जिस अमेरिका में इसी महीने (नवंबर, 2024) में राष्ट्रपति चुनाव होने हैं, उसे दुनिया की महाशक्तियों में गिना जाता है. हथियारों से लेकर काम-धंधे के मामले में वह सुपरपॉवर भी कहलाता है और धनकुबेर भी माना जाता है. आइए, जानते हैं कि हथियारों का जखीरा रखने वाले और डिप्लोमैसी में 'उस्ताद' कहे जाने वाले यूएसए ने दुनिया भर में ऐसी धाक कैसे बना ली, जिसका फिलहाल कोई सानी नहीं नजर आता है. 


अमेरिका आजादी के बाद एक लंबा सफर तय कर चुका है. असाधारण संसाधनों, विशाल सेना और कूटनीति की कला में निपुणता के चलते यह राष्ट्र न केवल वैश्विक राजनीति पर गहरा प्रभाव डालता है, बल्कि आर्थिक और सैन्य मामलों में भी इसकी अद्वितीय उपस्थिति है. हालांकि, इसके पीछे एक ऐसा इतिहास छुपा है जो इसे महान बनाता है और दुनिया में इसकी पहचान को और मजबूत करता है.


लुइसियाना परचेज से अमेरिका का विस्तार


आज जिस अमेरिका को विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक और सैन्य शक्ति के रूप में देखा जाता है, उसके सफर की शुरुआत 13 ब्रिटिश कॉलोनियों के एकजुट होकर आजादी की घोषणा से हुई थी. इस देश ने न केवल अपनी भौगोलिक सीमाओं का विस्तार किया, बल्कि एक ऐसा आर्थिक ढांचा भी तैयार किया, जिसने इसे वैश्विक महाशक्ति बना दिया. इस सफर में लुइसियाना परचेज और अलास्का डील जैसे समझौते अमेरिका को एक नई ऊंचाई तक ले गए.


1700 के दशक में फ्रांस उत्तरी अमेरिका के बड़े हिस्से पर राज करता था, जिसे लुइसियाना रीजन कहा जाता है. यह इलाका मेक्सिको की खाड़ी से मिसिसिपी नदी तक और पश्चिम में रॉकी माउंटेन तक फैला हुआ था. हालांकि, 1762 तक फ्रांस आर्थिक संकट और युद्धों में उलझ गया था, जिससे मजबूर होकर किंग लुईस (15) ने इस इलाके को स्पेन को सौंप दिया. 1800 में नेपोलियन बोनापार्ट ने इसका कंट्रोल वापस हासिल किया, लेकिन यहां के स्लेव्स के विद्रोह और फ्रेंच आर्मी में फैल रही बीमारियों के कारण नेपोलियन ने इसे छोड़ने का फैसला लिया.


लुइसियाना को 1.5 करोड़ डॉलर में खरीदा


अमेरिका के तेजी से विस्तार की योजना को देखते हुए राष्ट्रपति थॉमस जेफरसन ने लुइसियाना रीजन को खरीदने का प्रस्ताव रखा. 1803 में उन्होंने मंत्री जेम्स मोनरो और डिप्लोमैट रॉबर्ट लिविंगस्टन को फ्रांस भेजा. दोनों ने नेपोलियन से न्यू ऑरलियन्स और आसपास के इलाके के लिए एक करोड़ डॉलर का प्रस्ताव रखा, लेकिन नेपोलियन को अधिक धन की जरूरत थी और उन्होंने पूरे लुइसियाना को 1.5 करोड़ डॉलर में बेचने की पेशकश की. मोनरो और लिविंगस्टन ने इसे एक सुनहरा मौका समझा और 30 अप्रैल 1803 को 'लुइसियाना पर्चेज डील' का मसौदा तैयार किया. 20 दिसंबर 1803 को यह डील औपचारिक रूप से अमेरिका के पक्ष में पूरी हुई, जिससे अमेरिका का क्षेत्रफल दोगुना हो गया.


अलास्का खरीद का फैसला और विवाद 1867 में अमेरिकी विदेश मंत्री विलियम सीवार्ड ने अलास्का खरीदने का समझौता किया. आलोचकों ने इसे ‘सीवार्ड्स फॉली’ यानी 'सीवार्ड की गलती' कहा, क्योंकि उन्हें यह बर्फीला इलाका बेकार लगा. नौ अप्रैल 1867 को अमेरिकी सीनेट ने इस डील को मंजूरी दी और 18 अक्टूबर 1867 को अमेरिका ने अलास्का को आधिकारिक रूप से नियंत्रण में ले लिया, जिसे आज ‘अलास्का डे’ के रूप में मनाया जाता है.


अलास्का का आर्थिक महत्व


शुरुआत में अलास्का को व्यर्थ समझा गया था, लेकिन बाद में यहां सोने, मछली पालन, लकड़ी, तेल और प्राकृतिक गैस के रूप में कई बेशकीमती संसाधन मिले. 1880 और 1890 के दशक में यहां सोने की खोज हुई, जिसने अमेरिका के कई लोगों को अलास्का की ओर आकर्षित किया. धीरे-धीरे अलास्का का आर्थिक महत्व बढ़ता गया और यह अमेरिका के आर्थिक और औद्योगिक विकास का केंद्र बन गया, जिसने इसे एक वैश्विक महाशक्ति बनने में मदद दी.


अमेरिका की आर्थिक शक्ति का सफर लुइसियाना परचेज और अलास्का डील जैसे फैसलों ने अमेरिका को न केवल भौगोलिक रूप से बढ़ाया बल्कि आर्थिक शक्ति के रूप में स्थापित किया. इन सौदों ने अमेरिका को आर्थिक आधार दिया, जिसने इसे आज के दौर की एक महाशक्ति बनाने में अहम भूमिका निभाई.


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