टोक्यो/नई दिल्ली: एशिया और अफ्रीका में बेल्ट एंड रोड परियोजना के बहाने अपने डैने फैला रहे चीनी ड्रेगन की नकेल कसने के लिए अब भारत और जापान मिलकर काम करेंगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे की मुलाकात के दौरान दोनों देशों ने एशिया-प्रशांत क्षेत्र के लिए साझा रणनीति के कई अहम फैसलों पर मुहर लगाई. इस कड़ी में जापान जहां भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में कई बड़ी सड़क परियोजनाओं में साझेदार होगा वहीं दोनों मुल्क श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमार और अफ्रीका के कई देशों में साझा योजनाओं पर मिलकर काम करेंगे.


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे की शिखर वार्ता के बाद दोनों नेताओं ने मुक्त और अबाध हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए मिलकर काम करने का संकल्प जताया. मोदी और आबे ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में साझेदारी की ठोस परियोजना के लिए अमेरिका समेत अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर काम करने का भी फैसला किया. महत्वपूर्ण है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक संतुलन के लिए ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के साथ मिलकर भारत और जापान क्वॉड का गठन पहले ही कर चुके हैं.


पीएम मोदी की जापान यात्रा के दौरान भारत और जापान ने नौसैनिक सहयोग बढ़ाने के समझौते पर भी दस्तखत किए. इसके तहत भारतीय नौसेना और जापान की मैरिटाइम सेल्फ डिफेंस फोर्स समुद्री सूचनाएं अधिक सक्रियता से साझा करेंगे. रणनीतिक संवाद बढ़ाने के लिए भारत और जापान 2+2 वार्ता भी करेंगे. यह एशिया के किसी देश के साथ भारत की विदेश और रक्षा मंत्री स्तर संयुक्त संवाद की पहली कवायद होगी. महत्वपूर्ण है कि इससे पहले भारत और अमेरिका 2+2 फॉर्मेट पर पहले ही आगे बढ़ चुके हैं.


सैन्य और रणनीतिक सहयोग के लिए भारत और जापान एक्वीजिशन एंड क्रॉस सर्विसिंग एग्रिमेंट के लिए भी वार्ता प्रक्रिया शुरु करेंगे. दोनों प्रधानमंत्रियों की वार्ता के बाद जारी संयुक्त बयान में भारत और जापान ने इसका ऐलान किया. इस समझौते के सहारे भारत को जपानी सैन्य ठिकानों पर अपने विमानों और युद्धपोतों के लिए भोजना, सामाग्री आपूर्ति के साथ ही जरूरत पड़ने पर गोला-बारूद की आपूर्ति भी सुनिश्चत हो सकेगी. अगस्त 2018 में भारत आए जापानी रक्षा मंत्री ने अपनी भारतीय समकक्ष के साथ इस समझौते के बाबत प्रारंभिक वार्ता भी की थी.


द्विपक्षीय सहयोग के साथ ही भारत और जापान ने अपनी साझेदारी को अन्य देशों में ले जाने का भी ऐलान किया. इताना ही नहीं दोनों मुल्कों ने अपने इस सहयोग मॉडल को विवादों से घिरे चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव से अलग बताते हुए कहा कि इसमें मुक्त, पारदर्शी तरीके से और राष्ट्रीय संप्रभुताओं का सम्मान करते हुए, अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप ढांचागत परियोजनाओं का निर्माण किया जाएगा. इसके लिए भारत की एक्ट ईस्ट नीति और अफ्रीका के लिए 10 सूत्रीय सहयोग सिद्धांत और जापान के सतत सहयोग कार्यक्रम के बीच भी तालमेल बैठाया जाएगा.


