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यूरोप तक आर्थिक गलियारा बनाकर चीन के सपनों और पाकिस्तान के मंसूबों पर कैसे पानी फेरेगा भारत?

भारत में हुए जी-20 सम्मेलन के पहले दिन ही इंडिया मिडिल ईस्ट इकोनॉमिक कॉरिडोर के लॉन्च का ऐलान किया. इस परियोजना को चीन के बीआरआई इनीशिएटिव और विस्तारवादी रवैए को रोकने का काट भी कहा जा रहा है. 

9 और 10 सितम्बर को भारत की राजधानी दिल्ली में आयोजित जी-20 सम्मेलन कई मायनों में ऐतिहासिक रहा. सम्मेलन की शुरुआत के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जानकारी दी कि जी 20 परिवार में अब अफ्रीकी संघ भी शामिल हो गया है. इसके अलावा सम्मेलन के पहले दिन ही एक और ऐतिहासिक घोषणा भी की गई. 

दरअसल भारत ने संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, यूरोपीय संघ, फ्रांस, इटली, जर्मनी और अमेरिका के साथ मिलकर महाद्वीपों में आर्थिक एकीकरण और सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप इकोनॉमिक गलियारे के लॉन्च का ऐलान किया.

आधिकारिक तौर पर इसे इंडिया मिडिल ईस्ट इकोनॉमिक कॉरिडोर का नाम दिया गया है. इसके साथ ही इसे आधुनिक स्पाइक रूट के तौर पर प्रोजेक्ट किया जा रहा है. 

यह गलियारा इतना अहम इसलिए है क्योंकि इसके निर्माण के साथ ही दुनिया के 'व्यापार का भूगोल' बदल जाएगा. इस स्टोरी में जानते हैं कि भारत यूरोप तक आर्थिक गलियारा बनाकर चीन के सपनों और पाकिस्तान के मंसूबों पर पानी कैसे फेरेगा?

चीन के सपनों पर यह प्रोजेक्ट कैसे फेरेगा पानी 

भारत-मध्य पूर्व यूरोप आर्थिक गलियारा सैकड़ों अरब डॉलर का इस प्रोजेक्ट है. इस प्रोजेक्ट को जहां एक तरफ चीन के बीआरआई इनीशिएटिव का मुकाबला माना जा रहा है. तो वहीं दूसरी तरफ इसी प्रोजेक्ट को चीन के विस्तारवादी रवैए को रोकने का काट भी कहा जा रहा है. 

माना जा रहा है कि भारत-मध्य पूर्व यूरोप आर्थिक गलियारा चीन की बेल्ट एंड रोड को चुनौती दे सकता है. दरअसल परिवहन नेटवर्कों के जरिए महाद्वीपों को जोड़ना 21वीं सदी की भू-रणनीतिक विशेषता बन गयी है.

चीन ने साल 2013 में कजाकिस्तान में बीआरआई परियोजना की घोषणा की थी, जिसका उद्देश्य पूर्वी एशिया और यूरोप को जोड़ने का प्रयास था. भारत में मसालों के व्यापार के लिए जो हम यूरोप जाते थे, इस रास्ते का भी इस्तेमाल करते थे. 

अब क्योंकि इसी रास्ते में चीन और पाकिस्तान भी हैं, तो कहीं न कहीं यह रास्ता भारत के लिए बाधक बन जाता था. भारत बीआरआई में शामिल होने से इनकार भी कर चुका है. उनका तर्क है कि यह रास्ता पाकिस्तान के कब्जे वाले भारतीय क्षेत्रों से होकर गुजरता है. 

इसके अलावा बीआरआई कई देशों के शामिल होने के बाद भी एक एकपक्षीय परियोजना की तरह काम करता है, जिसमें चीन मुख्य निवेशक है जबकि अन्य देश प्राप्तकर्ता हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि बीआरआई चीन की भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने वाली परियोजना है.

