लेफ्टिनेंट जनरल उनकी पत्नी और चीफ जस्टिस के पारिवारिक संबंधों पर बहस के साथ ही सेना का जारी बदला इस समय पाकिस्तान में चर्चा का विषय बन गया है. लेकिन इस पूरी खबर को समझने के लिए हमें पाकिस्तान चल रहे राजनीति के पूरे खेल को समझना होगा जिसमें सेना भी शामिल है.  


दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के पड़ोसी देश में इस व्यवस्था को खत्म करने का पूरा प्लान अब पर्दे के पीछे से चल रहा है. पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की भ्रष्टाचार के एक मामले में हुई गिरफ्तारी के बाद उनकी पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ के लोगों ने बीती 9 मई को हिंसा शुरू कर दी थी.


लोकतांत्रिक देशों में इस तरह की घटनाएं आम होती हैं और व्यवस्था के दम पर ऐसे हिंसक विरोध प्रदर्शन को शांत कर दिया जाता है. पाकिस्तान की पूरी व्यवस्था पर कुंडली मारकर बैठी वहां की सेना ने इस प्रदर्शन को इकबाल के खिलाफ माना है.


ये भी कहना गलत न होगा कि पाकिस्तान के 75 सालों के इतिहास में ये पहली बार था कि किसी राजनीतिक दल ने सेना के खिलाफ इतना बड़ा प्रदर्शन किया हो, लेकिन अब पाकिस्तान की सेना ने इमरान खान की पार्टी पीटीआई को मिटा देने की कसम खा ली है.






राजनीति में आने के कुछ समय के बाद से ही इमरान खान ने सेना को निशाने पर ले लिया था. नाटकीय ढंग से प्रधानमंत्री की कुर्सी से हटने के बाद से इमरान खान और उनकी पार्टी ने आईएसआई के चीफ मेजर जनरल फैसल नसीर पर जानलेवा हमले का आरोप मढ़ दिया था.


गौरतलब है कि बीते साल एक रैली के दौरान इमरान खान पर गोली चलाई गई थी.


माना जा रहा है कि इमरान खान ने जिस तरह से हमले के बाद सहानुभूति बटोरी और सेना को खलनायक साबित करने की कोशिश की थी उनकी गिरफ्तारी इसी घटनाक्रम का नतीजा थी. अब पाकिस्तान की सेना इमरान खान और उनकी पार्टी के नेताओं को पीछे पड़ गई है.


9 मई को हुई हिंसा का बहाना बनाकर ताबड़तोड़ कार्रवाई की जा रही है. डर के मारे कई नेताओं ने पीटीआई से इस्तीफा दे दिया है. सेना की ओर से की जा रही कार्रवाई में पीटीआई के नेताओं को सार्वजनिक तौर पर प्रताड़ित करने की खबरें हैं.


इसके साथ ही पाकिस्तान की सेना को एक बार फिर मौका मिल गया है कि वो अपनी पकड़ को एक बार फिर सरकारी सिस्टम में मजबूत कर ले जो इमरान सरकार के दौरान ढीली पड़ गई थी.


लेकिन पाकिस्तान सेना इस बार जोरजबरदस्ती या तख्तापलट करने के अंदाज में नही हैं. पाकिस्तान के मौजूदा प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ एक कमजोर सरकार के मुखिया हैं और वो सेना के कामों में दखल देने की हिम्मत तक नहीं जुटा सकते हैं.


दूसरी ओर डूबती अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए भी उनको सेना की मदद की जरूरत है. 


इस बीच पाकिस्तान की सेना इमरान के समर्थकों की ओर की गई हिंसा को देश के खिलाफ बताकर आम जनता का दिल जीतने में जुटी है. दरअसल इमरान खान सेना के भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाकर वहां के सैन्य अधिकारियों के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश में थे.


लेकिन अब सेना एक सिस्टम बनाने की कोशिश में है जिसमें उसकी भूमिका राजनीतिक दलों के अलावा तीसरे फैक्टर की हो और उसे सबसे ज्यादा पावर भी हो. अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की ओर से कर्ज देने में हो रही देरी को देखते हुए आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए हुई सरकार की बैठक में सेना भी शामिल थी. 




पाकिस्तान के मौजूदा सेना प्रमुख जनरल सैयद आसिम मुनीर पूर्व के सेना प्रमुख जनरल कमर बाजवा की छाया से आर्मी को मुक्त करने की कोशिश कर रहे हैं. कमर बाजवा ने रिटायर होने से पहले एक बयान दिया था कि राजनीति में सेना की भूमिका असंवैधानिक है.


शुरुआत में आसिम मुनीर ने भी इस बात का समर्थन किया था. लेकिन पीटीआई के कार्यकर्ताओं और नेताओं पर जिस तरह की कार्रवाई हो रही है उससे साफ जाहिर है कि सेना एक बार फिर पाकिस्तान की राजनीति में बड़ा फैक्टर बन गई है.


