चो सून-ओके 17 साल की थी जब तीन अंजान लोगों ने उसका अपहरण किया था और सियोल के उत्तर में एक कस्बे में दलाल को बेच दिया था. उस वक्त दक्षिण कोरिया की चो सून-ओके अपना हाई स्कूल शुरू करने वाली थी. वह एक मशहूर बैले डांसर बनना चाहती थी. लेकिन, बैलेरीना बनने का सपना देखने वाली सून को जबरदस्ती सेक्स वर्कर बनकर अपनी जिंदगी गुजारनी पड़ी.
सून का अपहरण साल 1977 में किया गया था. किडनैपिंग के अगले पांच साल तक उसके दलाल ने उसपर लगातार देह व्यापार करने का दबाव बनाया और अंत में उसे मजबूर होकर यौन श्रम के लिए पास के एक क्लब में जाना पड़ा. उस क्लब में उसके ग्राहक था एक अमेरिकी सैनिक. सून इकलौती ऐसी लड़की नहीं थी, जिसे जबरन इस काम को अपनाना पड़ा था.
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान यानी साल 1932-45 के बीच अपने शाही विस्तार के दौरान, कई पूर्वी एशियाई देशों में जापानी शासन मौजूद था. इन क्षेत्रों की कई महिलाओं को पकड़ लिया जाता था और उन्हें सेक्स वर्कर का काम करने के लिए मजबूर किया जाता था. उन महिलाओं को एक नाम दिया गया था जिसे कहते थे 'कम्फर्ट वुमन'. यानी लोगों को आराम देने या खुश करने वाली महिलाएं.
"कम्फर्ट वुमन" आमतौर पर कोरियाई और एशियाई महिलाएं होती थी. साल 1945 में जापान के औपनिवेशिक शासन के समाप्त होने के बाद भी लंबे समय बाद तक दक्षिण कोरिया में महिलाओं के एक अन्य समूह का यौन शोषण जारी रहा- और यह उनकी अपनी सरकार द्वारा सुगम बनाया गया था.
अमेरिकी सेना के लिए बनाया गया था "कंफर्ट स्टेशन"
कोरियाई युद्ध के दौरान दक्षिण कोरियाई सैनिकों के लिए "स्पेशल कंफर्ट वुमन यूनिट" और अमेरिकी नेतृत्व वाली संयुक्त राष्ट्र सेना के लिए "कंफर्ट स्टेशन" बनाए गए थे. जहां सेक्स वर्कर इन सैनिकों को सेवा देती थी. युद्ध के बाद भी कई सालों तक इन महिलाओं ने अमेरिकी सैन्य ठिकानों के आसपास बने गिजिचोन, या "कैंप टाउन" में काम किया.
इतने सालों बाद अब कंफर्ट वुमन का नाम एक बार फिर चर्चा में आने लगा है. दरअसल दक्षिण कोरिया की ऐसी 100 महिलाओं ने एक ऐतिहासिक जीत हासिल की. साल 2022 के सितंबर महीने में सुप्रीम कोर्ट ने जापान सरकार को आदेश दिया है कि वह दक्षिण कोरिया की पूर्व ‘कम्फर्ट वुमन’ को मुआवजा दे.
हालांकि इस फैसले पर अमल करने के लिए जापान बिल्कुल भी तैयार नहीं है. जापान के विदेश मंत्री तोशिमित्सु मोटेगी ने साफ कह दिया है कि उनका देश "कंफर्ट वुमन" को एक पैसा नहीं देगा. दक्षिण कोरिया की सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को "व्यवस्थित और हिंसक" तरीके से महिलाओं को हिरासत में लेने और उन्हें यौन संचारित रोगों के इलाज के लिए मजबूर करने के लिए भी दोषी ठहराया है.
कोर्ट के फैसले पर जाहिर की खुशी
न्यूयॉर्क टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में छह पूर्व दक्षिण कोरियाई शिविर शहर की महिलाओं ने बताया कि कैसे उनकी सरकार ने उन्हें छोड़ने से पहले राजनीतिक और आर्थिक लाभ के लिए उनका इस्तेमाल किया. उन्होंने कोर्ट के इस फैसले पर खुशी जाहिर करते हुए कहा जबरदस्ती सेक्स वर्कर का काम करने वाली पीड़ितों का लक्ष्य अब अपने मामले को अमेरिका ले जाना है.