इसके अलावा इस परियोजना के जरिए चीन ने पाकिस्तान, श्रीलंका, केन्या, जाम्बिया, लाओस जैसे गरीब देशों के लिए 'ऋण का जाल’ बिछा दिया है, जो कर्ज तो ले लेते हैं लेकिन उसे चुका नहीं पाते. 

ऐसे में चीन के बढ़ रहे वाणिज्यिक और भू-राजनीतिक प्रभाव के कारण अन्य देश चीन को प्रतिद्वंद्वी या प्रतिस्पर्धी के रूप में देखते हैं. यही कारण है कि बीआरआई में इटली के अलावा जी-7 का कोई भी देश शामिल नहीं हुआ है.

जी-7 के अन्य देश काफी लंबे समय से एक ऐसी  परियोजनाओं को विकसित करने की योजना बना रहे हैं जिसमें उन्हें चीन पर निर्भर न होना पड़े. 

पाकिस्तान के मंसूबे पर फिर जाएगा पानी

बीआरआई के जरिए पाकिस्तान अगर व्यापार करता है तो इस देश को ज्यादा फायदा हो सकता है. इसके अलावा अगर भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप इकोनॉमिक गलियारे का लॉन्च नहीं होता तो भारत चीन और पाकिस्तान के रास्ते से व्यापार करने के लिए बाध्य हो जाता जिससे पाकिस्तान भारत के व्यापार पर असर डाल सकता है.

पहले भी की जा चुकी परियोजनाओं की शुरुआत 

साल 2021 में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन जी-7 के सहयोग से बीआरआई का मुकाबला करने के लिए बिल्ड बैकबेटर वर्ल्ड इनिशिएटिव (बी3डब्ल्यू) लॉन्च किया था. हालांकि बजट की कमी के कारण इस परियोजना को आगे बढ़ने में काफी देर हुई.

बीआरआई को लेकर बंटा हुआ है यूरोप

बीआरआई को लेकर यूरोप बंटा हुआ है. 27 सदस्यों वाले यूरोपीय संघ का कुल 18 देश बीआरआई में शामिल हैं. इसलिए यूरोपीय संघ चीन के बीआरआई के खिलाफ कोई सख्त रुख अपनाने की स्थिति में नहीं है. 

यही कारण है भारत-मध्य पूर्व-यूरोप गलियारा भारत के नजरिये से काफी महत्वपूर्ण परियोजना है. भारत पाकिस्तान द्वारा पैदा की गयी बाधाओं के कारण पश्चिम एशिया और यूरोप के साथ आर्थिक गलियारा विकसित करने में कामयाब नहीं हो पा रहा था.

इस गलियारे का एक बड़ा लाभ ये है कि इस गलियारे में सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और यूरोपीय संघ शामिल हैं. इन देशों के पास निवेश करने के लिए काफी राशि है. 

इस परियोजना से अमेरिका को कैसे होगा फायदा

अमेरिका इस परियोजना का इस्तेमाल सऊदी अरब के चीन और रूस से बढ़ते रिश्तों पर लगाम लगाने और इजरायल और सऊदी अरब को नजदीक के लिए भी कर सकता है. 

वहीं भारत के नजरिए से देखें तो इस गलियारे का भारत को सामरिक फायदा मिलेगा. दरअसल चीन ने सीपीईसी और बीआरआई के जरिए भारत को सामरिक रूप से घेरने की कोशिश की है. अब इस गलियारे के निर्माण के बाद भारत चीन के उस घेरे से खुद को बाहर निकाल पाएगा. 

इंडिया मिडिल ईस्ट इकोनॉमिक कॉरिडोर के निर्माण के बाद भारत स्वतंत्र रूप से होरमुज स्ट्रेट, स्वेज नहर और बाब अल मंधब स्ट्रेट पर आवाजाही कर पाएगा. बता दें कि दुनिया का एक तिहाई तेल और गैस होरमुज स्ट्रेट से निर्यात किया जाता है और भारत की ईंधन सुरक्षा के लिए यह एक निर्णायक रूट है.

