(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
कभी सैनिकों को देश छोड़ने को कहा तो कभी तोड़ा 'हाइड्रोग्राफिक समझौता', चीन की गोदी में बैठे मालदीव से कैसे निपट सकता है भारत?
India-Maldives Relations: मोहम्मद मुइज्जु के राष्ट्रपति बनने के बाद से ही भारत और मालदीव के बीच रिश्ते तनावपूर्ण हो गए हैं. वह लगातार भारत के खिलाफ फैसले ले रहे हैं.
India-Maldives: भारत का दोस्त रहा मालदीव अब उसके खिलाफ होते जा रहा है. जब से मोहम्मद मुइज्जु ने राष्ट्रपति पद संभाला है, तब से ही वह लगातार भारत के खिलाफ फैसले ले रहे हैं. पहले उन्होंने मालदीव में तैनात भारतीय सैनिकों को जाने को कहा और अब उन्होंने एक प्रमुख समझौते से मालदीव को बाहर कर दिया है. इस समझौते को 'हाइड्रोग्राफिक सर्वे समझौते' के तौर पर जाना जाता है, जिसे मालदीव की सरकार ने रद्द कर दिया है.
राष्ट्रपति मुइज्जु को चीन समर्थक माना जाता है और जब उनके चुनाव जीतने की संभावना बनने लगी थी, तभी इस बात का अंदेशा हो गया था कि वह भारत संग रिश्ते बिगाड़ सकते हैं. चुनाव अभियान के दौरान मुइज्जु की पार्टी 'प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव' ने 'इंडिया आउट' का नारा दिया था. सरकार बनने के बाद उसकी हरकतों ने इसे साबित भी किया है. ऐसे में आइए जानते हैं कि आखिर 'हाइड्रोग्राफिक सर्वे समझौते' क्या है और भारत किस तरह से मालदीव से निपट सकता है.
क्या है 'हाइड्रोग्राफिक सर्वे समझौते'?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब 2019 में मालदीव का दौरा किया, तो उस समय दोनों देशों के बीच 'हाइड्रोग्राफिक सर्वे समझौते' हुआ. पीएम मोदी तत्कालीन राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह के न्योते पर मालदीव पहुंचे थे. ये समझौता 8 जून, 2019 को किया गया था. इसके तहत भारत को मालदीव के साथ मिलकर उसके इलाके में जलक्षेत्र, रीफ, लैगून, सामुद्रिक सहरों और उसके स्तर को स्टडी करने की इजाजत मिली.
हाइड्रोग्राफिक सर्वे को जहाजों के जरिए किया जाता है, जो समुद्री इलाकों के विभिन्न पहलुओं की स्टडी करने के लिए सोनार जैसे डिवाइस का इस्तेमाल करते हैं. यूएस नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के अनुसार, सर्वे के जरिए ये मालूम चलता है कि पानी की गहराई, समुद्र तल और समुद्र तटों का आकार कैसा है. इसके जरिए ये भी मालूम चलता है कि समुद्र में कोई बाधा तो नहीं है, ताकि समुद्री यातायात को सुगम बनाया जा सके.
मालदीव से कैसे निपट सकता है भारत?
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, मालदीव की आर्थिक जरूरतें ऐसी हैं, जिनकी वजह से वह चीन की ओर झुकता जा रहा है. इस इलाके में चीन का दखल भारत के लिए खतरे की बात है. यही वजह है कि भारत उन सभी विकल्पों की ओर देख रहा है, जिनके जरिए मालदीव को काबू में किया जा सके या फिर उसके फैसलों की काट ढूंढी जा सके. वर्तमान में भारत के पास मालदीव से निपटने के लिए तीन रास्ते हैं. आइए इनके बारे में जानते हैं.
- पहला रास्ता तो ये है कि जब तक मालदीव में राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जु की सरकार रहती है, तब तक भारत 'इंतजार करो और देखो' की नीति पर काम कर सकता है. इस दौरान चीन का यहां अच्छा खासा प्रभाव देखने को मिलने वाला है.
- दूसरा रास्ता ये है कि भारत चाहे तो यहां पर अप्रत्यक्ष तौर पर प्रभाव पैदा कर सकता है. मालदीव हिंद महासागर में मौजूद है और यहां अमेरिका के अलावा अन्य प्रमुख देशों की मौजूदगी भी है. ऐसे में भारत उनके जरिए मालदीव के साथ समीकरण प्रभावित कर सकता है.
- तीसरा रास्ता ये है कि भारत किसी तरह से मालदीव के विपक्षी पार्टियों के संपर्क में आए, ताकि उन्हें ये समझाया जा सके कि किस तरह चीन पर निर्भरता मालदीव के लिए खतरे का सबब बन सकती है. विपक्ष को लगातार इस मुद्दे को उठाने के लिए प्रेरित किया जाए.
यह भी पढ़ें: मालदीव ने खत्म किया हाइड्रोग्राफिक सर्वे एग्रीमेंट, कैसे ये फैसला हिन्द महासागर में भारत की सुरक्षा पर डालेगा असर?