संयुक्त राज्य अमेरिका ने यूरोप में नाटो ठिकानों पर अपने परमाणु बमों की तैनाती को बढ़ाने का काम तेज कर दिया है. अमेरिकी अधिकारियों ने 6 महीने पहले ब्रसेल्स में बंद कमरे में हुई बैठक के दौरान नाटो सहयोगियों को बताया था कि उन्नत बी61-12 एयर-ड्रॉप ग्रेविटी बम बनाने का काम खत्म हो चुका है. इसे जल्द ही तैनात किया जाएगा. 


रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका लगातार अपने पुराने बमवर्षकों और लड़ाकू विमानों को नया संस्करण दे रहा है, और लगातार यूरोप के कई हिस्सों में परमाणु बम तैनात कर रहा है. रूस ने यूक्रेन युद्ध में परमाणु बम का इस्तेमाल करने की धमकी दी थी. इसके बाद से अमेरिका ने पुराने परमाणु बमों को नया संस्करण देना भी शुरू कर दिया है.


रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में अमेरिका ने बी 61 कार्यक्रम के उन्नयन पर वर्षों से बजट दस्तावेजों और सार्वजनिक बयानों में खुले तौर पर चर्चा की थी. पेंटागन के अधिकारियों ने कहा है कि भंडार का आधुनिकीकरण और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उन्नयन आवश्यक है.


पॉलिटिको में छपी खबर के मुताबिक पेंटागन के प्रवक्ता ब्रिगेडियर जनरल पैट्रिक राइडर ने ईमेल के माध्यम से जवाब दिया " हम अपने परमाणु शस्त्रागार के विवरण पर चर्चा नहीं करेंगे. अमेरिकी बी 61 परमाणु हथियारों का आधुनिकीकरण सालों से चल रहा है.


उन्नत बी 61-12 संस्करणों के लिए पुराने हथियारों को सुरक्षित और जिम्मेदारी से स्वैप करने की योजना लंबे समय से जारी है. यह किसी भी तरह से यूक्रेन में वर्तमान घटनाओं से जुड़ा नहीं है'.


रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका ने 2022 के अंत तक यूरोप में 100 B61 परमाणु हथियारों की तैनाती युरोप में की. ये बम दोहरे-सक्षम विमानों द्वारा तैनात किए गए हैं. इस बी 61-12 संस्करण में दक्षता और सटीकता दोनों में सुधार के लिए एक नई टेल किट शामिल है. रणनीतिक और सामरिक उपयोग दोनों के लिए इसका इस्तेमाल किया जाएगा. 


क्या अमेरिका इसकी जानकारी छुपाता है


2019 में नाटो की एक संस्था ने एक दस्तावेज जारी किया और बाद में हटा दिया. इससे लंबे समय से चला आ रहा शक यकीन में बदल गया. अमेरिकी परमाणु हथियारों को कई यूरोपीय देशों में हवाई ठिकानों पर तैनात कर रहा है. इस दस्तावेज की एक प्रति बेल्जियम के अखबार डी मोर्गेन ने प्रकाशित की थी जिसमें कहा गया था कि बी61 परमाणु बम यूरोप के छह ठिकानों पर रखे हुए हैं. 


सेंटर फॉर आर्म्स कंट्रोल एंड नॉन-प्रोलिफरेशन की एक फैक्टशीट के मुताबिक, बेल्जियम में क्लेन ब्रोगेल, जर्मनी में बुचेल, इटली में एवियानो और घेडी, नीदरलैंड में वोल्कल और तुर्की में इनसिरलिक ठिकानों पर अमेरिका ने परमाणु बम तैनात किए हैं. 


अमेरिका में परमाणु बमों का इतिहास क्या है


हथियारों की उपस्थिती 1960 के दशक में शीत युद्ध के दौरान एक समझौते से उपजी है. इसका मकसद सोवियत संघ को रोकना और इसमें शामिल देशों को यह समझाना था कि उन्हें अपने खुद के परमाणु हथियार कार्यक्रमों को शुरू करने की कोई जरूरत नहीं है. 


ऐतिहासिक रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका ने ग्रीस और यूनाइटेड किंगडम सहित सभी यूरोपीय देशों में परमाणु बम और परमाणु-सशस्त्र मिसाइलों दोनों को तैनात किया है. 


संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके नाटो सहयोगियों ने यूरोप में तैनात किए गए बमों के सटीक आंकड़ों का खुलासा नहीं किया है.  इन सभी हथियारों को भूमिगत तहखानों में रखा गया है. उन्हें कोई भी एक्शन लेने के लिए एक्शन लिंक (पीएएल) कोड अमेरिकी हाथों में रहता है. 


1971 में शीत युद्ध के तनाव के दौरान यूरोप में स्थित परमाणु हथियारों की कुल संख्या 7,300 के सर्वकालिक शिखर पर पहुंच गई. हांलाकि अमेरिका ने बाद में परमाणु बमों को कम करने की बात भी कही, लेकिन पिछले 2 सालों में इस बात के सबूत लीक हुए कि अमेरिका यूरोप में परमाणु बम की तैनाती कर रहा है.