एशिया से लेकर अफ्रीका तक साझेदारी
इस कड़ी में भारत और जापान ने श्रीलंका में एलएनजी संबंधी ढांचागत विकास के लिए साझेदारी करने का ऐलान किया. साथ ही दोनों देश रोहिंग्या शरणार्थी समस्या से जूझ रहे राखाइन प्रांत में घरों के निर्माण, शिक्षा और विद्युतिकरण के लिए भी मिलकर काम करेंगे. बांग्लादेश में दोनों देश मिलकर रामगढ़-बराईयारहत के बीच पुलों का पुनर्निर्माण और जमुना नदी के ऊपर पुल के निर्माण में साझा सहयोग देंगे.


वहीं अफ्रीकी देश कीनिया में भारत और जापान मिलकर कैंसर अस्पताल के निर्माण और छोटे व मझौले उद्योग क्षेत्र को बढ़ाने की योजना पर साथ काम करेंगे. सरकारी स्तर पर ही नहीं बल्कि दोनों देशों के उद्योगों के बीच भी साझेदारी आगे बढ़े इसके लिए भारत और जापान संयुक्त उद्योग प्लेटफॉर्म विकसित करेंगे ताकि हिंद-प्रशांत क्षेत्र और अफ्रीका में औद्योगिक गलियारे और नेटवर्क विकसित किए जा सकें.


पूर्वोत्तर विकास परियोजनाओं में जापानी मदद
दक्षिण पूर्व एशिया के साथ साझेदारी का गलियारा मजबूत करने की कवायद में भारत की पूर्वोत्तर विकास परियोजनाओं में भी जापान ने मदद की घोषणा की है. इस सिलसिले में जापान पूर्वोत्तर भारत के मेघालय में तुरा-ढालू ( NH-51) शिलांग-दावकी (NH-40) राजमार्ग परियोजनाओं के विकास में मदद करेगा. इसके अलावा आईजॉल-तुईपांग (NH-54) के निर्माण में सहायता के साथ ही जापान असम में धुबरी/फुलबा़ड़ी सेतु परियोजना में भी सहयोग करेगा जो पूरा होने पर भात की सबसे बड़ा पुल होगा.


महत्वपूर्ण है कि यह सभी वो परियोजनाएं हैं जो न केवल सीमा क्षेत्र में भारत को ढांचागत मजबूती देने वाली हैं बल्कि चीन के खिलाफ नाकेबंदी को ताकत देने वाली हैं. पूर्वोत्तर भारत में अपने पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी जापान की मौजूदगी को लेकर चीन अपनी नाखुशी का इजहार भी कर चुका है. हालांकि, जापान के साथ यह साझेदारी पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर में भारतीय ऐतराज के बावजूद बेल्ट एंड रोड परियोजान में चीन की ढिठाई का रणनीतिक जवाब भी है.


हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत और जापान की इस व्यापक साझेदारी को जहां अमेरिका का समर्थन हासिल है वहीं क्षेत्रीय स्तर पर भी कई मुल्क इसे चीनी दबंगाई से मुकाबले का कारगर तरीका मान रहे हैं. खासतौर पर दक्षिण पूर्व एशिया के कई मुल्कों से लेकर मध्य एशिया तक कई देशों में ढांचागत विकास के नाम पर बढ़ाई जा रही बेल्ट एंड रोड परियोजना पर सवाल उठ रहे हैं.


हाल ही में मलेशिया, बांग्लादेश, नेपाल समेत कई मुल्कों ने चीनी कंपनियों को दिए ठेकों को अनियमितता के चलते रद्द कर दिया था. यहां तक कि चीन के हर मौसम दोस्त और एहसानों तले दबे पाकिस्तान में भी बेल्ट एंड रोड परियोजना में चीनी दादागिरी को लेकर परेशानी बढ़ती जा रही है. इस तनाव का अक्सर निर्माण परियोजनाओं पर काम कर रहे चीनी इंजीनियरों को पाकिस्तान में हमलों की शक्ल में झेलना पड़ता है.


ये भी देखें


सुपर 6: सुबह की सबसे बड़ी खबरें