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डोकलाम से भारत-चीन ने हटाई अपनी सेना, एक्सपर्ट्स ने माना- विश्व में हुई चीन की छीछालेदार
चीन में सितंबर में होने जा रहे ब्रिक्स सम्मेलन से पहले दोनों देशों के बीच सेनाओं को हटाने पर सहमति बनी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा ले सकते हैं. 10 हफ्तों से भी ज्यादा वक्त से चल रहे गतिरोध के शांत होने से सरकार को कूटनीतिक कामयाबी मिली है.

नई दिल्ली: भारत और चीन के बीच डोकलाम क्षेत्र के आसपास से अपनी सेनाएं हटाने को लेकर सहमति बन गई है. डोकलाम में दोनों देशों की सेनाओं के बीच बीते जून से गतिरोध बना हुआ है. विदेश मंत्रालय ने जारी बयान में कहा, "हम अपने विचारों को व्यक्त करने एवं अपनी चिंताओं और हितों को साझा करने में सक्षम हो सके." बयान के मुताबिक, "इस आधार पर डोकलाम पर सेनाओं को हटाने पर सहमति बनी है, जो जारी है."
चीन में सितंबर में होने जा रहे ब्रिक्स सम्मेलन से पहले दोनों देशों के बीच सेनाओं को हटाने पर सहमति बनी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा ले सकते हैं. 10 हफ्तों से भी ज्यादा वक्त से चल रहे गतिरोध के शांत होने से सरकार को कूटनीतिक कामयाबी मिली है. इस मामने पर रक्षा ममलों के जानकारों ने एबीपी न्यूज़ से अपनी राय साझा की है. आइए जानें एक्सपर्ट्स का क्या कहना है इस मामले पर.
रक्षा मामलों के जानकार विवेक काटजू ने एबीपी न्यूज़ से अपनी राय रखते हुए कहा, ''मैं इसे एक अच्छा विस्तार मानता हूं. यह फैसला भारत और चीन दोनों के लिए बहुत अच्छा है. मगर जब तक इस मामले पर चीन का बयान नहीं आ जाता तब तक कोई टिप्पणी करना सही नहीं होगा. इस मामले को लेकर भारत ने जो दृढ़ रुख अपनया उसकी आशा चीन ने कभी नहीं की थी. इस बात के लिए मैं भारत को मुबारकबाद देता हूं.''
रक्षा एक्सपर्ट शिवाली देशपांडे ने एबीपी न्यूज़ से बातचीत में कहा, "चीन ने भारत को उकसाने की बहुत कोशिश की. आर्मी का प्रदर्शन किया. भारत पर चीन प्रेशर डालना चाहता था कि लेकिन भारत ने यहां पर अपनी मेच्योरिटी दिखाई. चीन को अगर हमला करना होता तो कभी कर लेता. लेकिन चीन सिर्फ धमकियां देता रहा. चीन सिर्फ दबाव डाल रहा था. वो पाकिस्तान को सपोर्ट कर रहा था, पाकिस्तान को दोस्त बनाया था. चीन इस पॉलिसी पर काम कर रहा था कि दुश्मन का दुश्मन हमारा दोस्त. लेकिन भारत ने संयम रखा. चीन बार-बार युद्ध की धमकियां देकर उकसाने की कोशिश करता रहा. दोनों देशों के बीच में युद्ध किसी समस्या का हल नहीं था.”
कर्नल तेज टिक्कू ने एबीपी न्यूज़ से कहा, ''यह भारतीय कूटनीति की जीत है क्योंकि चीन ने भारत को उकसाने की पुरजोर कोशिश की थी. चीनी अखबारों की तरफ से भारत को लगतार धमकियां दी जा रही थी. चीन की तरफ से तिब्बत से लेकर हिंद महासागर तक में लाइव फायर ड्रिल की गई. चीन हर प्रकार से भारत पर दबाव बनाना चाहता था लेकिन भारत के विदेश मंत्रालय की तरफ से बेहद नपे-तुले अंदाज में अपना जवाब सामने रखा गया. मुझे खुशी है कि दोनों तरफ से सेना लौट रही है क्योंकि भारत और चीन एक-दूसरे के बीच की लड़ाई को सम्भाल नहीं सकते, पूरे विश्व का इससे नुकसान हो जाता. भारत ने बेहद समझदारी से इसे हैंडल किया है. यह चीन की कूटनीतिक हार है जिससे विश्व के सामने उसका असली रूप सामने आया है.''
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नयन कुमार झाराजनीतिक विश्लेषक
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