पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के मुखिया इमरान खान तमाम कोशिशों के बाद भी अपनी सरकार नहीं बचा पाए. शनिवार देर रात नेशनल असेंबली में अविश्वास प्रस्ताव पर हुई वोटिंग में उनके खिलाफ 174 वोट पड़े और उन्हें अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी, लेकिन इमरान खान ने आखिरी बॉल तक मैच को बचाने यानी अपनी सत्ता बचाने की कोशिश की. इसके लिए उन्होंने कई हथकंडे अपनाए, पर उन्हें कामयाबी नहीं मिली. सवाल ये उठता है कि 'नया पाकिस्तान' का नारा देकर सत्ता में चमत्कारिक तरीके से आने वाले इमरान खान महज तीन साल में ही राजीनित की पिच पर बोल्ड क्यों हो गए, क्यों उन्होंने अपनों का ही विश्वास खो दिया. इसके पीछे कई कारण हैं. आज हम एक-एक कर करेंगे उसी पर बात.


ये हैं वो कारण जिससे टूटता गया विश्ववास


इमरान खान पाकिस्तान के लिए हमेशा किसी हीरो से कम नहीं रहे हैं. उनकी कप्तानी में पाकिस्तान ने क्रिकेट विश्वकप जीता. अपने आॉलराउंड खेल की वजह से भी वह देश के हीरो थे. क्रिकेट के बाद जब वह राजनीति की पिच पर आए तो धीरे-धीरे यहां भी खुद को स्थापित किया और देखते-देखते उनकी पार्टी ने पूरे देश में पहचान बना ली. 18 अगस्त 2018 को उन्होंने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली, लेकिन धीरे-धीरे मैच उनके हाथ से निकलता गया. इसके पीछे तीन प्रमुख कारण हैं.


1. देश में बन रहे आर्थिक संकट के हालात


पाकिस्तान की माली हालत इमरान से पहले भी खराब थी. चुनाव के दौरान उन्होंने देश को नया पाकिस्तान के सपने दिखाए थे. उन्होंने कई वादे भी किए थे. लोगों ने बदलाव और उम्मीद की आस लिए उन्हें वोट दिया. इमरान ने शुरू में देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की पूरी कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हो सके. धीरे-धीरे स्थिति बिगड़ती गई और पिछले कुछ महीनों में देश भारी आर्थिक संकट से जूझ रहा है. वहां महंगाई लगातार बढ़ रही है और लोग परेशान हो रहे हैं. बढ़ती बेरोजगारी, घटता अंतराराष्ट्रीय मुद्रा कोष और कई अन्य चीजों ने पाकिस्तान को श्रीलंका जैसे हालात की ओर धकेल दिया है. इन्हीं को मुद्दा बनाते हुए विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लेकर आया था.


2. खोता गया लोगों का विश्वास


दरअसल जब इमरान अपने वादे पूरे करने में सफल नहीं हो रहे थे तो मीडिया, आम लोग और विपक्षी दल के नेताओं ने सवाल पूछना शुरू किया. इमरान खान की सरकार इन सवालों को पचा नहीं पाई. सरकार ने सवाल पूछने वालों को दबाने की कोशिश की. इनमें से कई पर कानूनी कार्ऱवाई तक की गई. इन सबसे भी इमरान खान की पॉपुलैरिटी कम होती गई और लोगों की नजरों से वह उतरने लगे.


3. करप्शन भी वजह


इमरान खान की सरकार के दौरान करप्शन के भी कई आरोप विपक्षी दल लगातार लगाते रहे हैं. आऱोप है कि जिस-जिस प्रांत में इमरान खान की पार्टी के सीएम थे, वहां-वहां किसी भी काम के लिए पैसा लिया जाता था. तबादलों के खेल में पैसा लिया जाता था. इसके लिए एक टीम काम करती थी. इन सब वजहों से भी उनके नेतृत्व पर सवाल उठने लगे. उनकी पार्टी के कई नेता इसी वजह से पार्टी छोड़कर चले गए.


4. सेना से बनती गई दूरी


इमरान खान की सत्ता न बच पाने में यह फैक्टर भी काफी महत्वपूर्ण है. दरअसल शुरुआती दो साल तक उनका सेना के साथ अच्छा तालमेल रहा. वह पाकिस्तानी सेना प्रमुख बाजवा के काफी करीब रहे, लेकिन पिछले 1 साल में उनकी सेना से दूरी बढ़ती गई. पिछले कुछ महीनों में तो इसमें काफी गैप नजर आया. पिछले महीने उन्होंने एक बार तो भारतीय सेना की तारीफ भी की. जब विपक्ष उन्हें घेर रहा था, तो उन्होंने सेना को विश्वास में लेकर कुर्सी बचाने की पूरी कोशिश की, लेकिन उनकी एक न चली और बाजवा ने भी उन्हें पद छोड़ने की सलाह दे डाली.


5. देश बर्बाद, लेकिन अपनों की संपत्ति बढ़ी


इमरान खान के समय में बेशक पाकिस्तान और बदहाल होता गया, लेकिन उनके कार्यकाल में उनके कुछ दोस्तों की संपत्ति में तेजी से इजाफा हुआ. इसने भी कई तरह के सवाल खड़े किए. इमरान खान की पत्नी बुशरा बीबी की दोस्त फराह खान की संपत्ति इमरान खान के कार्य़काल में 4 गुना तक बढ़ी. इसे विपक्षी दलों ने मुद्दा बनाया.


6. कुर्सी बचाने के चक्कर में करा बैठे किरकिरी


जब सदन में अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग की तारीख नजदीक थी और इमरान को अपनी कुर्सी जाती दिख रही थी, तो उन्होंने इसे बचाने के लिए विदेशी साजिश वाला कार्ड खेला. उन्होंने एक लेटर भी होने का दावा किया, लेकिन उसे सार्वजनिक नहीं किया. वोटिंग से कुछ समय पहले असेंबली के डिप्टी स्पीकर ने अविश्वास प्रस्ताव को खारिज कर दिया. इसके बाद इमरान खान ने राष्ट्रपति से सिफारिश कर नेशनल असेंबली को भंग करा दिया, लेकिन विपक्ष इसे गलत बताते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. सुप्रीम कोर्ट ने इन दोनों फैसलों को पलट दिया और अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग के लिए कहा. इन सभी कोशिशें से इमरान खान अपनी किरकरी करा बैठे हैं.


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