इसके अलावा स्वेज नहर के रास्ते ही दुनिया का लगभग 12 फीसदी वैश्विक व्यापार भी किया जाता है. 

भारत की विदेश नीति और होगी आक्रामक

इंटरनेशनल रिलेशन एक्सपर्ट डॉ मनोज कुमार ने एबीपी से बातचीत में इस सवाल का जवाब देते हुए कहा कि भारत को आजाद हुए 75 साल हो गए हैं और इन सालों में इस देश ने अपनी विदेश नीति में अपने हितों को सर्वाधिक प्राथमिकता दी है.

अगर दुनिया आज भारत पर भरोसा कर रही है, तो ये जाहिर है कि इस देश की आंतरिक नीति भी ठीक है और तभी हम विदेश नीति भी ठीक कर पा रहे हैं.

डॉ मनोज कुमार आगे कहते हैं, आज भारत दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहा है. भारत का जहां भी निवेश है या व्यापार है, वहां यह देश कल्याणकारी नजरिए से काम कर रहे हैं. चीन का रवैया उपनिवेशवादी है. कोई भी देश उसको स्वीकार नहीं करता है.

भारतीय नीति सॉफ्ट पेनेट्रेशन की है. आने वाले समय में एक नयी विश्व व्यवस्था कायम होगी और भारत उसमें नेतृत्व की भूमिका में होगा, उसकी विदेश नीति और अधिक आक्रामक होगी. इसका अर्थ ये नहीं कि हम लड़ाई में उलझेंगे, लेकिन हां हम पूरी ताकत से अपनी बात रखेंगे, दुनिया में अपनी जगह लेंगे.

अब जानते हैं कि क्या है भारत-मध्य पूर्व यूरोप आर्थिक गलियारा

भारत-मध्य पूर्व यूरोप आर्थिक गलियारा यानी इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप आर्थिक गलियारे का उद्देश्य मध्य पूर्व के देशों को रेलवे से जोड़ना और उन्हें बंदरगाह के माध्यम से भारत से जोड़ना है. इस कॉरिडॉर के बनने के बाद से शिपिंग समय, लागत और ईंधन का इस्तेमाल कम होगा और खाड़ी से यूरोप तक ट्रेड फ्लो में मदद मिलेगी.

इसके अलावा रेल और शिपिंग कॉरिडोर देशों को ऊर्जा उत्पादों सहित ज्यादा व्यापार के लिए सक्षम बनाएगा. इसकी घोषणा से पहले अमेरिकी अधिकारी फाइनर ने कहा था कि अमेरिका की नजर से ये समझौता पूरे क्षेत्र में तनाव कम करेगा और हमें ऐसा लगता है कि इससे टकराव से निपटने में मदद मिलेगी.

भारत और अमेरिका मिलकर करेंगे अगुवाई

इस कॉरिडोर की अगुवाई भारत अमेरिका के साथ मिलकर करेगा. इस समझौते के तहत कनेक्टिविटी और इंफ्रास्ट्रक्चर पर बड़े पैमाने पर काम किया जाएगा. यह ट्रेड रूट भारत को यूरोप से जोड़ते हुए पश्चिम एशिया से होकर गुजरेगा.

भारत और अमेरिका के अलावा पश्चिम एशिया से संयुक्त अरब अमीरात व सऊदी अरब और यूरोप से यूरोपीय संघ, फ्रांस, इटली व जर्मनी भी इसका हिस्सा होंगे.

इस प्रोजेक्ट के तहत क्या-क्या होगा?

इस प्रोजेक्ट में दो अलग-अलग कॉरिडोर का निर्माण शामिल है. पहला है पूर्वी कॉरिडोर जो भारत को खाड़ी क्षेत्र से जोड़ने में मदद करेगा और दूसरा है उत्तरी कॉरिडोर जो कि खाड़ी क्षेत्र को यूरोप से जोड़ेगा. इसके अलावा इस कॉरिडोर में शिपिंग नेटवर्क, रेलवे और सड़क परिवहन मार्ग शामिल किया जाएगा.

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