इन पीड़ितों में एक का नाम पार्क ग्यून-ए है उन्हें 16 साल की उम्र में, साल 1975 में एक दलाल को बेच दिया गया था. उन्होंने बताया कि उस वक्त उसकी काफी पिटाई की जाती थी. पार्क कहती है कि यौन श्रम से मना करने पर उसे गालियां और बहुत सारे अपमान सहने पड़ते थे. ये मामला अमेरिका तक जाना चाहिए ताकि उस देश को पता चल सके की उनके कुछ सैनिकों ने हमारे साथ क्या किया.
पार्क आगे कहती हैं, "हमारे देश ने एक गठबंधन के तहत अमेरिका से हाथ मिलाया और हम जानते थे कि उसके सैनिक हमारी मदद करने के लिए यहां थे, लेकिन इसका मतलब ये नहीं था कि वे हमारे साथ जो चाहें कर सकते थे."
किसे कहा जाता है कम्फर्ट वुमन
दुनियाभर में अब तक दो विश्व युद्ध हो चुके है. इस युद्ध में लाखों लोगों ने अपनी जान गवाई है, इन युद्ध ने लोगों के घरों परिवारों को बर्बाद होते देखा है, अमीरों को फकीर होते देखा है. हालांकि अब इस जंग को खत्म हुए 7 दशकों से ज्यादा का समय बीत चुका है लेकिन घाव आज भी हरे हैं.
इन्हीं घावों में एक है "कंफर्ट वूमेन". कम्फर्ट वूमन वो महिलाएं हैं जो युद्ध तो नहीं लड़ीं, लेकिन फिर भी वह इस युद्ध का अहम हिस्सा रही हैं. कंफर्ट वूमेन वे महिलाएं है जिसे दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जापानी सैनिकों ने अपने कैंप में रखा, उनसे सेक्स वर्कर जैसा काम करवाया सालों तक यातनाएं दीं. इन महिलाओं में ज्यादातर सेक्स वर्कर दक्षिण कोरिया की थीं. जिसके खिलाफ जापान जंग लड़ रहा था.
ये उस दौर की बात है जब जापानी सैनिक एशिया के सभी देशों पर अपना दबदबा बनाने की कोशिश में लगे थे. एशिया में जहां भी उन लोगों ने जीत हासिल की वहां की महिलाओं को बलात्कार जैसे जघन्य अपराध का शिकार बनाया गया.
उस वक्त जापानी सैनिक किसी भी महिला या लड़कियों को अपनी मर्जी या पसंद से पकड़ कर ले जाते थे और उनका बलात्कार किया जाता था. उन महिलाओं को बंदी बनाकर कैम्प में रखा जाता और सामूहिक रूप से बलात्कार किया जाता था. बंदी बनाई गई औरतों और लड़कियों को 'कम्फर्ट वुमन' कहा जाता था.
वैसे तो कम्फर्ट वुमन के नाम पर दक्षिण कोरिया अब भी आवाज बुलंद किए हुए है पर इस दर्द को कोरिया, चीन, फिलीपींस, बर्मा, थाईलैंड, वियतनाम, मलाया जैसे कई देशों में औरतों ने झेला है.
काफी पुराना है कोरिया के यौन शोषण का इतिहास
दक्षिण कोरिया के यौन शोषण के इतिहास पर हमेशा खुले तौर पर चर्चा नहीं की जाती है. साल 2002 में पहली बार एक समाजशास्त्री, किम ग्वि-ओक ने दक्षिण कोरियाई सेना के दस्तावेजों का हवाला देते हुए कम्फर्ट वुमन पर रिपोर्ट करना शुरू किया था. हालांकि उस वक्त सरकार ने उन दस्तावेजों को सील कर दिया था.
सबूत के तौर में अदालत में जो दस्तावेज दिए गए थे उसके अनुसार. साल 1961 में सियोल के पास वाले क्षेत्र में रहने वाले लोगों ने भी माना कि अमेरिका के सैनिकों का मनोबल बढ़ाने के लिए कम्फर्ट वुमन की जरूरत थी.
इसके अलावा स्थानीय सरकार ने प्राइवेट क्लबों को "बजट बचाने और विदेशी मुद्रा कमाने" के लिए कम्फर्ट वुमन की भर्ती करने की अनुमति दी. इन क्षेत्रों में कम से 10,000 कम्फर्ट महिलाएं के होने का अनुमान लगाया गया.