विशेषज्ञों का अनुमान है कि पांच नाटो देशों के बीच लगभग 100 ऐसे बम संग्रहीत किए गए हैं, जो जेट विमानों पर लोड करने के लिए तैयार हैं.  इस बम का एक संस्करण 11 हिरोशिमा के बराबर विस्फोटक ले जा सकता है. 




इसकी वजह क्या है? 


यूक्रेन पर रूस के आक्रमण ने तृतीय विश्व युद्ध की चिंता बढ़ाई है. अमेरिका अभी तक बी 61 बमों को यूरोप में तैनात कर एकमात्र परमाणु हथियार प्रणाली बना हुआ है. 


वाशिंगटन पोस्ट में छपी खबर के मुताबिक 'B61 की तैनीती का मतलब राजनीतिक मायनों में अहम है. हालांकि अमेरिका इसके पीछे का मकसद हमले करना नहीं बता रहा है, लेकिन B61 फिर भी एक बम है. यह तिजोरी में भी बंद रहे तो खतरा ही लगता है. परमाणु बमों की तैनाती रक्षा नीति और हथियार नियंत्रण के लिए चुनौती जरूर बन सकती है.


वाशिंगटन पोस्ट में 2013 से 2016 तक नाटो के सर्वोच्च सहयोगी कमांडर और अब मध्य पूर्व संस्थान के लिए फ्रंटियर यूरोप पहल के अध्यक्ष सेवानिवृत्त जनरल फिलिप ब्रीडलोव कहते हैं, "इन बमों के वरिष्ठ निदेशक पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश थे. नाटो सरकारें उन्हें एक प्रमुख राजनीतिक प्रतिबद्धता के रूप में देखती रही हैं इन बमों का सैन्य मूल्य है'.


B61 का उपयोग कैसे किया जा सकता है?


नाटो और रूस के बीच बढ़ते संघर्ष के दौरान, अमेरिका को ये लग रहा है कि उसे रूस से पोलैंड में परमाणु चेतावनी मिल सकती है. अमेरिका को लगता है कि अगर चीजें उस रास्ते पर आगे बढ़ना जारी रहती हैं - तो संयुक्त राज्य अमेरिका पूरी तरह से परमाणु युद्ध के लिए तैयार रहे.


वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक अगर ऐसा हुआ तो अमेरिका अपने 77 सालों के सिद्धांत को तोड़ने को मजबूर होगा.


परमाणु हथियार इतिहासकार एलेक्स वेलरस्टीन द्वारा बनाई गई मॉडलिंग वेबसाइट न्यूकमैप के अनुसार अगर 800 किलोटन की रूसी अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल ने व्हाइट हाउस से 1.8 मील ऊपर विस्फोट किया तो सिल्वर स्प्रिंग, एमडी से अलेक्जेंड्रिया, और 'वा' तक पांच लाख मौतें हो सकती हैं और लोग थर्ड डिग्री जलने का सामना कर सकते हैं.


संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा था कि "परमाणु संघर्ष की संभावना, जो कभी अकल्पनीय थी, अब संभावना के दायरे में वापस आ गई है. इसकी वजह ये है कि पुतिन समय-समय पर अपने परमाणु बलों को अलर्ट पर रखने के फैसले का जिक्र करते रहे हैं'. 


सीएनएन पर पुतिन के एक प्रवक्ता ने परमाणु हथियारों के इस्तेमाल से मना नहीं किया, उनका कहना था कि 'अगर क्रेमलिन पर रूस को कोई खतरा दिखा तो हम ऐसा जरूर करेंगे. अमेरिका भी B 61 जैसा परमाणु बम बना रहा है'. 


B 61 की शुरुआत कैसे हुई, समझिए


चक हैनसेन के "स्वॉर्ड्स ऑफ आर्मगेडन" के मुताबिक बी 61 का जन्म क्यूबा मिसाइल संकट के बाद के वर्षों में हुआ था. क्योंकि वायु सेना उच्च गति पर कम उड़ान वाले विमानों से परमाणु हथियार गिराने की संभावना को बेहतर मानते थे.


बी61 का इस्तेमाल युद्ध के मैदान में अग्रिम सैन्य लक्ष्य के खिलाफ 'सामरिक' या 'गैर-रणनीतिक' परमाणु हमले के तौर पर किया जा सकता है, जबकि दुश्मन की रेखाओं के पीछे, सरकार या शहरों पर 'रणनीतिक' हमले में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है.


विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर को भेजे गए एक सार्वजनिक ज्ञापन के अनुसार, 1975 तक यूरोप में अमेरिका के पास 6,951 सामरिक परमाणु हथियार और 145 परमाणु भंडारण स्थल थे. इसके पीछे का मकसद यूरोप में किसी भी सोवियत घुसपैठ से होने वाले परमाणु हमले का खतरे का जवाब देना था. अब ये  एक भयंकर रणनीतिक युद्ध तक बढ़ सकता है.