सेना की कार्रवाई और इमरान की पार्टी
भ्रष्टाचार के मामले में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद पीटीआई के कार्यकर्ताओं ने हिंसक प्रदर्शन शुरू कर दिया. लोगों का गुस्सा सरकार के खिलाफ कम सेना पर ज्यादा था. भीड़ रावलपिंडी स्थित सेना के मुख्यालय में घुसकर तोड़फोड़ कर दी.


पाकिस्तान के इतिहास में ये पहली बार था कि जनता सेना के मुख्यालय में घुस गई हो. अभी तक सेना तख्ता पलट करती थी लेकिन इस बार जनता ने सेना का ही कर दिया और साफ संदेश दिया कि राजनीतिक मामलों में वो दखल न दे.


लेकिन ये विरोध प्रदर्शन ज्यादा दिन चल सका. अब मामला सेना के हाथ में है और फैसला हो चुका है कि 9 मई की हिंसा में शामिल पीटीआई के कार्यकर्ताओं के खिलाफ सैन्य अदालतों में मुकदमा चलाया जाएगा.


पाकिस्तान की मौजूदा सरकार ने चुप्पी साध रखी है. सेना की ओर से ये भी संदेश दिया जा रहा है कि वो पीटीआई की ओर किए गए इस आतंक का शिकार बनी है जो कि देश की रक्षा करती है.


हाल ही के दिनों में पीटीआई को जिस तरह से नेताओं ने छोड़ा है उससे अब इमरान की पार्टी के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है. खबर तो यहां तक है कि खुद इमरान खान भी जमीनी पकड़ खोते जा रहे हैं और उन्होंने जो 'सच्ची आजादी' का अभियान शुरू किया था वो भी ठंडा पड़ चुका है.


9 मई इमरान खान पर भारी पड़ गई 
इमरान की गिरफ्तारी के बाद 9 मई को हुई हिंसा का असर राजनीतिक गतिविधियों पर भी पड़ा है. पंजाब और खैबर पख्तुनुवा प्रांत में होने वाले चुनाव भी टाल दिए गए हैं. इमरान खान इन राज्यों में  लंबे समय से चुनाव की मांग कर रहे थे. इतना ही नहीं मौजूदा सरकार जो इस साल आम चुनाव कराने की तैयारी कर रही थी वो भी पीछे हट गई है. अगर पाकिस्तान में राजनीतिक गतिविधियां ठप पड़ती हैं तो साफ है कि शासन-प्रशासन और राजनीति में सेना की दखलंदाजी बढ़ती चली जाएगी.


क्या है लेफ्टिनेंट जनरल की पत्नी, चीफ जस्टिस वाला मामला
दरअसल सेना न सिर्फ पीटीआई पर निशाना साध रही है बल्कि उसके निशाने पर कुछ सैन्य अधिकारी हैं जिन पर शक है कि उन्होंने जानबूझकर इमरान समर्थकों को अपने घर में घुसने दिया है. सेना के इन अधिकारियों के खिलाफ मिलिट्री कोर्ट में मुकदमा चलाने की तैयारी हो रही है.


इसमें एक बड़ा नाम सामने आ रहा है लेफ्टिनेंट जनरल सलमान फय्याज घनी का जिन पर आरोप लग रहा है कि उन्होंने जानबूझकर इमरान समर्थकों को अपने घुसकर तोड़फोड़ की इजाजत दी. बात यहीं तक नहीं है बताया जा रहा है कि उनकी पत्नी के पाकिस्तान के चीफ जस्टिस उमर अता बंदियाल से निकट संबंध हैं.


पाकिस्तान की शहबाज सरकार कई बार आरोप लगा चुकी है कि प्रधान न्यायाधीश किसी न किसी मामले में इमरान खान का पक्ष ले रहे हैं. इसके साथ ही सरकार ने 'अराजकता' फैलाने के आरोप में चीफ जस्टिस का इस्तीफा मांगा है.  


बता दें कि पाकिस्तान का न्याय पालिका के इमरान के प्रति कथित झुकाव की वजह से उसका सेना के साथ भी टकराव है.


पाकिस्तान के सामने है बड़ा संकट
गरीबी, बेरोजगारी और अनाज के संकट से जूझ रही पाकिस्तान की जनता में गुस्सा बढ़ता जा रहा है. इसके साथ ही देश के अंदर ही कई आतंकवादी संगठन सक्रिय हो चुके हैं. मौजूदा उथल-पुथल के दौर में पाकिस्तान की सेना फिर से सक्रिय हो चुकी है.


सरकारी संस्थाएं कमजोर हो रही हैं. सेना का टकवार अब सुप्रीम कोर्ट से होता दिख रहा है. लेकिन राजनीतिक खेल भी चरम पर है.