साफ उल्लेख है कि काली नदी के पूर्व में नेपाल और पश्चिम में भारत का क्षेत्र है.
गौरतलब है कि भारत के साथ सीमा पर लिपुलेख और कालापानी को लेकर विवाद का तार खींचते हुए नेपाल के केंद्रीय मन्त्रिमण्डल ने 18 मई को हुई बैठक के बाद देश का नया राजनीतिक नक्शा जारी करने का फैसला लिया था. नए नक्शे में नेपाल के सभी 7 प्रदेशों, 77 जिलों और 753 स्थानीय इलाकों को समाहित करते हुए नया नक्शा जारी किया गया है. इसमें लिम्पियधुरा, कालापानी और लिपुलेख को भी नेपाल का हिस्सा बताया गया है.
भारत और नेपाल के बीच यह ताजा सीमा विवाद उस वक्त गरमाना शुरू हुआ जब भारत ने अगस्त 2019 में अपने जम्मू-कश्मीर सूबे से अनुच्छेद 370 खत्म करदो केंद्र शासित प्रदेशों बनाए और देश का नया राजनीतिक नक्शा जारी किया गया. विवाद ने हाल में उस वक्त तूल पकड़ा जब भारत ने लिपुलेख के रास्ते कैलाश मानसरोवर का नया मार्ग शुरू किया. इसके बाद नेपाल की भी राजनीतिक तापमान गरमा गया.बीते सप्ताह नेपाल ने कालापानी इलाके के करीब छंगरू में अपनी नई सशस्त्र सीमा चौकी भी बना ली.
इस मामले पर भारत सरकार लगातार यह कहती रही है कि कालापानी को लेकर किसी तरह का सीमा विवाद नहीं है. भारत ने जो नया सड़क मार्ग बनाया है वो पूरी तरह भारतीय सीमा में है. विदेश मन्त्रालय का आधिकारिक प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने 9 मई को दिए बयान में कहा था कि भारत और नेपाल के बीच सीमा मामले को सुलझाने के लिए एक स्थापित प्रक्रिया है. दोनों देशों के बीच सीमांकन की कवायद भी चल रही है. भारत इस मामले से जुड़े सभी पहलुओं को नेपाल के साथ अपने दोस्ताना रिश्तों और कूटनीतिक तरीकों से सुलझाना चाहता है.