COVID-19: ब्रिटेन में शुरू हुआ कोरोना वायरस की वैक्सीन का मानव परीक्षण, बस नतीजों का इंतज़ार
खास बात ये है कि ऑक्सफोर्ड में जेनर इंस्टिट्यूट टीम ने ट्रायल पूरा होने से पहले ही इस वैक्सीन का प्रोडक्शन भी शुरू कर दिया है. वो चाहते हैं कि वैक्सीन का लगभग एक मिलियन डोज़ तैयार कर लिया जाए और सितंबर तक भेज दिया जाए.
नई दिल्ली: ब्रिटेन में कोरोना वायरस की वैक्सीन का ह्यूमन ट्रायल (मानव परीक्षण) शुरू हो गया है. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का कहना है कि वो जिस वैक्सीन को तैयार कर रहे हैं, उसमें सफलता की 80 फीसदी संभावना है. ऐसे में अगर इन वैज्ञानिकों को वैक्सीन बनाने में कामयाबी मिल जाती है तो ये खबर सिर्फ ब्रिटेन के लिए ही नहीं, बल्कि कोरोना से जूझ रही पूरी दुनिया के लिए राहत लेकर आएगी.
ब्रिटेन के हेल्थ सेक्रेटरी मैट हैनकॉक ने कहा है कि ऑक्सफॉर्ड और इम्पीरियल कॉलेज ऑफ लंदन में हो रहे परीक्षण के लिए, दोनों को कम से कम 20 मिलियन यूरो (164 करोड़ रुपये से ज्यादा) और दिए जाएंगे. उन्होंने ये भी कहा कि वॉलिंटियर्स से इस परीक्षण में हिस्सा लेने के लिए तत्काल एक अपील की गई है. जो भी इसमें हिस्सा लेंगे उन्हें 625 यूरो ( करीब 51,254 रुपये) दिए जाएंगे. जो लोग इसमें हिस्सा लेंगे उनका स्वास्थ्य अच्छा होना चाहिए और उनकी उम्र 18 से 55 साल के बीच होनी चाहिए.
ऑक्सफोर्ड टीम की सदस्य प्रोफेसर सारा गिलबर्ट का कहना है कि ये पता लगाने में कितना समय लगेगा कि वैक्सीन कारगर है या नहीं, इसका दारोमदार इस चीज़ पर है कि कम्युनिटी में वायरस का कितना अधिक ट्रांसमिशन हुआ है. उनका कहना है कि अगर वॉलिंटियर्स वायरस के संपर्क में नहीं आएंगे तो रिसर्च करने वाले ये नहीं पता लगा सकेंगे कि वैक्सीन ने उन्हें बचाया है या नहीं.
प्रोफेसर गिलबर्ट ने कहा, "हमने जिन वॉलिंटियर्स में वैक्सीन का इस्तेमाल किया है उनमें वायरस ट्रांसमिशन काफी कम रहा है. हमें बस इसके परिणाम के लिए कुछ समय तक इंतज़ार करना होगा."
प्रोफेसर गिलबर्ट का कहना है कि वो इस वक्त इस कोशिश में हैं कि जिन लोगों के वायरस से संक्रमित होने का ज़्यादा खतरा है, जैसे अस्पतालों में हेल्थकेयर वर्कर्स वगैरह, उनका टेस्ट किया जाए. ताकि इसके नतीजे तेज़ी से हासिल किए जा सकें.
खास बात ये है कि ऑक्सफोर्ड में जेनर इंस्टिट्यूट टीम ने ट्रायल पूरा होने से पहले ही इस वैक्सीन का प्रोडक्शन भी शुरू कर दिया है. वो चाहते हैं कि वैक्सीन का लगभग एक मिलियन डोज़ तैयार कर लिया जाए और सितंबर तक भेज दिया जाए. उनका कहना है कि वो इस परिस्थिति में नहीं पड़ना चाहते कि वैक्सीन सुरक्षित हो और इससे लोग ठीक भी हो सकते हों, लेकिन किसी व्यक्ति में इसका डोज़ देने के लिए वैक्सीन ही नहीं हो.
यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड के प्रोफेसर एंड्यू पोलार्ड के मुताबिक बड़ी मात्रा में इसके डोज़ का प्रोडक्शन करना मुश्किल काम है. ये काम छह महीने या एक साल में नहीं हो सकता. हालांकि उनका कहना है कि छोटे पैमाने पर यह एक प्रभावी वैक्सीन के साथ संभव हो सकता है.
आपको बता दें कि ऑक्सफोर्ड वैक्सीन का नाम ChAdOx1 nCoV-19 रखा गया है. इस वैक्सीन को बनाने के लिए यूके की तीन कंपनियों से डील तय हो चुकी है. इसके अलावा कई बाहर की कंपनियों से भी इसे बनाने के लिए डील की गई है.
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