चीन में कोरोना वायरस की जंग डिजिटल क्यू आर कोड की मदद से लड़ी जा रही है. हालांकि अधिकारियों ने इसे अभी बहुत सारी जगहों पर अनिवार्य नहीं किया है. मगर कई शहरों में बिना ऐप के लोगों को घरों से बाहर निकलने की इजाजत नहीं है. यहां तक कि सार्वजनिक जगहों पर दाखिला भी मना है.


कलर आधारित हेल्थ कोड सिस्टम की मदद से लोगों के आवागमन पर नजर रखना आसान हो गया है. कोरोना वायरस की रोकथाम में क्यू आर कोड नागरिकों के लिए उनके स्वास्थ्य का सिगनल होता है. स्क्रीन पर हरा दिखाई देने का मतलब होता वायरस फ्री. इसके बाद आगे उन्हें आगे जाने की इजाजत मिल जाती है. जबकि अंबर या लाल दिखने पर लोगों को दाखिले से रोक दिया जाता है. कोरोना वायरस महामारी के बीच तीन महीनों से स्क्वायर बार कोड लोगों के लिए अनिवार्य है. ऑफिस की इमारत में दाखिल होनेवाले को सुरक्षा कर्मी को मोबाइल फोन के साथ हेल्थ कोड दिखाना पड़ता है.


हेल्थ कोड हासिल करने के लिए शहरियों को अपनी निजी जानकारी साझा करनी पड़ती है. नाम, राष्ट्रीय पहचान नंबर, पासपोर्ट नंबर और फोन नंबर को साइन अप पेज पर भरना होता है. फिर उन्हें अपनी पिछली यात्रा के बारे में बताना होता है. इसके साथ ही उनसे 14 दिनों के बारे में पूछा जाता है कि क्या इस दौरान उनका संपर्क कोवड-19 के मरीजों से हुआ है. बुखार, थकान, सूखी खांसी, नाक से बहना, गले में खराश या डायरिया जैसे लक्षण के बॉक्स पर टिक करना होता है. तकनीक की मदद से कोरोना वायरस की लड़ाई में चीन का अनुसरण कई देश करने की कवायद में हैं. सिंगापुर में कंटैक्ट-ट्रैसिंग ऐप की मदद से अधिकारियों को कोविड-19 के मरीजों की पहचान में सुविधा हो रही है. जापान की सरकार भी इसी तरह के ऐप को अपने यहां इस्तेमाल करने पर विचार कर रही है. रूस ने भी क्यू आर कोड सिस्टम लागू कर आवागमन और लॉकडाउन के पालन पर निगरानी रख रहा है.


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