साल 1969 में दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति रिचर्ड एम. निक्सन ने घोषणा की कि देश में तैनात अमेरिकी सैनिकों की संख्या को कम किया जाएगा. इस घोषणा के अगले साल सरकार ने संसद को बताया कि अमेरिकी सेना से यह देश सालाना 160 मिलियन डॉलर कमा रहा था, जिसमें सेक्स व्यापार भी शामिल था. (उस समय देश का कुल निर्यात 835 मिलियन डॉलर था.)
वो तीन औरतें जो हाल में आए फैसले की गवाह बनी!
कम्फर्ट वुमन की लिस्ट में वैसे तो लाखों महिलाओं के नाम हैं. कई महिलाएं तो ऐसी भी हैं जो जिंदगी भर बेनाम रहीं और मौत के घाट भी उतार दी गई. लेकिन इस दर्द को झेलने वाली 3 महिलाएं आज भी दुनिया की नजरों के सामने हैं.
चीन से ग्रैंडमा काओ, साउथ कोरिया से ग्रैंडमा गिल और फिलीपींस से ग्रैंडमा एडेला, ये वो तीन नाम है पिछले कुछ दिनों से लगातार चर्चा में हैं. ग्रैंडमा काओ चीन में एक सुदूर गांव में रहती हैं. अलजजीरा की रिपोर्ट के अनुसार जापानी सैनिकों ने उन्हें चीन में उनके गांव से उठा लिया था.
ग्रैंडमा काओ का अपहरण किया गया और उन्हें जबरदस्ती सेक्स स्लेव बनाया गया. हालांकि वह काफी मुश्किलों के बाद सैनिकों के कैंप से भाग गई. ग्रैंडमा काओ उस वक्त की स्थिति बताते हुए कहा, 'जब भी जापानी सैनिक उनके गांव में आते तो लड़कियां पहाड़ों पर चली जाती थी. जो लड़कियां घरों में होती, वह अपना हुलिया बिगाड़ लिया करती थी. जिससे वो बदसूरत लगें और सैनिक उन्हें उठाकर न ले जाए. काओ ने इस ज्यादती के बाद कभी विवाह नहीं किया.
ग्रैंडमा एडेला की कहानी भी कुछ ऐसी ही है वह फिलीपींस की रहने वाली हैं. और उम्र के आखिरी पड़ाव में पहुंच कर ही अपने घरवालों को उनके साथ हुई इन ज्यादतियों के बारे में बताया. इन तीनों महिलाओं ने दशकों तक खुद को चुप रखा, क्योंकि ये उनके परिवार की इज्जत का सवाल था पर दर्द कब तक छिपता है.
आज भी जारी है इंसाफ की मांग
कई कम्फर्ट वुमन एक साथ आकर जापान सरकार के खिलाफ और सैन्य अभियानों के समय उनके साथ हुए हादसों को लेकर कोर्ट में याचिकाएं दायर की हैं. इसी याचिकाओं की सुनवाई के दौरान दक्षिण कोरिया ने इस मामले पर जापान सरकार से कई बार जवाब तलब भी किया है.
हालांकि जापान कम्फर्ट वुमन के नाम पर कुछ भी कहने से तैयार नहीं हुआ तो कोर्ट ने अपना आखिरी फैसला दे दिया है. इस फैसले के अनुसार जापानी सरकार और सैनिकों को कम्फर्ट वुमन के खिलाफ हुए अपराधों का दोषी माना गया है और उन्हें मुआवजा देने की बात कही गई है.
जापान क्या कह रहा है?
जापान का दावा कि है कि साल 1965 में जापान और दक्षिण कोरिया के बीच किए गए समझौते के तहत “कम्फर्ट वुमन” से जुड़े सभी मामलों और दावों को निपटा दिया गया था.
साल 2015 में भी जापान और दक्षिण कोरिया ने कहा था कि इस मुद्दे का निपटारा हो चुका है. हालांकि जापान के पीड़ित महिलाओं को इस समझौते के बारे में कोई जानकारी नहीं है. जंग खत्म होने के बाद 1990 के दशक में सामाजिक चेतना के विस्तार के बाद अब तक कई बार इन महिलाओं पक्ष में प्रदर्शन हो चुके हैं.